आचार्य हरीश की
कहानियां - सुरभि
सुरभि की अपनी एक दुनियां थी. उसमे
बहुत सारे रंग थे. बहुत सारे सपने थे. उसका मन दिन भर कुछ न कुछ बुनता रहता है.
वैसे मन का तो काम ही यही है कि हमेशा कुछ न कुछ बुनते रहो. सुरभि ने अभी अपनी
ग्रेजुएशन पूरी ही की थी. कॉलेज की यादे अभी ताज़ा ही थी. वो सहेलियां; वो दोस्त.
कभी मन करता था कि आगे पढ़े तो कभी मन करता था कि कुछ जॉब की जाये ताकि कुछ
फाइनेंसियल फ्रीडम का एन्जॉय किया जाये.
वो इन्टरनेट पर अपने दोस्तों से जॉब
के बारे में बात किया करती पर मन में डर भी थे कि अभी तक ऐसे कोई भी काम किया नहीं
था. पर इसके साथ ही मन का एक कोना यह भी बोलता था कि काम तो करना ही है और लोग भी
तो करते है. कई तरह की जॉब्स उसे दिखाई देती थी पर उनके बारे में सोच अजीब अजीब
ख्याल भी आते थे.
एक बात बड़ी खास थी जो उसको समझ नहीं
आती थी कि यह सब सोचते हुए एक बंधन सा लगता था एक घुटन सी महसूस होती थी. फिर
ज़माने को देखती थी तो लगता था कि सभी कुछ न कुछ काम तो आखिर कर ही रहे है. कौनसा
सभी अपने काम से खुश होंगे. जिसे देखो अपनी थकान के रोने रोता है हर किसी के पास
सुनाने के लिए इती कहानियां है की कहने क्यां?
उसे जॉब करने से कुछ डर लगता था
क्यूंकि उसका मन उसे डराता जो था. परन्तु यह नहीं समझ आता था कि उसे क्या करना
अच्छा लगता है. जब बड़े बड़े वैज्ञानिकों के बारे, लेखकों के बारे में, बड़ी बड़ी
हस्तियों के काम के बारे में पढ़ती तो उसे हैरानी होती थी कि कोई इतना सोच कैसे
लेता है और मान लो कि सोच भी ले तो भी कोई इतना कर कैसे सकता है.
घर में शादी की बाते भी चलती थी. उसे
अजीब लगता था कि इस घर में इतना कुछ उसकी पसंद का था और वो इस घर को इतना सजा कर
रखती थी तो एक दिन उसे यह घर छोड़ना क्यों पड़ेगा. पर फिर मन से आवाज आती थी कि हर
लड़की को शादी के बाद अपना घर छोड़ना ही पड़ता है.
कई बार तो उसे बड़ा होना एक बोझ सा
लगता था. पर वो समझ रही थी कि बड़े होने के साथ साथ बहुत कुछ बदल भी रहा है. डर भी
बढ़ रहे है. कई बार दुसरो की बाते उसे बड़ा डराती थी. जैसे कि उसकी सहेली की बहन की
शादी हुई और कुछ ही समय में उसका तलाक भी हो गया. उसे लगता था कि लोग भी अजीब है
कि किसी के साथ एडजस्ट क्या इतनी मुश्किल बात है. वो होती तो आसानी से मैनेज कर
लेती. यूँही मन पता नहीं क्या क्या बोलता रहता था. पर करती वो वही थी जो उसके मन
को अच्छा लगता था.
पर अपने मन की भी उसे समझ नहीं आती थी
कि आखिर उसका मन चाहता क्या था. कभी बुरे विचार कभी अच्छे विचार कभी डरवाने विचार
जाने क्या क्या विचार. कई बार तो अपने मन से ही परेशान हो जाती थी. ऐसे लगता था कि
वो अपने मन पर Depend हो कि खुश होना हो
तो भी नहीं हो सकते अपना मन ही जैसे बहुत बड़ी अड़चन हो. पर फिर भी मन को खुश करने
में लग्न ही पड़ता था.
उसकी सहेली तो योग की क्लास में भी
जाती थी. उसे अजीब लगता था कि क्या होगा ऐसे हाथ पैर मोड़ने से. योग में योग आसन हो
तो होते होंगे और क्या होता होगा. उसका मन उसे बताता था कि उस अपनी इच्छाओं पर
ध्यान देना चाहिए न कि इधर उधर की बातो पर.
वो जीवन में बहुत आगे जाना चाहती थी.
सबसे आगे. अपनी सोचो से भी आगे. अपनी सोच से आगे जाने में ही तो हर इंसान लगा हुआ
है. उसे याद था कि जब उसके पड़ोस में एक लड़के की डेथ हुई थी तो कई दिन तक उसका मन
जैसे रुक गया था. पता ही नहीं मन को क्या हो गया था. डेथ की बात सुन कर ही एक अजीब
ही डर सा पैदा हो गया था और सब के सब विचार जैसे गायब ही गए थे. वही मन जिसमे
उमंगें भरी थी, desires भरी हुई थी, वही मन जैसे सो गया हो.
फिर जिंदगी चलने लगती थी. वही विचार,
वही हंसी मज़ाक वही सब कुछ. पर मन कभी कभी सोचता जरुर था कि आखिर मृत्यु के बाद
होता क्या होगा. पर इस विचार से ही उसे डर बहुत लगता था पर मन में ऐसा विचार अपने
आप ही आ जाये तो वो करे भी क्या. इस पर
उसका बस भी तो नहीं न. और भी तो बहुत से बुरे विचार है जिनके बारे में सोचना भी
नहीं चाहती फिर भी आ जाते है. वो सोचती थी कि बस विचारो पर उसका बस हो जाये न तो
मज़ा ही आ जाये.
अक्सर उसके कोई भी नया
काम करने में डर सा लगता था. कुछ भी नया करना हो. यहाँ तक कि जब वो पहली बार मंडी
में सब्जी लेने गयी थी तो भी उसे डर लगा था. लेकिन वो तब की बात थी. अब उसे ऐसे
कुछ भी खरीदने में जरा सा भी डर नहीं लगता था. उसे लगता था कि धीरे धीरे जिंदगी
खुद को खुद ही एडजस्ट कर लेती है. बस कोई भी काम एक बार करना शुरू कर दो होते होते
वो काम हो ही जाता है. कितने काम ऐसे थे जो शुरू में उसे लगता था कि वो तो कभी कर
ही नहीं पायेगी पर वो काम भी उसने किये और वो काम आज वो पलक झपकते ही कर लेती है.
यह बाते उसे बल देती थी उसके मन को भी.