Thursday, 13 December 2018

सुरभि भाग 2


Surbhi Part II

देर शाम से देर रात तक वो अक्सर टीवी देखा करती ओर इन्टरनेट पर सोशल नेटवर्क से जुड़े रहना तो जैसे जिन्दगी का एक अंग ही था. हो भी क्यूं नहीं आखिर इन्टरनेट पर भी तो लोग ही थे. उसकी सभी सहेलियां फेसबुक पर थी उसका भी अच्छा खासा प्रोफाइल था फेसबुक पर. उसे फेसबुक पर अपने दोस्तों  के साथ बहुत कुछ साँझा करना अच्छा लगता था. जैसे वो पिछले दिनों शिमला गयी थी तो उसने लगभग अपनी सारी तस्वीरें फेसबुक के साथ साथ इंस्टाग्राम पर भी डाली थी ओर इतने सारे कमेंट्स आये थे.

इनमें से काफी कमेंट्स तो उसकी क्लास के लड़कों के ही थे. पर कमेंट्स किसी के भी हो उसे अच्छा तो लगता ही था. पर एक बात थी कि जब भी कोई पोस्ट डालो तो मन में लगा रहता था कि जल्दी से देखो की कोई और कमेंट आया होगा. शायद इसलिए ही लोग सोशल नेटवर्क पर व्यस्त रहते होगे. आखिर अपनी अपनी पोस्ट पर तो सबको उमींद रहती ही है. उसे तब बड़ा अजीब लगता था जब वो कोई पोस्ट डाले ओर उसके तुरंत बहुत सारे लाइक्स नहीं आये तो. कभी कभी तो गुस्सा भी आता था अगर जल्दी से लाइक्स नहीं आये तो. फिर Whatsapp पर मस्ती करना तो उसे सबसे अच्छा लगता था.

उसकी मम्मी को यह सब बिलकुल पसंद नहीं था. पर सुरभि के पास अपनी मोम को चुप करवाने का सबसे बेहतरीन जवाब था – कि मम्मी आपको नहीं मालूम की सोशल नेटवर्क पर कितना सिखने को मिलता है. बस इस बात पर उसकी मम्मी चुप हो जाती है. यह बात कुछ हद तक सच भी थी. किसी चीज को अगर सही तरीके से प्रयोग करो तो उससे फायदा ही होता है ओर उसी चीज को बुरे के लिए प्रयोग करो निश्चित तौर पर हानि ही होती है. रसोई के चाकू को ही ले लो. पिछली बार रसोई का कुछ कम करते उसकी ऊँगली कट गयी थी. उसी वक़्त उसके दिमाग में आया था घर में जब वो अकेली होती है ओर उसे डर लगता है तो वो यह चाकू अपने पास रखा करेगी. तभी से एक तरह से उसका डर भी कुछ कम हो गया था.

उसकी मम्मी एक धार्मिक महिला था. उनका मन बिलकुल साफ़ था. उनकी एक ही लड़की थी सुरभि. सुरभि के पिता का अच्छा खासा बिज़नस था. इसलिए रुपये-पैसे का सुरभि की जिन्दगी में कोई अभाव नहीं था. सुरभि की मम्मी दिन भर अपने काम में व्यस्त रहती. उसकी माँ घर का सारा काम खुद ही करती थी. बहुत से व्रत भी रखती थी. उसके बाद जो भी समय मिलता उसमे वो माँ दुर्गा की उपासना किया करती.

जिस दिन माँ का व्रत होता उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगता था कि उसकी माँ भूखी रहे. वैसे रसोई में काम करने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं होती थी परन्तु माँ के व्रत के दिन खासतौर पर उसका मन माँ को कुछ बना कर खिलाने का  करता था. उस दिन सुरभि माँ से जरुर पूछती थी – कि माँ मैं कुछ बना कर दूँ आपको और माँ तुम यह व्रत रखती क्यूँ हो ओर किसके लिए रखती हो. माँ का हमेशा एक ही जवाब होता था कि – तेरे लिए. फिर सुरभि पूछती कि मुझे क्या होने वाला है? क्यूँ अपने आप को सजा देती हो? सुरभि की माँ समझाती कि बेटा व्रत रखना स्वयं को सजा देना नहीं बल्कि एक तरह से भगवान का ध्यान अपनी ओंर आकर्षित करना है. जैसे तुम्हारी मैं माँ हूँ ऐसे ही ईश्वर माँ दुर्गा के रूप में हम सब की माँ है. जैसे तुम कुछ न खाओ तो मुझे चिंता रहती है ऐसे ही इश्वर रूपी माँ को अपने हर बच्चे की चिंता रहती है. बस इतनी सी बात है. यह सुरभि को उनका समझाने का तरीका है. सुरभि का मन इन सब बातों को ज्यादा तवज्जो नहीं देता था पर फिर भी सुरभि को माँ से इस तरह की बाते करना बहुत ही अच्छा लगता था. 

सुरभि को घर का काम करना कुछ ज्यादा अच्छा नहीं लगता था पर माँ हर वक़्त काम करते देख पता नहीं क्यूँ उसका मन उसे कचोटने लगता था कि उसे माँ के काम में हाथ बटाना चाहिए. ऐसा तब से हो रहा था जब से उसकी कॉलेज की पढाई पूरी हुई थी. शायद पहले उसे कभी लगा ही नहीं था कि उसकी माँ इतना काम भी करती होगी.

फिर कभी कभी मन में आता कि उसकी भी तो शादी होगी तब उसे भी काम करना होगा. पता नहीं कैसा घर मिले ओर कैसे व्यक्ति के साथ शादी हो. हालाँकि उसकी बहुत सारी फ्रेंड्स के बॉय फ्रेंड भी थे ओर उनमे से कुछ शादी भी करना चाहते थे. पर उसके साथ ऐसा कुछ नहीं था. उसका भी मन उसकी माँ के मन की तरह बिलकुल साफ़ था. वैसे भी वो ऐसा कुछ भी नहीं चाहती थी जिस से उसकी मम्मी ओर पापा को दुःख हो. खासतौर पर उसकी मम्मी को.   
अपनी मन पसंद के व्यक्ति से शादी करना कोई गलत बात नहीं थी वो ऐसा समझती थी ओर कभी कभी उसके पापा भी यह बात कह देते थे परन्तु उसकी मम्मी को शायद यह बिलकुल पसंद नहीं था यह बात वो समझती थी. हालाँकि उसकी मम्मी ने सीधेतौर पर उसे ऐसा कभी भी नहीं कहा था. फिर भी एक मूक भाषा जैसे उसे उसकी मम्मी के विचार पढ़ कर अपने आप बता देती थी. बहुत बाते समझने के लिए भाषा की जरुरत नहीं होती ऐसा उसे बहुत बार लगता था...