मनुष्य का मन
मन ही हर
समस्या का मूल है और मन ही हर सफलता के पीछे की ताक़त भी है. ब्रह्मबिन्दु उपनिषद के
अनुसार मनुष्य का मन दो प्रकार का होता है. शुद्ध मन और अशुद्ध मन. अशुद्ध मन वो
होता है जिसमें बहुत सारी कामनाएं एक साथ चलती रहती है. शुद्ध मन वो होता है जो
कामनारहित होता है. जिस मन में किसी प्रकार की कोई भी ईच्छा नहीं होती केवल वही मन
शुद्ध होता है.
ब्रह्मबिन्दु
उपनिषद आगे कहता है कि अशुद्ध मन इस संसार में बंधन का कारण होता है और शुद्ध मन
मुक्ति का कारण होता है. इस संसार में सुख पूर्वक जीवन बिताने के लिए शुद्ध मन की
जरुरत होती है. जन्म मरण के बंधन से मुक्त करने के लिए शुद्ध मन की ही जरुरत होती
है.
वेदांत
कहता है कि मुक्ति की ईच्छा वाले मनुष्य को सबसे पहले चाहिए कि वो अपने मन को शुद्ध
करे. मन को शुद्ध करना का साधारण सा तरीका ब्रह्मबिन्दु उपनिषद में यह बताया है कि
मन को कामनारहित किया जाये. हालाँकि यह जितना आसान लगता है उतना आसान है नहीं. परन्तु
मन को शुद्ध करने का एकमात्र तरीका है एक ही.
मन को
शुद्ध करने की प्रक्रिया में मन का निरोध करना होता है. मन को हर संभव तरीके से
रोकना होता है. उसके लिए वेदांत में पतंजलि योग सूत्र में तरह तरह के साधन दिए है.
योग आसन, प्राणायाम, ध्यान, मन्त्र साधना और अन्य कई प्रकार की साधनाएं विभिन्न
धर्मो के धर्म ग्रंथो में दी गयी है.
ब्रह्मबिन्दु उपनिषद कहता है कि जब तक मन का नाश
न हो जाये तब तक मन का निरोध करते रहना चाहिए. श्रीमद्भगवद्गीता में भगवन श्री कृष्ण
भी यही सलाह देते है.
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