Saturday, 7 March 2020

क्या होता है जब कोई ऋषि समाधि में जाता है?


क्या होता है जब कोई ऋषि समाधि में जाता है


समाधि शब्द आपने कई बार सुना होगा. हम सुनते आये है प्राचीन ऋषि समाधि अवस्था में चले जाते थे. आज भी उच्च कोटि के साधक समाधिस्थ हो जाते है. आज हम आसान भाषा में यह समझेगे कि यह समाधि वास्तव में है क्या?

समाधि ध्यान के बाद की अवस्था है और ध्यान एक घटना है. जोकि एक तरह से मन के हटने के बाद घटित होती है. ध्यान से पहले प्रत्याहार होता है. प्रत्याहार को हमें समझना होगा. हम लगातार अपनी चेतना को अपनी पांच इन्दिर्यों के माध्यम से खोते चले जा रहे है. हमारा माइंड ही एक तरह का पदार्थ है जो हमारी चेतना को संसार में उलझाये रखने में सक्षम है. हमारा मन हमें हमारी चेतना को नहीं समझने देता. हमारा मन हमें कुछ क्षणों के लिए भी नहीं ठहरने देता जिस से कि हम खुद के होने को समझ सके. यानि हम चेतन और अचेतन में फर्क समझ सके.



इसलिए खुद को समझने की प्रक्रिया में अगर कोई हमारा शत्रु है तो वो हमारा मन ही है. इसलिए साधना में हमारी पहली लड़ाई हमारे खुद के मन से ही होती है. ध्यान से पहले हमें अपने मन को अपनी पाच इन्दिर्यों से अलग करना होता है. मन को अपनी इन्द्रियों से हटाना ही प्रत्याहार है.

लेकिन इसके लिए सबसे पहले हमें अपने मन को शुद्ध करना होता है. मन को शुद्ध करने का मतलब होता है कि मन को कामना रहित करना. मन तब तक अशुद्ध होता है जब तक उसमे कामनाएं होती है. शुद्ध मन से ही ध्यान की और बढ़ा जा सकता है. अशुद्ध मन हमें हमेशा संसार को और ही बनाये रखता है. अगर हमारी सोच केवल संसार है तो समझ लीजिये कि हमारा मन अशुद्ध है.

समाधि में मन नहीं होता. इसलिए सही मायने में हम समाधि को शब्दों में बयां नहीं कर सकते. समाधि अपने ही मन के परे की एक स्थिति है.   



प्रत्याहार के बाद एक ही विचार की धारणा की जाती है. एक ही विचार जब लम्बे समय तक चलता है तो एक समय ऐसा आता है जब ध्यान घटता है. ध्यान में समय का आभास भी नहीं रहता. कब ध्यान करने बैठे और कब तक वो ध्यान चला इस बात का पता ही नहीं चल पाता. ध्यान जब लम्बे समय तक घटने लगता है तो साधक समाधि में जाने लगता है. समाधि की भी कई अवस्थाएं होती है. समाधि में शुरू के मन से परे के आभास होते है. परन्तु वो आभास साधक मन से जुड़ कर ही सोचने लगता है. फिर साधक खुद के होने के अनुभव को पाने लगता है. जब खुद केहोने के अनुभव को पा लेता है तो उसे खुद को कैसे छोड़ना है यह बात समझ आ जाती है.

इस तरह से एक आवरण से दुसरे आवरण को तोड़ता हुआ साधक परम विराम पर पंहुच जाता है जोकि समाधि की अंतिम अवस्था है. जिसे हम निर्वाण कह सकते है, मुक्ति कह सकते है.

Friday, 6 March 2020

साधना में भगवान् को कैसे महसूस करे


साधना में भगवान् को कैसे महसूस करे



भगवान् कोई व्यक्ति नहीं है जिन्हें हम देख कर या उनकी कोई तस्वीर देख कर उन्हें याद कर सके. तो फिर साधना में, ध्यान में कैसे ईश्वर की अनुभूति करे. यह एक बड़ी समस्या है. एक तरह से यह एक रिसर्च का विषय है. विज्ञानं में जब किसी चीज की खोज करनी होती है. उसे सबसे पहले एक अज्ञान वैल्यू मन जाता है. उसके बाद उसे बाद उसे Mathematically prove किया जाता है.



वेदान्त भी हमें इसी तरह से करने के लिए कहता है कि पहले ईश्वर को कुछ मान लो. ईश्वर के असली रूप का चिंतन नहीं किया जा सकता. सच्चाई यह है कि हम अपने मन से “उसे” न तो सोच सकते है और न ही अनुभव कर सकते है. हमारा मन pictures की भाषा समझता है. इसलिए हमें अपने मन के अनुसार ही चलना होगा. हमें इस बात को समझना होगा कि हम मन रूपी आवरण के अंदर है. क्यूंकि हम अपने ही मन के अंदर है और हमारा मन प्रकृति के अंदर है और प्रकृति ईश्वर के अंदर है इसलिए हमें शुरुआत में अपने ही मन को पार करने के लिए अपने मन को साधना होगा.

(Whatsaap +91 93 158 35440)


उपनिषद हमारी इस मामले में बहुत मदद करते है - ब्रह्माबिंदु उपनिषद हमें सीधेतौर पर हमें बताता है कि - प्रथम स्वर में मन को लगा कर फिर अस्वर की धारणा करनी चाहिए. इसका आसान शब्दों में मतलब है कि पहले हम सगुण रूप को धारण करते हुए फिर हमें निर्गुण की धरना करनी चाहिए.



एक शब्द यहाँ आया है - धारणा. इसे समझने के लिए पतंजलि के अष्टांग योग को समझना होगा. क्यूंकि उसके बिना हम न तो ध्यान को समझ पायेगे और न ही साधना को.

पतंजलि योग सूत्र के 8 अंग

1   
  1. यम
  2. नियम
  3. आसन
  4. प्राणयाम
  5. प्रत्याहार
  6. धारणा
  7. ध्यान
  8. समाधि



यहाँ धारणा आती है प्रत्याहार के बाद. प्रत्याहार में हम अपने मन को अपनी इन्द्रियों से निकल चुके होते है. उसके बाद एक ही विचार पर मन को टिकाया जाता है. केवल और केवल एक ही विचार को ही लम्बे समय तक चिंतन किया जाता है.

यह एक खास नियम है कि एक ही विचार मन में लम्बे समय तक रखा जाये तो मन एक समय बाद निरुस्त हो जाता है और यह वो समय होता है जब हम ध्यान में प्रविष्ट होते है. सब कुछ टेक्निकल है.



लेकिन शुरुआत जैसे कि मने बताया कि सगुण से ही होनी चाहिए. लेकिन सगुण में भी अटक नहीं जाना है. क्यूंकि सगुण उपासना एक तकनीक है उसे प्रयोग करके आगे का रास्ता तय करना होता है.

आप अपने धर्मानुसार किसी देवता या ईश्वर के किसी भी रूप को जेहन के रखते हुए ध्यान कर सकते है. यह एक सगुण उपासना होगी.

Wednesday, 4 March 2020

मनुष्य का मन


मनुष्य का मन



मन ही हर समस्या का मूल है और मन ही हर सफलता के पीछे की ताक़त भी है. ब्रह्मबिन्दु उपनिषद के अनुसार मनुष्य का मन दो प्रकार का होता है. शुद्ध मन और अशुद्ध मन. अशुद्ध मन वो होता है जिसमें बहुत सारी कामनाएं एक साथ चलती रहती है. शुद्ध मन वो होता है जो कामनारहित होता है. जिस मन में किसी प्रकार की कोई भी ईच्छा नहीं होती केवल वही मन शुद्ध होता है.



ब्रह्मबिन्दु उपनिषद आगे कहता है कि अशुद्ध मन इस संसार में बंधन का कारण होता है और शुद्ध मन मुक्ति का कारण होता है. इस संसार में सुख पूर्वक जीवन बिताने के लिए शुद्ध मन की जरुरत होती है. जन्म मरण के बंधन से मुक्त करने के लिए शुद्ध मन की ही जरुरत होती है.

वेदांत कहता है कि मुक्ति की ईच्छा वाले मनुष्य को सबसे पहले चाहिए कि वो अपने मन को शुद्ध करे. मन को शुद्ध करना का साधारण सा तरीका ब्रह्मबिन्दु उपनिषद में यह बताया है कि मन को कामनारहित किया जाये. हालाँकि यह जितना आसान लगता है उतना आसान है नहीं. परन्तु मन को शुद्ध करने का एकमात्र तरीका है एक ही.




मन को शुद्ध करने की प्रक्रिया में मन का निरोध करना होता है. मन को हर संभव तरीके से रोकना होता है. उसके लिए वेदांत में पतंजलि योग सूत्र में तरह तरह के साधन दिए है. योग आसन, प्राणायाम, ध्यान, मन्त्र साधना और अन्य कई प्रकार की साधनाएं विभिन्न धर्मो के धर्म ग्रंथो में दी गयी है.



 ब्रह्मबिन्दु उपनिषद कहता है कि जब तक मन का नाश न हो जाये तब तक मन का निरोध करते रहना चाहिए. श्रीमद्भगवद्गीता में भगवन श्री कृष्ण भी यही सलाह देते है.

Tuesday, 3 March 2020

गीता में श्री कृष्ण ने दिया है सफलता का एक सूत्र

श्रीमद्भगवद्गीता ऊपरी तौर पर युद्ध की एक कहानी लगती है. लेकिन वास्तव में यह हमारे मन की कहानी है. हर किसी के मन की कहानी. चाहे व्यक्ति किसी भी धर्म का हो किसी भी सम्प्रदाए का हो भगवद्गीता हर मन का सटीक बैठती है. धर्म से परे का ग्रन्थ है भगवद्गीता. 


भगवान् श्री कृष्ण अर्जुन को समझा रहे है. अर्जुन ही हम सबका मन है. हम सबके मनों का प्रितिनिधित्व है अर्जुन.
सफलता का एक खास राज़. यह बड़ा ही असाधारण है. इसमें आपको दिन में कुछ समय दुसरो के लिए निकालना होता है. 

इसमें बिना कुछ सोचे केवल योग्य व्यक्ति की मदद करनी होती है. श्री कृष्ण कहते है कि ऐसा करने से न केवल आपका यह जीवन सुधरेगा बल्कि परलोक भी सुधरेगा. 



दिन में कम से कम एक व्यक्ति की या कम से कम एक मदद प्रकृति की अवश्य करनी है. मदद करने के बहुत सारे तरीके है. मदद केवल धन से नहीं बल्कि किसी के चेहरे पर मुस्कान लाकर भी की जा सकती है. किसी को अच्छी सलाह देकर भी की जा सकती है.

प्रकृति हम सब की माता है. प्रकृति की मदद करने से हर किसी की मदद होने लगती है. श्री कृष्ण बताते है कि जो इस प्रकृति की मदद करेगा प्रकृति उसकी मदद करना शुरू कर देगी. 



यह एक नियम है. एक शाश्वत नियम. भगवन श्री कृष्ण अर्जुन को ऐसा करने के लिए कहते है. ताकि अर्जुन मन रूपी युद्ध को जीत सके और अपने अस्ल्ली स्वरुप को पहचान ले. 

Sunday, 5 May 2019

क्या कहते है आपके चक्र - सात चक्रों की कहानी




भारतीय दर्शन के अनुसार मनुष्य के भौतिक शरीर के अन्दर के प्राण शरीर होता है, जोकि प्राण उर्जा से बना होता है. यही प्राण उर्जा ही मनुष्य को जीवित बनाये रखती है. इसी उर्जा के अलग अलग पुंज है इस शरीर में जोकि अलग अलग फ्रीक्वेंसी पर कार्य कर रहे है. उर्जा के इन्ही पुंजो को हम योग की भाषा में चक्र कहते है.

इसमें दो बाते है एक तो प्राण शक्ति और दूसरी हमारी चेतना या हमारा अवेयरनेस. प्राण उर्जा के विभिन्न पुंजो से यही मतलब निकलता है कि जब हम एक चक्र से दुसरे चक्र तक यात्रा करते है तो हमारी चेतना का स्तर बढ़ जाता है. अब इसका क्या मतलब हुआ? इसका मतलब यह है कि आज हम जो जीवन जी रहे है और आज जो हमारी विचार धारा है, जो हमारी सोच है अच्छी है या बुरी है, यदि हमने अगला पड़ाव किसी तरह से पा लिया तो सब कुछ बदल जायेगा, हमारे विचार, हमारा व्यक्तित्व और हमारे लिए यह संसार भी. तो जब हम एक चक्र से दुसरे चक्र तक आगे बढ़ेगे तो प्राण शक्ति और चेतना या अवेयरनेस यह दोनों ही बढ़ जाएगी.

विज्ञानं कहता है कि मनुष्य अपने जीवन में अपने अपार Mind का या Brain का केवल कुछ Percent हिस्सा ही प्रयोग करता है या फिर कर पाता है और यदि किसी तरीके से वो अपने Mind के hidden हिस्से तक पहुच जाये तो Super Human बन सकता है इसमें कोई भी शक नहीं है. पर विज्ञानं यह बात इस सदी में कह रहा है और हमारे Spiritual साइंटिस्टों ने हमारे ऋषियों के यह बात तब ही कह दी थी जब उनके मनों में वेदों का उदय हुआ था.

चेतना बढ़ेगी तो समझ बढ़ेगी और समझ बढ़ेगी तो सब कुछ ही समझ आना शुरू हो जायेगा फिर वो चाहे अध्यातम हो या फिर विज्ञानं या फिर टेक्नोलॉजी कुछ भी हो.

योग कहता है कि जब मनुष्य मन मूलाधार चक्र पर यात्रा कर रहा होता है तो उसकी सारी अवेयरनेस स्वयं पर होती है और वो केवल और केवल खुद के लिए सोचता है यानि उसकी हर सोच का आधार वो खुद ही होता है. पर जैसे जैसे उसकी चेतना के स्तर बढ़ते है तो वो दुसरो के लिए सोचना शुरू कर देता है और यहाँ तक की एक समय ऐसा भी आता है उसे एक फूल तोड़ने पर भी कष्ट होता है उसे लगता है कि फूल को दर्द हुआ होगा, टहनी को दर्द हुआ होगा. इसके साथ साथ जितना उसका दर्द बढ़ता है उतनी उसकी उस प्रकृति को जानने की क्षमता भी बढती चली जाती है. इसलिए मूलाधार चक्र से आज्ञा चक्र की यह यात्रा कमाल की है, इतनी कमाल की है कि आपने इसकी कल्पना भी नहीं की होगी.

तीन नाड़ियाँ है इड़ा, पिंगला और सुष्म्ना इन नाड़ियों का जिक्र मैंने अपने कई विडियो में किया भी है. फिर भी मोटे तौर पर मैं बता देता हूँ मूलाधार चक्र से आज्ञा चक्र तक यह नाड़ियाँ बह रही है और इस passage में यह कई जगहों पर यह क्रॉस करती है और जहाँ यह क्रॉस करती है उस जगह की फ्रीक्वेंसी को हम एक चक्र कहते है. तो एक चक्र से दुसरे चक्र तक जाने से क्या बढ़ता है - एक तो प्राण उर्जा की फ्रीक्वेंसी और दूसरा चेतना या अवेयरनेस का स्तर. जो इडा नाडी है वो अवेयरनेस बढ़ा रही है और जो पिंगला नाडी है वो प्राण उर्जा बाधा रही है.

इसलिए ही इन दोनों नाड़ियो को बैलेंस किया जाता है कि सब कुछ ठीक से कार्य करता रहे. अगर प्राण उर्जा के इन पुंजो में कुछ प्रॉब्लम आती है तो वो बिमारियों के रूप में आपके सामने आ जाती है इस बात को आप समझ ले. इसका मतलब यह भी है कि प्राण उर्जा के बहाव को यदि ठीक कर लिया जाये तो बड़ी से बड़ी बीमारी से भी निज़ात पाया जा सकता है.

चक्रों को जागृत करने के तरीके कई है. मन को कण्ट्रोल करके भी और भारतीय पध्धति के अनुसार योग आसन से भी चक्रों को जागृत किया जा सकता है. अब चक्र को जागृत करने का क्या मतलब हो सकता है? इसका मतलब यह है की अपने आप को और ज्यादा समझना, अपने ही मन के छिपे हुए हिस्सों तक पहुचना, अपने अन्दर उन शक्तियों को उजागर कर लेना जो आपके अन्दर पहले से है ही. फिर एक दिन यह समझ लेना कि मैं अन्दर भी हूँ और बाहर भी हूँ, यह जल भी मैं हूँ, यह पर्वत भी मैं हूँ, यह हवा भी मैं हूँ, यह बदल भी मैं हूँ और यह आकाश भी मैं हूँ. कई बार साधक अपने जीवन में ध्यान के उपरांत कुछ समय के लिए इस जुडाव को महसूस भी करते होगे.

चक्र है यह हमने समझ लिया पर इन चक्रों के यंत्र भी है यंत्र यानि उस फ्रीक्वेंसी की तस्वीर. अब यह तस्वीर या यंत्र कहा से आ गया होगा, क्यूंकि आज के बायो-फीड बैक यंत्रो से किसी भी वस्तु या जीव के चारो ओर का औरा तो picture किया जा सकता है पर यंत्र नहीं. फिर यह चक्रों के यह यंत्र कहा से आ गए. योग में एक शब्द आता है प्रत्याहार और भारतीय भाषा विज्ञानं में एक शब्द आता है "पश्यन्ति". इन दोनों से हमें इन यंत्रो के होने का जवाब मिल जायेगा.

प्रत्याहार का मतलब है इन्द्रियातीत हो जाना और "पश्यन्ति" का मतलब है कि भाषा का वो रूप जहाँ मन भी चुप जो जाता है और जो कुछ भी घटित होता है वो अपने आप ही आता है, पर आता कहा से है "परा" से. इसी तरीके से ही यह यंत्र आये, इन यंत्रो को इनके अन्दर के रंगों को किसी ने युहीं नहीं बना दिया. यंत्र है, उस यंत्र की Shape है उसमे तरह तरह के रंग भी है, आकृति में भी आकृति है बहुत कुछ है, पर आया  "पश्यन्ति" से ही है. जो हमारे ऋषियों को तब दिखाई दिया था वो हमें अब भी दिख सकता है, और दिखता भी है थोड़ा रंगों में भेद हो सकता है. कही कुछ गया नहीं है, तब भी था, अब भी है, और आगे भी रहेगा.

Friday, 3 May 2019

सिद्धि के लिए 7 गुप्त मार्ग

सिद्धि के लिए 7  गुप्त मार्ग

Yoga My Life


यह मन भी बड़ी कमाल की चीज है. हमारे चारो ओर जो जगत दिखाई दे रहा है वो मन की ही उत्पत्ति है. स्वयं हमारे मन की ही उपज है. लेकिन इस बात को समझना इतना आसान नहीं है कि हमारे मन से ही सब कुछ बना हुआ है. क्यूंकि हमें लगता है कि मन तो खुद मैं ही हूँ और जो बाहर दिखाई दे रहा है वो मन कैसे हो सकता है. विषय बड़ा ही कठिन है. लेकिन है बड़ा ही रोमांचक.

हम सब का मन इस तरह के जगत को देखना चाहता है इसलिए हम सब के लिए इस तरह का जगत है. किन्ही और लोगो के लिए एक अन्य तरह का जगत भी हो सकता है. सब कुछ सोचने पर निर्भर है. जब तक मन में संकल्प विकल्प उठते है और दिखने वाले पदार्थी की और वासना है तब तक जगत का अनुभव होगा ही. और अगर किसी तरह कामनाओं का समापन करके जीवन यात्रा को यदि आत्मदर्शन की और मोड़ दिया जाये तो सारे के सारे अनुभव बदल जायेगे. लेकिन उसके लिए सबसे पहली डिमांड शुद्ध मन की है. मन अगर शुद्ध हो जाये तो मन में उठा हर संकल्प फलीभूत भी होने लगेगा.

सात तरीको से आगे बढ़ा जा सकता है

पहला गुप्त मार्ग 

सबसे पहले शाश्त्र और साधु की संगति
इस से होगा यह की बुद्धि शुद्ध और सूक्ष्म हो जाएगी. यह पहली भूमिका है.

दूसरा गुप्त मार्ग है - विचारणा

इसमें बुद्धि आत्मविचार करना सीख जाती है. बाहर की बाते बाहर ही रह जाती है. विचार अंदर से खुद-ब-खुद उठने लगते है. मन विचारशील हो जाता है.

तीसरा गुप्त रास्ता है - असंगभावना

जो हो दिख रहा है उसमे मन को बाहर निकलना है. किसी भी विषय के संग मन को नहीं रहने देना है.

चोथा गुप्त रास्ता है - विलापनी

इसमें योगी अपनी सारी की सारी वासनाएं विलीन कर देता है. उसके चित में कोई कामना नहीं रहती.

पांचवा गुप्त रास्ता है - आनन्दरूपा

इसमें योगी का चित अति शुद्ध हो जाता है और वो आनन्द में निमग्न रहता है. जगत का भान नहीं रहता. अगर रहता है तो केवल आनन्द रहता है.

छटा गुप्त रास्ता - स्वसवेंदनरूपा 

इस अवस्था में योगी संसार में रहते हुए भी संसार में रहता हुआ प्रतीत नहीं होता. उसको केवल आत्मा का ही भान रहता है. मन विलीन हो चूका होता है. वो साधक हमेशा आत्मा के आनन्द में होता है. यह स्थिति बिलकुल ही अलग है. इस अवस्था को मुक्ति भी कहते है.

सातवाँ गुप्त रास्ता - परिप्रोढ़ा अवस्था

यह परम निर्वाण की स्थिति है. जिसका अनुभव शरीर के साथ नहीं किया जा सकता अथार्त जीवित रहते हुए नहीं किआ जा सकता. इसको विदेह मुक्ति भी कहते है.
यह एक यात्रा है जो हमारी शारीरिक यात्रा से बिलकुल अलग है. लेकिन हमारा झुकाव हमेशा से ही शारीरिक यात्रा ही रहा है हमने मन की सारी की साडी शक्तियों को भी इस शरीर पर ही लगा रखा है.

Thursday, 2 May 2019

क्या आज भी कोई अजेय बन सकता है?


जब आपको कोई हरा नहीं सकेगा?



क्या कोई व्यक्ति के रूप में अजेय बन सकता है इस धरती पर. और अगर बन सकता है तो कैसे? यहाँ अजेय का मतलब है कि किसी भी हथियार से उसे जीता नहीं जा सके. यानि किसी भी तरह उसे जीता ही नहीं जा सके. आज हर देश तरह तरह के हथियार बना कर अपने आप को सुरक्षित करने में लगा रहता है. जो हथियार नहीं बना सकते वो उन्हें दुसरे देशो से खरीद कर खुद को सुरक्षित समझते है. आज हर देश और हर व्यति बारूद के ढेर पर बैठा है और के एकर प्रकार से कोई भी सुरक्षित नहीं है. और अजेय तो कोई है ही नहीं.

लेकिन जो मैं बताना चाह रहा हूँ वो हथियारों से अजेय होने की बात नहीं है. हा अजेय होने के लिए बेशक हथियारों की तो जरुरत पड़ती ही होगी. लेकिन मैं अजेय होने के एक ऐसे तरीके की बात कर रहा हूँ जो हिन्दू शाश्त्रो में देवता और असुर प्रयोग करते थे. ऐसा नहीं है कि उनकी मृत्यु नहीं हुई. मृत्यु हुई; क्यूंकि मृत्यु अटल है. मृत्यु भी एक घटना है जिसको होना ही है परन्तु मृत्य अंत नहीं है इसलिए मृत्यु से डरने को आवश्यकता नहीं है.

तो मैं बात कर रहा था कि वो कौन से सीक्रेट थे जिनकी मदद से देवताओं और असुरों ने कुछ ऐसे लोग पैदा किये थे जो अजेय थे.

भारतीय शाश्त्रो में देवताओं और असुरों की कहानियों में जीवन के पीछे की सच्चाइयों को छोटी छोटी कहानियों के माध्यम से समझाया गया है. हालाकि इनमे बहुत सारी कहानियां सिंबॉलिक है और आम जन को समझाने के लिए कही गयी है.

देवता देवलोक में रहते थे और असुर पाताललोक में रहा करते थे. इन दोनों के बीच युद्ध चलते रहते थे और जैसे आज तरह तरह के हथियार डेवेलोप किये जा रहे है उस समय भी तरह तरह के प्रयोग मानव पर होते थे यानि मानव और उसके पीछे चल रही शक्ति को समझा जाता था और उसके अनुसार मानव देह में ही शक्तियां पैदा की जाती थी. हथियारों का भी प्रयोग होता था परन्तु वो सेकेंडरी बात थी. प्राइमरी बात ऐसे मानव पैदा करने की होती थी जिन्हें जीता ही नहीं जा सकता था.

यह बात पराशक्ति से सम्बंधित है. क्यूंकि हम केवल खुद को मनुष्य शरीर ही समझते है हम भूल जाते है कि इस शरीर के साथ साथ हमारा एक मन भी है. फिर हम यह भी भूल जाते है इस शरीर के पीछे एक और शक्ति भी है जिसे हम आत्मा कहते है. हम अगले जन्म को सवारने में तो लगे रहते है परन्तु जीवन के पीछे चल रही साइंस को भूल जाते है. देवता और असुर शरीर के साथ साथ मन और आत्मा की शक्तियों का प्रयोग करके बड़े बड़े किया युद्ध करते थे.

ऐसा ही एक युद्ध चल्र रहा था देवताओं के राजा इंद्र और असुरों के राजा शम्बर. शम्बर पराशक्ति का बहुत बड़ा जानकर था. उसने पराशक्ति के विज्ञानं को समझा और अपनी शक्ति से 3 दैत्यों को उत्पन्न किया. हम जब पैदा होते है तो शरीर तो हमारा होता ही है साथ में मन रूपी सॉफ्टवेयर भी होता है जिसमे हमारे जीने के ढंग, हमारे काम करने के ढंग, हमारे समझने के ढंग, हमारे बात करने के ढंग; सब कुछ भरा होता है.

पराशक्ति से अधिक बलवान न कोई हुआ है और न ही कोई हो सकता था. असुरों के राजा शम्बर इस बात को समझता था कि हम सब उस पराशक्ति का ही एक अंश है और इस तरह से हम सब के सब शक्तिशाली है चाहे कोई देवता हो वो भी शक्तिशाली है और चाहे कोई असुर हो वो भी उतना जी शक्तिशाली है. परन्तु फिर भी हम में से कोई भी उस शक्ति जितना शक्तिशाली नहीं है. जब हम है ही उस शक्ति का अंश तो फिर हम उतने शक्तिशाली क्यूँ नहीं है जितनी वो शक्ति है. ऐसी क्या बात है जो हमें उस असीम शक्ति की शक्तियों से अलग करती है.

सोचते सोचते असुर राजा एक सही निष्कर्ष पर पहुच ही गया कि हमारा अहम् हमें उस शक्ति की शक्तियों से अलग करता है. अपने अहम् के कारण ही हम खुद को उस शक्ति से अलग समझ कर जीने लगते है तो उसी समय हम पराशक्ति से जुदा हो जाते है. तो अगर किसी तकनीक से जो असुर मैंने पैदा किये है उनमे से अहम् निकल दिया जाये तो वो अपने आप ही पराशक्ति की शक्तियों से जुड़े रहेगे और उन्हें कोई नहीं हरा पायेगा. और राजा शम्बर ऐसा करने के लिए सक्षम हो गया. और एक तकनीक की मदद से जो उसने असुर देवताओं से लड़ने के लिए अपने बल से पैदा किये थे उनके मन से वो अहम की भावना निकलने में कामयाब हो गया.
3 दैत्य जिनमे नाम थे दम, व्याल और कट. इन दिनों में अहम् भाव नहीं था और न ही किसी प्रकार की कामना, वासना इनके मनों में प्रकट होती थी. बस जिस कार्य के लिए उनकी उत्पति हुई थी केवल उन्ही कार्य कर करने के लिए उनकी निष्काम प्रवृति थी. जो वो कार्य करेगे उस से क्या लाभ या हानि होगी इस तरह की बाते उनके मनों में लेशमात्र भी नहीं थी.
इन तीनो को जब देवताओं से लड़ने के लिए भेजा गया तो देवताओं के खेमे के कोहराम मच गया. इनके सामने युद्ध में कोई भी नहीं टिक पा रहा था चाहे कोई कितना भी सूरमाँ  ही क्यों न हो.

अब देवता मैदान छोड़ कर भागने लगे. जब देवता भागते थे तो सीधे ब्रह्मा जी के पास जाते थे अपनी समस्या को लेकर. इस बार भी उन्होंने ऐसा ही किया. देवताओं में ब्रह्मा जी को अपनी समस्या के बारे में अवगत कराया तो ब्रह्मा जी ने ध्यान के जाकर विचार किया तो उन्हें सब बात समझ में आई. उन्होंने बताया कि जो 3 दैत्य आप लोगो से युद्ध करके आप लोगो हरा रहे है उनके अंदर अहंभाव नहीं है और इसलिए वो पराशक्ति की शक्ति के साथ ही युद्ध कर रहे है इसलिए उन्हें तब तक नहीं हराया जा सकता जब तक वो अहम रहित है. वो निष्कामता से युद्ध कर रहे है और उन्हें निष्काम भाव के साथ युद्ध करने के लिए ही पैदा किया गया है.  आप लोगो के पास अगर कोई विकल्प है तो वो यह है कि आप उनमे किसी तरह से अहम भाव पैदा कर दे तो आप बड़ी ही आसानी से उन्हें हरा पायेगे. क्यूंकि अहम् भाव पैदा होते ही उनमे कामना पैदा होगी और कामना पैदा होते ही मृत्यु भाव अपने आप ही पैदा हो जायेगा.

देवताओं में इस तरह से हालात पैदा किये कि उन तीन असुरों में अहम् भाव पैदा हो जाये परन्तु वो ऐसा नहीं कर सके. क्यूंकि उन तीन दैत्यों को बनाया ही इस तरह से गया था कि किसी भी तरीके से उनमे अहम् पैदा किया ही नहीं जा सकता था. देवता अपने कार्य में सफल नहीं हो पा रहे थे तब उन्होंने भगवान् विष्णु की मदद से उन तीन दत्यों को समाप्त किया और उन तीन दैत्य को भगवान विष्णु ने अपने धाम में जगह दी.

हमारा विषय था कि क्या अजेय बना जा सकता है. उसका जवाब मैंने आपको दे दिया कि अजेय भी बना जा सकता है. उसके लिए हमें अपने अहम को हटाना होगा. जैसे हम अहम् को हटायेगे तो उसी समय डर गायब हो जायेगा. दुनियां का सबसे बड़ा डर मृत्यु का डर है जो अहम् के गायब होते ही पलक झपटे गायब हो जायेगा. फिर व्यक्ति पराशक्ति से अपने आप ही जुड़ जायेगा और उसे इस दुनियां की कोई भी ताक़त हरा नहीं पायेगी.