यह एक ऐसा
प्रश्न है जो बार बार और कई बार हमारे मनो में आता रहता है कि अगर ईश्वर है, अगर
खुदा है, अगर भगवान् है या फिर कोई ऐसी शक्ति है जो हमें चला रही है तो वो शक्ति
या ईश्वर मानव पर होने वाले अत्याचारों को, होने वाली प्राकर्तिक घटनाओं को रोकती
क्यों नहीं.
कई देशों में अब
भी युद्ध चल रहे है या फिर युद्ध जैसे हालात है और वहा औरतो और बच्चो के बहुत बुरे
हाल है. जब सीरिया से ऐसी तस्वीरे आती है खास तौर पर छोटे छोटे बच्चों की तो मन
में बहुत ही टीस उठती है. बड़ा दुःख होता है कि ऐसा क्यों हो रहा है.
भगवान् कुछ करते
क्यों नहीं. आखिर हमें चलाने वाला चुप है क्यूँ. इस प्रश्न का उतर पाने के लिए
हमें सबसे पहले खुद को समझना होगा और फिर ईश्वर को समझना होगा. हम वास्तव में
क्यां है? और ईश्वर वास्तव में क्यां है?
ईश्वर ने कुछ इस
तरह से डिजाईन किया कि सिस्टम में पुण्य भी आपके होंगे और पाप भी आपके होंगे. डर
भी आपके होगे और निडरता भी आपकी होगी. ख़ुशी भी आपकी होगी और दुःख भी. आप इस
मृत्युलोक में रहेंगे भी तब तक जब तक आपके पास पुण्य रहेगे या फिर पाप रहेगे. और
जब तक मन से आप ईश्वर को समझने की कौशिश करते रहेगे तब तक आप इस धरती पर अच्छे और
बुरे का शिकार होते ही रहेगे. क्यूंकि सिस्टम ही कुछ ऐसा है.
भगवद्गीता में एक
श्लोक आता है जिसमे इस बात का जिक्र है कि – ईश्वर न तो हमारे पाप कर्म को और न ही
हमारे पुण्य कर्मो को लेते है किन्तु स्वाभाव ही बरत रहा है. अगर पुण्य और पापों को
लेने का काम ईश्वर नहीं करते तो फिर कौन करता है. जिस सिस्टम का मैंने पीछे जिक्र किया
है वो सिस्टम आपके, हम सबके पुण्य कर्म भी लेता है, पाप भी लेना है और हमें उसका
फल भी देता है.
इस सिस्टम को वेदांत
की भाषा में प्रकृति का नाम दिया गया है. यहाँ ईश्वर अलग है, प्रकृति अलग है और हम
अलग है. और हम अलग इसलिए है क्यूंकि हमने स्वयं को मन समझ लिया है और मन को
एकमात्र सत्य समझ लिया है जबकि मन ही एक तरह से वैसे ही नाशवान है जैसे हमारा
शरीर.
जब तक मन के पर्दे
से, जब तक मन के चश्मे से हम देखते रहेगे तब तक न तो ईश्वर दिखाई देंगे और न ही हम
प्रकृति को समझ पायेगे जिसके कारण अत्याचार भी है और ऐश्वर्य भी है.
कोई भी व्यक्ति जब
दुसरे का बुरा कर रहा होता है या अच्छा कर रहा होता है तो प्रकृति का एक एक कण एक
कैमरे की भांति उस घटना को नोट कर रहा होता है और अपने अन्दर दर्ज भी कर रहा होता
है. जब कोई किसी का बुरा करके कानून से बच कर खुद को चालक समझने लगता है तो भी
प्रकृति के गुण हर दम उस व्यक्ति पर काम कर रहे होते है.
जीवन जन्म-दर-जन्म
बहुत लम्बी चलने वाली एक लम्बी श्रंखला है. हर अगला जन्म प्रकृति के नियम पर और
हमारे कर्मो पर Decide होता है. हम फ्री है
गलत के लिए भी और अच्छे के लिए भी. परन्तु प्रकृति बाध्य है हमें दंड देने के लिए भी
और रिवॉर्ड देने के लिए भी.
हम इस बात को
समझ नहीं पा रहे कि जीवन के पीछे क्यां है? हमने केवल भौतिकता को ही सत्य माना हुआ
है. केवल मटेरियल को ही सच माना हुआ है. केवल धन अर्जित करने को ही सच माना हुआ है.
जबकि की यह अटल सत्य है कि हमारी मृत्यु तो होनी ही है.
तो अत्याचार हम
करते है स्वयं पर न भी भगवान्. असल में यह मन ही अत्याचारी है और यह मन ही आनंद
पैदा करने वाला भी है, एक अति व्यवस्थित व्यवस्थता देना वाला भी है. हम मन की मदद
से जो भी करगे यह प्रकृति, यह विश्वात्मा उसे दर्ज करती रहेगी और बदले में फल देने
के लिए अगले जन्मो में भी अरेंजमेंट करती रहेगी.
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