Friday, 23 November 2018

सुरभि भाग I

आचार्य हरीश की कहानियां - सुरभि



सुरभि की अपनी एक दुनियां थी. उसमे बहुत सारे रंग थे. बहुत सारे सपने थे. उसका मन दिन भर कुछ न कुछ बुनता रहता है. वैसे मन का तो काम ही यही है कि हमेशा कुछ न कुछ बुनते रहो. सुरभि ने अभी अपनी ग्रेजुएशन पूरी ही की थी. कॉलेज की यादे अभी ताज़ा ही थी. वो सहेलियां; वो दोस्त. कभी मन करता था कि आगे पढ़े तो कभी मन करता था कि कुछ जॉब की जाये ताकि कुछ फाइनेंसियल फ्रीडम का एन्जॉय किया जाये.

वो इन्टरनेट पर अपने दोस्तों से जॉब के बारे में बात किया करती पर मन में डर भी थे कि अभी तक ऐसे कोई भी काम किया नहीं था. पर इसके साथ ही मन का एक कोना यह भी बोलता था कि काम तो करना ही है और लोग भी तो करते है. कई तरह की जॉब्स उसे दिखाई देती थी पर उनके बारे में सोच अजीब अजीब ख्याल भी आते थे.

एक बात बड़ी खास थी जो उसको समझ नहीं आती थी कि यह सब सोचते हुए एक बंधन सा लगता था एक घुटन सी महसूस होती थी. फिर ज़माने को देखती थी तो लगता था कि सभी कुछ न कुछ काम तो आखिर कर ही रहे है. कौनसा सभी अपने काम से खुश होंगे. जिसे देखो अपनी थकान के रोने रोता है हर किसी के पास सुनाने के लिए इती कहानियां है की कहने क्यां? 

उसे जॉब करने से कुछ डर लगता था क्यूंकि उसका मन उसे डराता जो था. परन्तु यह नहीं समझ आता था कि उसे क्या करना अच्छा लगता है. जब बड़े बड़े वैज्ञानिकों के बारे, लेखकों के बारे में, बड़ी बड़ी हस्तियों के काम के बारे में पढ़ती तो उसे हैरानी होती थी कि कोई इतना सोच कैसे लेता है और मान लो कि सोच भी ले तो भी कोई इतना कर कैसे सकता है.

घर में शादी की बाते भी चलती थी. उसे अजीब लगता था कि इस घर में इतना कुछ उसकी पसंद का था और वो इस घर को इतना सजा कर रखती थी तो एक दिन उसे यह घर छोड़ना क्यों पड़ेगा. पर फिर मन से आवाज आती थी कि हर लड़की को शादी के बाद अपना घर छोड़ना ही पड़ता है.

कई बार तो उसे बड़ा होना एक बोझ सा लगता था. पर वो समझ रही थी कि बड़े होने के साथ साथ बहुत कुछ बदल भी रहा है. डर भी बढ़ रहे है. कई बार दुसरो की बाते उसे बड़ा डराती थी. जैसे कि उसकी सहेली की बहन की शादी हुई और कुछ ही समय में उसका तलाक भी हो गया. उसे लगता था कि लोग भी अजीब है कि किसी के साथ एडजस्ट क्या इतनी मुश्किल बात है. वो होती तो आसानी से मैनेज कर लेती. यूँही मन पता नहीं क्या क्या बोलता रहता था. पर करती वो वही थी जो उसके मन को अच्छा लगता था.

पर अपने मन की भी उसे समझ नहीं आती थी कि आखिर उसका मन चाहता क्या था. कभी बुरे विचार कभी अच्छे विचार कभी डरवाने विचार जाने क्या क्या विचार. कई बार तो अपने मन से ही परेशान हो जाती थी. ऐसे लगता था कि वो अपने मन पर Depend हो कि खुश होना हो तो भी नहीं हो सकते अपना मन ही जैसे बहुत बड़ी अड़चन हो. पर फिर भी मन को खुश करने में लग्न ही पड़ता था.

उसकी सहेली तो योग की क्लास में भी जाती थी. उसे अजीब लगता था कि क्या होगा ऐसे हाथ पैर मोड़ने से. योग में योग आसन हो तो होते होंगे और क्या होता होगा. उसका मन उसे बताता था कि उस अपनी इच्छाओं पर ध्यान देना चाहिए न कि इधर उधर की बातो पर.

वो जीवन में बहुत आगे जाना चाहती थी. सबसे आगे. अपनी सोचो से भी आगे. अपनी सोच से आगे जाने में ही तो हर इंसान लगा हुआ है. उसे याद था कि जब उसके पड़ोस में एक लड़के की डेथ हुई थी तो कई दिन तक उसका मन जैसे रुक गया था. पता ही नहीं मन को क्या हो गया था. डेथ की बात सुन कर ही एक अजीब ही डर सा पैदा हो गया था और सब के सब विचार जैसे गायब ही गए थे. वही मन जिसमे उमंगें भरी थी, desires भरी हुई थी, वही मन जैसे सो गया हो.

फिर जिंदगी चलने लगती थी. वही विचार, वही हंसी मज़ाक वही सब कुछ. पर मन कभी कभी सोचता जरुर था कि आखिर मृत्यु के बाद होता क्या होगा. पर इस विचार से ही उसे डर बहुत लगता था पर मन में ऐसा विचार अपने आप ही आ जाये तो वो करे भी  क्या. इस पर उसका बस भी तो नहीं न. और भी तो बहुत से बुरे विचार है जिनके बारे में सोचना भी नहीं चाहती फिर भी आ जाते है. वो सोचती थी कि बस विचारो पर उसका बस हो जाये न तो मज़ा ही आ जाये.

अक्सर उसके कोई भी नया काम करने में डर सा लगता था. कुछ भी नया करना हो. यहाँ तक कि जब वो पहली बार मंडी में सब्जी लेने गयी थी तो भी उसे डर लगा था. लेकिन वो तब की बात थी. अब उसे ऐसे कुछ भी खरीदने में जरा सा भी डर नहीं लगता था. उसे लगता था कि धीरे धीरे जिंदगी खुद को खुद ही एडजस्ट कर लेती है. बस कोई भी काम एक बार करना शुरू कर दो होते होते वो काम हो ही जाता है. कितने काम ऐसे थे जो शुरू में उसे लगता था कि वो तो कभी कर ही नहीं पायेगी पर वो काम भी उसने किये और वो काम आज वो पलक झपकते ही कर लेती है. यह बाते उसे बल देती थी उसके मन को भी.

Thursday, 1 November 2018

अगर भगवान् है तो फिर अत्याचार क्यों है, दुःख क्यों है?




यह एक ऐसा प्रश्न है जो बार बार और कई बार हमारे मनो में आता रहता है कि अगर ईश्वर है, अगर खुदा है, अगर भगवान् है या फिर कोई ऐसी शक्ति है जो हमें चला रही है तो वो शक्ति या ईश्वर मानव पर होने वाले अत्याचारों को, होने वाली प्राकर्तिक घटनाओं को रोकती क्यों नहीं.

कई देशों में अब भी युद्ध चल रहे है या फिर युद्ध जैसे हालात है और वहा औरतो और बच्चो के बहुत बुरे हाल है. जब सीरिया से ऐसी तस्वीरे आती है खास तौर पर छोटे छोटे बच्चों की तो मन में बहुत ही टीस उठती है. बड़ा दुःख होता है कि ऐसा क्यों हो रहा है.

भगवान् कुछ करते क्यों नहीं. आखिर हमें चलाने वाला चुप है क्यूँ. इस प्रश्न का उतर पाने के लिए हमें सबसे पहले खुद को समझना होगा और फिर ईश्वर को समझना होगा. हम वास्तव में क्यां है? और ईश्वर वास्तव में क्यां है?

ईश्वर ने कुछ इस तरह से डिजाईन किया कि सिस्टम में पुण्य भी आपके होंगे और पाप भी आपके होंगे. डर भी आपके होगे और निडरता भी आपकी होगी. ख़ुशी भी आपकी होगी और दुःख भी. आप इस मृत्युलोक में रहेंगे भी तब तक जब तक आपके पास पुण्य रहेगे या फिर पाप रहेगे. और जब तक मन से आप ईश्वर को समझने की कौशिश करते रहेगे तब तक आप इस धरती पर अच्छे और बुरे का शिकार होते ही रहेगे. क्यूंकि सिस्टम ही कुछ ऐसा है.

भगवद्गीता में एक श्लोक आता है जिसमे इस बात का जिक्र है कि – ईश्वर न तो हमारे पाप कर्म को और न ही हमारे पुण्य कर्मो को लेते है किन्तु स्वाभाव ही बरत रहा है. अगर पुण्य और पापों को लेने का काम ईश्वर नहीं करते तो फिर कौन करता है. जिस सिस्टम का मैंने पीछे जिक्र किया है वो सिस्टम आपके, हम सबके पुण्य कर्म भी लेता है, पाप भी लेना है और हमें उसका फल भी देता है.

इस सिस्टम को वेदांत की भाषा में प्रकृति का नाम दिया गया है. यहाँ ईश्वर अलग है, प्रकृति अलग है और हम अलग है. और हम अलग इसलिए है क्यूंकि हमने स्वयं को मन समझ लिया है और मन को एकमात्र सत्य समझ लिया है जबकि मन ही एक तरह से वैसे ही नाशवान है जैसे हमारा शरीर.

जब तक मन के पर्दे से, जब तक मन के चश्मे से हम देखते रहेगे तब तक न तो ईश्वर दिखाई देंगे और न ही हम प्रकृति को समझ पायेगे जिसके कारण अत्याचार भी है और ऐश्वर्य भी है.
कोई भी व्यक्ति जब दुसरे का बुरा कर रहा होता है या अच्छा कर रहा होता है तो प्रकृति का एक एक कण एक कैमरे की भांति उस घटना को नोट कर रहा होता है और अपने अन्दर दर्ज भी कर रहा होता है. जब कोई किसी का बुरा करके कानून से बच कर खुद को चालक समझने लगता है तो भी प्रकृति के गुण हर दम उस व्यक्ति पर काम कर रहे होते है.

जीवन जन्म-दर-जन्म बहुत लम्बी चलने वाली एक लम्बी श्रंखला है. हर अगला जन्म प्रकृति के नियम पर और हमारे कर्मो पर Decide होता है. हम फ्री है गलत के लिए भी और अच्छे के लिए भी. परन्तु प्रकृति बाध्य है हमें दंड देने के लिए भी और रिवॉर्ड देने के लिए भी.

हम इस बात को समझ नहीं पा रहे कि जीवन के पीछे क्यां है? हमने केवल भौतिकता को ही सत्य माना हुआ है. केवल मटेरियल को ही सच माना हुआ है. केवल धन अर्जित करने को ही सच माना हुआ है. जबकि की यह अटल सत्य है कि हमारी मृत्यु तो होनी ही है.

तो अत्याचार हम करते है स्वयं पर न भी भगवान्. असल में यह मन ही अत्याचारी है और यह मन ही आनंद पैदा करने वाला भी है, एक अति व्यवस्थित व्यवस्थता देना वाला भी है. हम मन की मदद से जो भी करगे यह प्रकृति, यह विश्वात्मा उसे दर्ज करती रहेगी और बदले में फल देने के लिए अगले जन्मो में भी अरेंजमेंट करती रहेगी.