Friday, 3 May 2019

सिद्धि के लिए 7 गुप्त मार्ग

सिद्धि के लिए 7  गुप्त मार्ग

Yoga My Life


यह मन भी बड़ी कमाल की चीज है. हमारे चारो ओर जो जगत दिखाई दे रहा है वो मन की ही उत्पत्ति है. स्वयं हमारे मन की ही उपज है. लेकिन इस बात को समझना इतना आसान नहीं है कि हमारे मन से ही सब कुछ बना हुआ है. क्यूंकि हमें लगता है कि मन तो खुद मैं ही हूँ और जो बाहर दिखाई दे रहा है वो मन कैसे हो सकता है. विषय बड़ा ही कठिन है. लेकिन है बड़ा ही रोमांचक.

हम सब का मन इस तरह के जगत को देखना चाहता है इसलिए हम सब के लिए इस तरह का जगत है. किन्ही और लोगो के लिए एक अन्य तरह का जगत भी हो सकता है. सब कुछ सोचने पर निर्भर है. जब तक मन में संकल्प विकल्प उठते है और दिखने वाले पदार्थी की और वासना है तब तक जगत का अनुभव होगा ही. और अगर किसी तरह कामनाओं का समापन करके जीवन यात्रा को यदि आत्मदर्शन की और मोड़ दिया जाये तो सारे के सारे अनुभव बदल जायेगे. लेकिन उसके लिए सबसे पहली डिमांड शुद्ध मन की है. मन अगर शुद्ध हो जाये तो मन में उठा हर संकल्प फलीभूत भी होने लगेगा.

सात तरीको से आगे बढ़ा जा सकता है

पहला गुप्त मार्ग 

सबसे पहले शाश्त्र और साधु की संगति
इस से होगा यह की बुद्धि शुद्ध और सूक्ष्म हो जाएगी. यह पहली भूमिका है.

दूसरा गुप्त मार्ग है - विचारणा

इसमें बुद्धि आत्मविचार करना सीख जाती है. बाहर की बाते बाहर ही रह जाती है. विचार अंदर से खुद-ब-खुद उठने लगते है. मन विचारशील हो जाता है.

तीसरा गुप्त रास्ता है - असंगभावना

जो हो दिख रहा है उसमे मन को बाहर निकलना है. किसी भी विषय के संग मन को नहीं रहने देना है.

चोथा गुप्त रास्ता है - विलापनी

इसमें योगी अपनी सारी की सारी वासनाएं विलीन कर देता है. उसके चित में कोई कामना नहीं रहती.

पांचवा गुप्त रास्ता है - आनन्दरूपा

इसमें योगी का चित अति शुद्ध हो जाता है और वो आनन्द में निमग्न रहता है. जगत का भान नहीं रहता. अगर रहता है तो केवल आनन्द रहता है.

छटा गुप्त रास्ता - स्वसवेंदनरूपा 

इस अवस्था में योगी संसार में रहते हुए भी संसार में रहता हुआ प्रतीत नहीं होता. उसको केवल आत्मा का ही भान रहता है. मन विलीन हो चूका होता है. वो साधक हमेशा आत्मा के आनन्द में होता है. यह स्थिति बिलकुल ही अलग है. इस अवस्था को मुक्ति भी कहते है.

सातवाँ गुप्त रास्ता - परिप्रोढ़ा अवस्था

यह परम निर्वाण की स्थिति है. जिसका अनुभव शरीर के साथ नहीं किया जा सकता अथार्त जीवित रहते हुए नहीं किआ जा सकता. इसको विदेह मुक्ति भी कहते है.
यह एक यात्रा है जो हमारी शारीरिक यात्रा से बिलकुल अलग है. लेकिन हमारा झुकाव हमेशा से ही शारीरिक यात्रा ही रहा है हमने मन की सारी की साडी शक्तियों को भी इस शरीर पर ही लगा रखा है.

3 comments:

  1. बहुत अद्धभुत ओर गहरा ज्ञान 🙍‍♂️🙏

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  2. U r knowledge looking deep,regarding yoga,I hope u will and my qn?what is secrect phenomena behind the,parkaya pravesa,27 centre I hope u done, this,
    I have some mantra regarding parkaya pravesa,but need practice of yoga,I hope u will provide,regard information

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