Thursday, 13 December 2018

सुरभि भाग 2


Surbhi Part II

देर शाम से देर रात तक वो अक्सर टीवी देखा करती ओर इन्टरनेट पर सोशल नेटवर्क से जुड़े रहना तो जैसे जिन्दगी का एक अंग ही था. हो भी क्यूं नहीं आखिर इन्टरनेट पर भी तो लोग ही थे. उसकी सभी सहेलियां फेसबुक पर थी उसका भी अच्छा खासा प्रोफाइल था फेसबुक पर. उसे फेसबुक पर अपने दोस्तों  के साथ बहुत कुछ साँझा करना अच्छा लगता था. जैसे वो पिछले दिनों शिमला गयी थी तो उसने लगभग अपनी सारी तस्वीरें फेसबुक के साथ साथ इंस्टाग्राम पर भी डाली थी ओर इतने सारे कमेंट्स आये थे.

इनमें से काफी कमेंट्स तो उसकी क्लास के लड़कों के ही थे. पर कमेंट्स किसी के भी हो उसे अच्छा तो लगता ही था. पर एक बात थी कि जब भी कोई पोस्ट डालो तो मन में लगा रहता था कि जल्दी से देखो की कोई और कमेंट आया होगा. शायद इसलिए ही लोग सोशल नेटवर्क पर व्यस्त रहते होगे. आखिर अपनी अपनी पोस्ट पर तो सबको उमींद रहती ही है. उसे तब बड़ा अजीब लगता था जब वो कोई पोस्ट डाले ओर उसके तुरंत बहुत सारे लाइक्स नहीं आये तो. कभी कभी तो गुस्सा भी आता था अगर जल्दी से लाइक्स नहीं आये तो. फिर Whatsapp पर मस्ती करना तो उसे सबसे अच्छा लगता था.

उसकी मम्मी को यह सब बिलकुल पसंद नहीं था. पर सुरभि के पास अपनी मोम को चुप करवाने का सबसे बेहतरीन जवाब था – कि मम्मी आपको नहीं मालूम की सोशल नेटवर्क पर कितना सिखने को मिलता है. बस इस बात पर उसकी मम्मी चुप हो जाती है. यह बात कुछ हद तक सच भी थी. किसी चीज को अगर सही तरीके से प्रयोग करो तो उससे फायदा ही होता है ओर उसी चीज को बुरे के लिए प्रयोग करो निश्चित तौर पर हानि ही होती है. रसोई के चाकू को ही ले लो. पिछली बार रसोई का कुछ कम करते उसकी ऊँगली कट गयी थी. उसी वक़्त उसके दिमाग में आया था घर में जब वो अकेली होती है ओर उसे डर लगता है तो वो यह चाकू अपने पास रखा करेगी. तभी से एक तरह से उसका डर भी कुछ कम हो गया था.

उसकी मम्मी एक धार्मिक महिला था. उनका मन बिलकुल साफ़ था. उनकी एक ही लड़की थी सुरभि. सुरभि के पिता का अच्छा खासा बिज़नस था. इसलिए रुपये-पैसे का सुरभि की जिन्दगी में कोई अभाव नहीं था. सुरभि की मम्मी दिन भर अपने काम में व्यस्त रहती. उसकी माँ घर का सारा काम खुद ही करती थी. बहुत से व्रत भी रखती थी. उसके बाद जो भी समय मिलता उसमे वो माँ दुर्गा की उपासना किया करती.

जिस दिन माँ का व्रत होता उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगता था कि उसकी माँ भूखी रहे. वैसे रसोई में काम करने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं होती थी परन्तु माँ के व्रत के दिन खासतौर पर उसका मन माँ को कुछ बना कर खिलाने का  करता था. उस दिन सुरभि माँ से जरुर पूछती थी – कि माँ मैं कुछ बना कर दूँ आपको और माँ तुम यह व्रत रखती क्यूँ हो ओर किसके लिए रखती हो. माँ का हमेशा एक ही जवाब होता था कि – तेरे लिए. फिर सुरभि पूछती कि मुझे क्या होने वाला है? क्यूँ अपने आप को सजा देती हो? सुरभि की माँ समझाती कि बेटा व्रत रखना स्वयं को सजा देना नहीं बल्कि एक तरह से भगवान का ध्यान अपनी ओंर आकर्षित करना है. जैसे तुम्हारी मैं माँ हूँ ऐसे ही ईश्वर माँ दुर्गा के रूप में हम सब की माँ है. जैसे तुम कुछ न खाओ तो मुझे चिंता रहती है ऐसे ही इश्वर रूपी माँ को अपने हर बच्चे की चिंता रहती है. बस इतनी सी बात है. यह सुरभि को उनका समझाने का तरीका है. सुरभि का मन इन सब बातों को ज्यादा तवज्जो नहीं देता था पर फिर भी सुरभि को माँ से इस तरह की बाते करना बहुत ही अच्छा लगता था. 

सुरभि को घर का काम करना कुछ ज्यादा अच्छा नहीं लगता था पर माँ हर वक़्त काम करते देख पता नहीं क्यूँ उसका मन उसे कचोटने लगता था कि उसे माँ के काम में हाथ बटाना चाहिए. ऐसा तब से हो रहा था जब से उसकी कॉलेज की पढाई पूरी हुई थी. शायद पहले उसे कभी लगा ही नहीं था कि उसकी माँ इतना काम भी करती होगी.

फिर कभी कभी मन में आता कि उसकी भी तो शादी होगी तब उसे भी काम करना होगा. पता नहीं कैसा घर मिले ओर कैसे व्यक्ति के साथ शादी हो. हालाँकि उसकी बहुत सारी फ्रेंड्स के बॉय फ्रेंड भी थे ओर उनमे से कुछ शादी भी करना चाहते थे. पर उसके साथ ऐसा कुछ नहीं था. उसका भी मन उसकी माँ के मन की तरह बिलकुल साफ़ था. वैसे भी वो ऐसा कुछ भी नहीं चाहती थी जिस से उसकी मम्मी ओर पापा को दुःख हो. खासतौर पर उसकी मम्मी को.   
अपनी मन पसंद के व्यक्ति से शादी करना कोई गलत बात नहीं थी वो ऐसा समझती थी ओर कभी कभी उसके पापा भी यह बात कह देते थे परन्तु उसकी मम्मी को शायद यह बिलकुल पसंद नहीं था यह बात वो समझती थी. हालाँकि उसकी मम्मी ने सीधेतौर पर उसे ऐसा कभी भी नहीं कहा था. फिर भी एक मूक भाषा जैसे उसे उसकी मम्मी के विचार पढ़ कर अपने आप बता देती थी. बहुत बाते समझने के लिए भाषा की जरुरत नहीं होती ऐसा उसे बहुत बार लगता था...

Friday, 23 November 2018

सुरभि भाग I

आचार्य हरीश की कहानियां - सुरभि



सुरभि की अपनी एक दुनियां थी. उसमे बहुत सारे रंग थे. बहुत सारे सपने थे. उसका मन दिन भर कुछ न कुछ बुनता रहता है. वैसे मन का तो काम ही यही है कि हमेशा कुछ न कुछ बुनते रहो. सुरभि ने अभी अपनी ग्रेजुएशन पूरी ही की थी. कॉलेज की यादे अभी ताज़ा ही थी. वो सहेलियां; वो दोस्त. कभी मन करता था कि आगे पढ़े तो कभी मन करता था कि कुछ जॉब की जाये ताकि कुछ फाइनेंसियल फ्रीडम का एन्जॉय किया जाये.

वो इन्टरनेट पर अपने दोस्तों से जॉब के बारे में बात किया करती पर मन में डर भी थे कि अभी तक ऐसे कोई भी काम किया नहीं था. पर इसके साथ ही मन का एक कोना यह भी बोलता था कि काम तो करना ही है और लोग भी तो करते है. कई तरह की जॉब्स उसे दिखाई देती थी पर उनके बारे में सोच अजीब अजीब ख्याल भी आते थे.

एक बात बड़ी खास थी जो उसको समझ नहीं आती थी कि यह सब सोचते हुए एक बंधन सा लगता था एक घुटन सी महसूस होती थी. फिर ज़माने को देखती थी तो लगता था कि सभी कुछ न कुछ काम तो आखिर कर ही रहे है. कौनसा सभी अपने काम से खुश होंगे. जिसे देखो अपनी थकान के रोने रोता है हर किसी के पास सुनाने के लिए इती कहानियां है की कहने क्यां? 

उसे जॉब करने से कुछ डर लगता था क्यूंकि उसका मन उसे डराता जो था. परन्तु यह नहीं समझ आता था कि उसे क्या करना अच्छा लगता है. जब बड़े बड़े वैज्ञानिकों के बारे, लेखकों के बारे में, बड़ी बड़ी हस्तियों के काम के बारे में पढ़ती तो उसे हैरानी होती थी कि कोई इतना सोच कैसे लेता है और मान लो कि सोच भी ले तो भी कोई इतना कर कैसे सकता है.

घर में शादी की बाते भी चलती थी. उसे अजीब लगता था कि इस घर में इतना कुछ उसकी पसंद का था और वो इस घर को इतना सजा कर रखती थी तो एक दिन उसे यह घर छोड़ना क्यों पड़ेगा. पर फिर मन से आवाज आती थी कि हर लड़की को शादी के बाद अपना घर छोड़ना ही पड़ता है.

कई बार तो उसे बड़ा होना एक बोझ सा लगता था. पर वो समझ रही थी कि बड़े होने के साथ साथ बहुत कुछ बदल भी रहा है. डर भी बढ़ रहे है. कई बार दुसरो की बाते उसे बड़ा डराती थी. जैसे कि उसकी सहेली की बहन की शादी हुई और कुछ ही समय में उसका तलाक भी हो गया. उसे लगता था कि लोग भी अजीब है कि किसी के साथ एडजस्ट क्या इतनी मुश्किल बात है. वो होती तो आसानी से मैनेज कर लेती. यूँही मन पता नहीं क्या क्या बोलता रहता था. पर करती वो वही थी जो उसके मन को अच्छा लगता था.

पर अपने मन की भी उसे समझ नहीं आती थी कि आखिर उसका मन चाहता क्या था. कभी बुरे विचार कभी अच्छे विचार कभी डरवाने विचार जाने क्या क्या विचार. कई बार तो अपने मन से ही परेशान हो जाती थी. ऐसे लगता था कि वो अपने मन पर Depend हो कि खुश होना हो तो भी नहीं हो सकते अपना मन ही जैसे बहुत बड़ी अड़चन हो. पर फिर भी मन को खुश करने में लग्न ही पड़ता था.

उसकी सहेली तो योग की क्लास में भी जाती थी. उसे अजीब लगता था कि क्या होगा ऐसे हाथ पैर मोड़ने से. योग में योग आसन हो तो होते होंगे और क्या होता होगा. उसका मन उसे बताता था कि उस अपनी इच्छाओं पर ध्यान देना चाहिए न कि इधर उधर की बातो पर.

वो जीवन में बहुत आगे जाना चाहती थी. सबसे आगे. अपनी सोचो से भी आगे. अपनी सोच से आगे जाने में ही तो हर इंसान लगा हुआ है. उसे याद था कि जब उसके पड़ोस में एक लड़के की डेथ हुई थी तो कई दिन तक उसका मन जैसे रुक गया था. पता ही नहीं मन को क्या हो गया था. डेथ की बात सुन कर ही एक अजीब ही डर सा पैदा हो गया था और सब के सब विचार जैसे गायब ही गए थे. वही मन जिसमे उमंगें भरी थी, desires भरी हुई थी, वही मन जैसे सो गया हो.

फिर जिंदगी चलने लगती थी. वही विचार, वही हंसी मज़ाक वही सब कुछ. पर मन कभी कभी सोचता जरुर था कि आखिर मृत्यु के बाद होता क्या होगा. पर इस विचार से ही उसे डर बहुत लगता था पर मन में ऐसा विचार अपने आप ही आ जाये तो वो करे भी  क्या. इस पर उसका बस भी तो नहीं न. और भी तो बहुत से बुरे विचार है जिनके बारे में सोचना भी नहीं चाहती फिर भी आ जाते है. वो सोचती थी कि बस विचारो पर उसका बस हो जाये न तो मज़ा ही आ जाये.

अक्सर उसके कोई भी नया काम करने में डर सा लगता था. कुछ भी नया करना हो. यहाँ तक कि जब वो पहली बार मंडी में सब्जी लेने गयी थी तो भी उसे डर लगा था. लेकिन वो तब की बात थी. अब उसे ऐसे कुछ भी खरीदने में जरा सा भी डर नहीं लगता था. उसे लगता था कि धीरे धीरे जिंदगी खुद को खुद ही एडजस्ट कर लेती है. बस कोई भी काम एक बार करना शुरू कर दो होते होते वो काम हो ही जाता है. कितने काम ऐसे थे जो शुरू में उसे लगता था कि वो तो कभी कर ही नहीं पायेगी पर वो काम भी उसने किये और वो काम आज वो पलक झपकते ही कर लेती है. यह बाते उसे बल देती थी उसके मन को भी.

Thursday, 1 November 2018

अगर भगवान् है तो फिर अत्याचार क्यों है, दुःख क्यों है?




यह एक ऐसा प्रश्न है जो बार बार और कई बार हमारे मनो में आता रहता है कि अगर ईश्वर है, अगर खुदा है, अगर भगवान् है या फिर कोई ऐसी शक्ति है जो हमें चला रही है तो वो शक्ति या ईश्वर मानव पर होने वाले अत्याचारों को, होने वाली प्राकर्तिक घटनाओं को रोकती क्यों नहीं.

कई देशों में अब भी युद्ध चल रहे है या फिर युद्ध जैसे हालात है और वहा औरतो और बच्चो के बहुत बुरे हाल है. जब सीरिया से ऐसी तस्वीरे आती है खास तौर पर छोटे छोटे बच्चों की तो मन में बहुत ही टीस उठती है. बड़ा दुःख होता है कि ऐसा क्यों हो रहा है.

भगवान् कुछ करते क्यों नहीं. आखिर हमें चलाने वाला चुप है क्यूँ. इस प्रश्न का उतर पाने के लिए हमें सबसे पहले खुद को समझना होगा और फिर ईश्वर को समझना होगा. हम वास्तव में क्यां है? और ईश्वर वास्तव में क्यां है?

ईश्वर ने कुछ इस तरह से डिजाईन किया कि सिस्टम में पुण्य भी आपके होंगे और पाप भी आपके होंगे. डर भी आपके होगे और निडरता भी आपकी होगी. ख़ुशी भी आपकी होगी और दुःख भी. आप इस मृत्युलोक में रहेंगे भी तब तक जब तक आपके पास पुण्य रहेगे या फिर पाप रहेगे. और जब तक मन से आप ईश्वर को समझने की कौशिश करते रहेगे तब तक आप इस धरती पर अच्छे और बुरे का शिकार होते ही रहेगे. क्यूंकि सिस्टम ही कुछ ऐसा है.

भगवद्गीता में एक श्लोक आता है जिसमे इस बात का जिक्र है कि – ईश्वर न तो हमारे पाप कर्म को और न ही हमारे पुण्य कर्मो को लेते है किन्तु स्वाभाव ही बरत रहा है. अगर पुण्य और पापों को लेने का काम ईश्वर नहीं करते तो फिर कौन करता है. जिस सिस्टम का मैंने पीछे जिक्र किया है वो सिस्टम आपके, हम सबके पुण्य कर्म भी लेता है, पाप भी लेना है और हमें उसका फल भी देता है.

इस सिस्टम को वेदांत की भाषा में प्रकृति का नाम दिया गया है. यहाँ ईश्वर अलग है, प्रकृति अलग है और हम अलग है. और हम अलग इसलिए है क्यूंकि हमने स्वयं को मन समझ लिया है और मन को एकमात्र सत्य समझ लिया है जबकि मन ही एक तरह से वैसे ही नाशवान है जैसे हमारा शरीर.

जब तक मन के पर्दे से, जब तक मन के चश्मे से हम देखते रहेगे तब तक न तो ईश्वर दिखाई देंगे और न ही हम प्रकृति को समझ पायेगे जिसके कारण अत्याचार भी है और ऐश्वर्य भी है.
कोई भी व्यक्ति जब दुसरे का बुरा कर रहा होता है या अच्छा कर रहा होता है तो प्रकृति का एक एक कण एक कैमरे की भांति उस घटना को नोट कर रहा होता है और अपने अन्दर दर्ज भी कर रहा होता है. जब कोई किसी का बुरा करके कानून से बच कर खुद को चालक समझने लगता है तो भी प्रकृति के गुण हर दम उस व्यक्ति पर काम कर रहे होते है.

जीवन जन्म-दर-जन्म बहुत लम्बी चलने वाली एक लम्बी श्रंखला है. हर अगला जन्म प्रकृति के नियम पर और हमारे कर्मो पर Decide होता है. हम फ्री है गलत के लिए भी और अच्छे के लिए भी. परन्तु प्रकृति बाध्य है हमें दंड देने के लिए भी और रिवॉर्ड देने के लिए भी.

हम इस बात को समझ नहीं पा रहे कि जीवन के पीछे क्यां है? हमने केवल भौतिकता को ही सत्य माना हुआ है. केवल मटेरियल को ही सच माना हुआ है. केवल धन अर्जित करने को ही सच माना हुआ है. जबकि की यह अटल सत्य है कि हमारी मृत्यु तो होनी ही है.

तो अत्याचार हम करते है स्वयं पर न भी भगवान्. असल में यह मन ही अत्याचारी है और यह मन ही आनंद पैदा करने वाला भी है, एक अति व्यवस्थित व्यवस्थता देना वाला भी है. हम मन की मदद से जो भी करगे यह प्रकृति, यह विश्वात्मा उसे दर्ज करती रहेगी और बदले में फल देने के लिए अगले जन्मो में भी अरेंजमेंट करती रहेगी. 


Saturday, 23 June 2018

श्री अरविंद - एक महान दार्शनिक




आज World Yoga Day विश्व योग दिवस पर एक महान दार्शनिक, एक महान शिक्षाविद, एक महान लेखक को याद करके मन में प्रसन्नता हो रही है. मैं विश्व के महान दार्शनिक श्री अरविंद को याद करते हुए आप सबके साथ शत शत नमन करता हूँ.


इस तरह की महान शक्ख्सियत मन इन्द्रियों से परे जाकर, भुत, भविष्य से परे जाकर चेतना के उस स्तर पर जाकर लीन हो जाती है जिसे जल्दी से हमारा मन और हमारी बुद्धि समझ नही पाती. श्री अरविंद तब भी थे, अब भी है और हमेशा ही रहेगे.

दर्शन शाश्त्र भी कमाल का शब्द है भारतीय फिलोसोफी  में, फिलोसोफी जोकि ग्रीक भाषा का एक शब्द है और जिसका मतलब होता है - love of wisdom. परन्तु दुनियां की सबसे पुरानी फिलोसोफी जोकि भारत की है यहाँ दर्शन का मतलब है – “वो जैसा मैंने देखा”

हमारे अध्यात्मिक वैज्ञानिको ने, हमारे ऋषियों में अतिन्द्रिये अवस्था में जा कर जो देखा वो हमारा दर्शन हुआ, हमारा दर्शन love of wisdom नहीं है. हमारा दर्शन अपने आप जागृत होने वाली इस विश्व के पीछे की हकीकत है.

मैं फिर से अपनी बात पर आता हूँ जो मेरा आज का विषय है – जोकि खासतौर पर बच्चो पर है और  श्री अरविंद ने जो शिक्षा को लेकर एक कहा कि शिक्षा का उदेश्य कैसा होना चाहिए और शिक्षा किस तरह से देनी चाहिए.

आज हम और हमारे बच्चे एक ऐसी दौड़ में पहुच गए है जहाँ हमें अपनी नैतिकता पीछे छूटती सी नज़र आ रही है. मोबाइल और टेक्नोलॉजी की दौड़ में हम मानवता को पीछे छोड़ते जा रहे है. ऐसे में हम हमारी विरासत को भी भूलते चले जा रहे है. खासतौर पर हमारे बच्चे जो बचपन से ही तनाव का शिकार हो रहे है.

आज के बच्चों की कुछ इस तरह की समस्याएं है:-

  1. ·        मोबाइल पर ज्यादा से ज्यादा Involve रहना.
  2. ·        पढाई पर कम ध्यान देना.
  3. ·        यादाश्त कमज़ोर है, कुछ भी यद् नहीं रहता
  4. ·        बहुत से बच्चे गुमसुम रहते है.
  5. ·        बहुत से बच्चो को स्टेज पर बोलने का डर होता है.
  6. ·        बहुत से बच्चे अपने माता पिता का कहना नहीं मानते है.
  7. ·        खाने की आदत बिगड़ चुकी है.
  8. ·        पढाई में मन नहीं लगता है. 
  9. ·        बुद्धि का स्तर कम होना
  10. ·        Over Confidence
  11. ·        Western World की तरफ ज्यादा झुकाव है.

आज का एजुकेशन सिस्टम हमें ज्ञान तो दे रहा है परन्तु हमारे बच्चों का मानसिक विकास करने के लिए यह एजुकेशन सिस्टम सक्षम नहीं है. आज स्कूल के PTM (Parents Teacher Meet) में हमें अक्सर यह सुनने को मिलता है कि “आपका बच्चा पढाई में ठीक नहीं है” परन्तु स्कूल के पास उस बच्चे की विजडम (बुद्धि) को बढ़ाने का कोई तरीका नहीं है.

आज का एजुकेशन सिस्टम एक तरह का मैकेनिकल सिस्टम है जहाँ प्रश्न भी सिस्टम के है और उतर भी सिस्टम के है. जहाँ पर व्यक्ति एक रोबर्ट की तरह ज्ञान अर्जित करता है जिसमे उसके व्यक्तित्व का और उसकी बुद्धि के विकास की संभावनाएं नाम मात्र होती है.

जीवन में आने वाली आपदाओं में, जीवन के नकरात्मक क्षणों में किस तरह शांत रहते हुए हम अपनी समस्याओं की सुलझाएं यह सब आज का एजुकेशन सिस्टम नहीं सिखलाता.

हमारे महान अध्यात्मिक वैज्ञानिको ने, हमारे ऋषियों ने; हमारे मन पर बहुत काम किया है. मन को कैसे काबू किया जाये, मन को कैसे शक्तिशाली बनाया जाये, बुद्धि को कैसे विकसित किया जाये इस पर बहुत काम किया है. हमारी प्राचीन धरोहर; हमारे ग्रन्थ, हमारा वेदान्त ऐसी शक्तिशाली तकनीकों से भरा पड़ा है जिनका अगर सही से प्रयोग किया जाये तो हमारा Mind विकसित हो सकती है, हमारी बुद्धि विकसित हो सकती है.

स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद जैसी विश्वविख्यात शक्ख्सियतों ने हमारी प्राचीन संस्कृति का लोहा सारे संसार को उस वक़्त मनवाया जब हमारा देश गुलाम था. महर्षि अरविंद ने शिक्षा की ऐसी प्रणाली को पेश किया जिसे व्यक्ति की आन्तरिक शक्तियों को प्रकृति तौर पर विकसित किया जा सकता था और किया जा सकता है. आज हमें और हमारे समाज को उस शिक्षा प्रणाली की फिर से जरुरत है.

यह भी सच है कि आज की इस शिक्षा प्रणाली को बदल नहीं जा सकता परन्तु हम अपनी प्राचीन धरोहर का प्रयोग तो कर सकते है इस शिक्षा के प्रणाली के साथ साथ.

श्री अरविंद ने बताया कि - ध्यान से, आध्यात्मिकता के हमारे भौतिक जीवन पर प्रयोग से हम चेतना के उस आयाम तक पहुच सकते है जहा विजडम अपने आप ही पैदा होती है, अपने आप ही विकसित होती है. याद रखिये किताबो से ज्ञान को बढाया जा सकता है विजडम को नहीं, आज का शिक्षा तंत्र ज्ञान को जरुर बढ़ा रहा है परन्तु विवेक जागृत करने में इसके पास कोई तरीका नहीं है.

अब मैं आपको यह बताने जा रहा हूँ की योग कैसे किसी व्यक्ति की मेमोरी बढ़ाने में कारगार सिद्ध होगा? मनोविज्ञान के अनुसार हमारे मन के 3 प्रकार है: -

चेतन मन (Conscious Mind)
अवचेतन मन (Subconscious Mind)
अधिचेतन मन (Unconscious Mind)

चेतन मन (Conscious Mind) में हम एक समय के कुछ विचार रख सकते है. यानि अब तक जो जो हमने सीखा है वो सब एक साथ हम अपने चेतन मन में नहीं रख सकते.

अवचेतन मन (Subconscious Mind) हर वक़्त सब कुछ रिकॉर्ड कर रहा है. सब कुछ जो जो भी आप कर रहे है, जो कुछ भी आप देख रहे है वो सब हर वक़्त दर्ज हो रहा है आपके अवचेतन मन में. और इस अवचेतन अगर ठीक से समझ कर इसका प्रयोग करना यदि आ जाये तो हम बड़ी से बड़ी किताब कुछ मिनटों में पढ़ सकते है. स्वामी विवेदानंद इस बात के उदहारण है. उन्होंने अपने जीवन काल में ऐसा किया. श्री अरविंदो इस बात के उदहारण है उन्होंने अपने जीवन काल में ऐसा ही किया.

Unconscious Mind हमारे शरीर में फीलिंग्स और उन बातो पर कण्ट्रोल रखता है जिन पर सीधे तौर पर हमारा कण्ट्रोल नहीं है. 




Monday, 21 May 2018

नाड़ी तत्व विवेचन - Nadi Tattva Vivechan


नाड़ी तत्व विवेचन – Nadi Tattva Vivechan



शाश्त्रो में 72000 से भी ज्यादा नाड़ियां बताई गयी है. इन नाड़ियों में मुख्य तीन नाड़ियां होती है. पिंगला इड़ा और सुष्म्ना. पांच तत्व है पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश. इन तीन नाड़ियों ओर पांच तत्वों विश्लेषण करके किया जाता है नाड़ी तत्व विवेचन.

नाड़ी तत्व विवेचन एक प्रक्रियां है जिसमे हम थोड़ा सा एस्ट्रोलॉजी का प्रयोग करते है. देखिये हर वक़्त वातावरण में भी इन सूक्ष्म तत्वों की मोजुदगी रहती है और प्रकृति में भी यह तीन नाड़ी विद्यमान रहती है. तो साइंस ऑफ़ एस्ट्रोलॉजी के हिसाब से हर व्यक्ति के जन्म के समय की गणना की जा सकती है कि कोई व्यक्ति जब पैदा हुआ और इस दुनियां में उसने जो पहली साँस ली वो कौनसी नोस्त्रिल से ली और किस तत्व में ली.

नाडी और तत्व पाता चलने के बाद हम गणना करते है और विश्लेषण करते है. यह विश्लेषण हर व्यक्ति के लिए अलग होता है. जैसे किसी व्यक्ति में तत्वों की परसेंटेज होगी उसी तरह से उसका नाड़ी तत्व विवेचन चलेगा.

कौनसा तत्व बढ़ा हुआ है और कौनसा घटा हुआ. जिस के आधार पर हम यह तय करते है कि हमें कौनसा ध्यान करना चाहिए. किस चक्र पर काम करना चाहिए और किस पर नहीं. हर बात यह नाड़ी तत्व विवेचन हमें बताता है.

इस से बहुत सारी बाते मालूम पड़ती है. कई बार क्या होता है कि हम ध्यान करते है और सब कुछ उल्टा होना शुरू हो जाता है. क्रोध बढ़ जाता है, डर बढ़ जाता है, काम बनने की बजाये बिगड़ने लगते है. उसका मतलब यह होता है हम जो ध्यान की विधि अपनाये हुए है वो ध्यान की विधि हमारे लिए नहीं है.

कई बार जीवन में हम कई काम करते है और कोई भी काम बन नहीं पाता उस वक़्त यह हमारा जो व्यक्तिगत डाटाबेस काम आता है. क्यूंकि इसमें यह पता चलता है कि किस व्यक्ति के लिए कौनसा कार्य सही है और कौनसा कार्य सही नहीं है.

कई बार हमारे दुसरो से सबंध, relation बिगड़ जाते है और उनके पीछे की वजह सामने नहीं आती तो उस भी वक़्त यह हमारा जो व्यक्तिगत डाटाबेस काम आता है. तत्वों और नाडी को जानने के बाद फिर उन पर कार्य करके हम अपने संबंधो को भी सुधार सकते है.

जब स्थिति बिगड़ जाती है, खास तौर पर पति-पत्नी जैसे संबंधो में और नोबत तलाक तक पहुच जाती है उस वक़्त अगर इस पद्धति की मदद ली जाये और इस पर काम किया जाये तो नतीजे बहुत ही आश्चर्यजनक आते है.

जैसे की मान लीजिये कि किसी व्यक्ति का अग्नि तत्व जन्म से ही अधिक है  वो यदि मणिपुर चक्र पर ध्यान करता है तो उसमे शांति आने की बजाये क्रोध बढ़ने लगेगा पेट सम्बन्धी रोग रहने लगेगे.
या फिर पृथ्वी तत्व बढ़ा हुआ है और वो मूलाधार पर ज्यादा ध्यान करता है तो जोड़ो के दर्द सम्बंधित रोग होने लगेगे. ध्यान के शांति आने की बजाये सांसारिक सुख अपनी ओर खिचेगे.

या फिर जल तत्व ज्यादा बढ़ा हुआ या फिर घटा हुआ है तो काम, मोह बढ़ जायेगा या फिर बहुत घट जायेगा और किसी भी काम में मन नहीं लगेगा. ऐसे में व्यक्ति बहुत सारे  काम बदलेगा. और किसी भी काम में सक्सेस नहीं होगा.

वायु तत्व अगर बढ़ जाता है या घट जाता है तो ध्यान के विघ्न डालेगा और बनते हुए काम को उड़ा डालेगा. कुछ भी समझ नहीं आने देगा. मन हमेशा भ्रमित रहेगा.

इस तरह से तत्वों का और नाड़ी का अगर सही तालमेल होगा तो आप आगे बढ़ पायेगे भौतिक दृष्टि से भी और सांसारिक दृष्टि से भी.

इसके लिए नाडी तत्व विवेचन करवाना पड़ता है. नाडी तत्व विवेचन Yoga My Life के द्वारा वेदान्त के ज्ञान से Discover किया हुआ एक प्रोसेस है, तरीका है. यह इतने सटीक रिजल्ट्स देता है कि रिजल्ट्स मिलने की सम्भावना 90% से ज्यादा रहती है.

इसलिए अगर आप सही तरीके से अध्यात्म में बढना चाहते है तो यह एक तरीके का Dignostic Test है इस जरुर से करवाना चाहिए ताकि आप सही ध्यान करके सही दिशा में आगे बढ़ सके.

जीवन को किसी भी प्रॉब्लम को नाडी तत्व विवेचन से सुलझाया जा सकता है. इसे समझना बहुत ही जरुरी होता है. एक बार समझ आ जाये तो रिजल्ट्स बहुत ही अच्छे मिलते है.

Acharya Harish
yogateacherbsy@gmail.com


Sunday, 6 May 2018

वाक् सिद्धि - The Power of Truth


वाक् सिद्धि



वाक् सिद्धि का उल्लेख भारतीय ग्रंथो में मिलता है. विशेष तौर पर पतंजलि योग सूत्र में. भारतीय दर्शन में छ: स्कूल है दर्शन शाश्त्र के, योग भी एक School of Philosophy है जिसे ऋषि पतंजलि ने गठित किया था.

वाक्क सिद्धि का मतलब होता है आप जो कहे वो हो जाये. भारतीय ग्रंथो में यह बात आती है फलां ऋषि में शाप दे दिया या फलां ऋषि ने वरदान दे दिया. यानि वो साधक, वो ऋषि साधना के उस उच्तम शिखर पर पहुच चुके थे कि जो वो कहते थे वो सच हो जाता था. इसी सिद्धि को वाक् सिद्धि कहते है.

पतंजलि योग सूत्र – साधनपाद में सूत्र संख्या 36

सत्यप्रतिष्ठायां क्रियाफलां श्रयत्वम.....

इसका आशय है कि – ‘सत्य’ की दृढ स्थिति हो जाने पर उस योगी में क्रिया फल के आश्रय का भाव आ जाता है वह जो कहता है वह हो जाता है.

इस का मतलब यह है कि योगी का जब सत्य में भाव दृढ हो जाता है तो उसमे क्रिया फल के आश्रय का भाव आ जाता है. क्यूंकि सत्य बोलने तथा उसके पालन में बड़ी शक्ति निहित है इसलिए अध्यात्म में सत्य पर काफी जोर दिया है. सामान्य व्यक्ति अपने कर्मो का फल अवश्य भोगता है किन्तु सत्यनिष्ठ योगी यदि उसे कोई वरदान, शाप या आशीर्वाद दे देता है तो वह इस सब कर्म फलों का उल्लघन करके सत्य हो जाता है. उसका वचन कभी भी निष्फल नहीं जाता.

बात शुरू होती है पतंजलि योग सूत्र के अष्टांगयोग के पहले सूत्र यम से. क्यूंकि कुल आठ अंग है पतंजलि योग सूत्र के – यम, नियम, आसन, प्राणयाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधी.

यम क्यां है – यम पांच गुण है जो साधना में आगे बढ़ने वाले साधक के अंदर होने चाहिए या साधना करते करते उत्पन्न हो जाते है. यह है अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्यं, अपरिग्रह.

यहाँ सत्य को जो पतंजलि ने कहा है उसकी बात करते है – पतंजलि कहते है – इन्द्रिय और मन से जैसा देखा, सुना या अनुभव किया गया है उसे वैसे ही कहना सत्य कहलाता है. ऐसा सत्य प्रिय तथा हितकर भी होना चाहिए. सत्य यदि अप्रिय तथा अहितकर हो तो कदापि नहीं बोलना चाहिए. क्यूंकि सत्य को भाषा से नहीं समझा जा सकता. सत्य भाषा या शब्दों से उपर की बात है.

तो केवल एक ही गुण को ग्रहण करके आप वाक् सिद्धि प्राप्त कर सकते है. लेकिन यह सत्य का मतलब सत्य है केवल सत्य और कुछ भी नहीं.


ध्यान में आने वाली समस्याएं - Problems in Meditation




सबसे पहले तो मैं आपको यह स्पष्ट करना चाहुगा कि ध्यान एक घटना है जोकि घटित होती है. ध्यान आता है; उसके पास जो उसे बुलाता है. हम कहते तो है कि मैं ध्यान कर रहा हूँ परन्तु हम उस समय वास्तव  में ध्यान के लिए तैयारी कर रहे होते है.

शुरू शुरू में जब हम ध्यान के संसार में आगे बढ़ते है तो कई सारी प्रोब्लेम्स भी आती है और कई बार इन समस्याओं से डर कर साधक ध्यान का रास्ता छोड़ भी देता है. क्यूंकि सही गुरु न होने की वजह से, सही मार्गदर्शक न होने की वजह से ध्यान की यात्रा में आगे बढना कुछ मुश्किल होता है.

सबसे पहली समस्या हमें मालूम ही नहीं होता कि करना क्यां है. उसका सबसे अच्चा तरीका तो है नाड़ी तत्व विवेचन. नाड़ी तत्व विवेचन से हम यह जान सकते है कि मेरे लिए कौनसा ध्यान बना है या मेरे लिए कौनसा ध्यान उपयुक्त है. परन्तु यह Paid सर्विस है और कई बार साधक शुरुआत में खुद पर इस तरह की इन्वेस्टमेंट नहीं करना चाहता.

तो उसके लिए केवल और केवल आज्ञा चक्र पर ध्यान करना उपयुक्त होता है. आज्ञा चक्र हमारी दोनों Eyebrows के बीच की जो जगह है उसे कहते है. लेकिन यहाँ मैं आपको एक बात साफ़ करना चाहता हूँ की ध्यान आपको वो व्यक्ति करवा सकता है जो खुद ध्यान करता हो. इसलिए योग्य व्यक्ति से ही ध्यान सीखे.

अब जब आप ध्यान करने लगते है तो मन बहुत भागता है. जैसे ही ध्यान करने बैठे बहुत सारे विचार आने लगे मन में. हर विचार उठने के लिए मजबूर करने लगा और ऐसा लगने लगता है कि अभी यह काम नहीं किया तो पाता नहीं क्या मुसीबत आ जाएगी.

मन खुद की कंसन्ट्रेट होने से रोकता है यह मन का एक गुण है आप इस बात को समझ लीजिये. यानि जब भी ध्यान करने बैठेगे तो मन भागेगा ही क्यूंकि उसकी यह प्रवृति है. कितने भी विचार आ जाये फिर भी बैठना है. कम से कम 15 मिनट्स से शुरुआत करनी है. इन 15 मिनटों में बहुत सारे विचार उठेगे और आपको ध्यान से उठाने का भरसक प्रयास करेगे.

अब कुछ समय बाद आप देखेगे कि आप अब बैठना सीख गए है अब मन ज्यादा तंग नहीं करता है. मन आपको बैठने तो देता है परन्तु अब मन आपके साथ दूसरी तरह का खेल खेलेगा. मन में विचलन पैदा होगा. ऐसा लगेगा कि आप खुश नहीं है और बड़ा अजीब सा महसूस कर रहे है. आपको लगेगा की ध्यान की वजह से यह सब प्रोब्लेम्स आ रही है इसलिए आप तुरंत ध्यान करना छोड़ देंगे. परन्तु ऐसा नहीं करना है. क्यूंकि थोड़े ही समय में मन विचलित होना बंद हो जायेगा.

आपको अब थोड़ा अच्छा लगने लगेगा. परन्तु अब मन में आएगा कि छोडो आज ध्यान नहीं करते आज मूड नहीं है ध्यान करने का. वैसे भी एक दिन में क्यां फर्क पड़ने वाला है. बलां बलां बलां.. परन्तु ऐसा नहीं करना है. रेगुलारिटी नहीं तोडनी है. आपका मन जो जो विघ्न पैदा करेगा वो मैं सब आपको बता रहा हूँ. इसलिए घबराना नहीं है. ध्यान जारी रखना है.

अब अगली बात कि – अब डर लगने लगेगा. अपने आप ही डर लगने लग सकता है. यहाँ भी घबराना बिलकुल नहीं है. डर लगेगा, आपका मन ही डर पैदा करेगा परन्तु घबराना बिलकुल नहीं है. यहाँ एक काम करना है कि जब भी डर लगे तो अपने धर्म के अनुसार ईश्वर को प्रार्थना करनी है. डर गायब होने लगेगा.

ध्यान करने से कई बार गुस्सा भी बढ़ सकता है परन्तु इसे भी पार करना है क्यूंकि दूर कही आनंद, अपार आनन्द आपकी बाट देख रहा है. इस बात को समझना है. इसलिए हर विघ्न को पार करते जाना है.

नींद में, भूख में कमी आ सकती है. ऐया कुछ समय बाद अपने आप ही ठीक हो जायेगा. क्यूंकि ध्यान यात्रा है असत्य से सत्य की ओर. अज्ञान से प्रकश की ओर, मृत्यु से अमृत की ओर.   



तत्व शुद्धि साधना


तत्व शुद्धि साधना



योग का मतलब होता है जुड़ना. उस से जुड़ना जिसने हमें पैदा किया. जिसके कारण हमारा होना है. हमारे और उसके बीच में अगर कोई दीवार है तो वो हमारा मन है. योग में जितनी भी विधियाँ इस धरती पर उपलब्ध है सारी की सारी मन पर ही काम करती है. क्यूंकि भौतिक जीवन ने हमें केवल तन पर काम करना सिखाया है.

हमारे तन को लेकर बहुत सारी पद्धतियाँ पैदा हुई. बहुत सारे प्रोडक्ट्स बने. यानि पश्चिम ने सारा का सारा कार्य हमारे तन को लेकर किया है. तरह तरह की Technologies, Medical Science, Social Science, Telecommunication, Engineering, Technology, बहुत कुछ. बहुत सारी किताबे, बहुत सारे विधालय, यूनिवर्सिटी, सब के सब भौतिक जीवन और तन को लेकर ही  काम कर रहे है.

परन्तु पूर्व ने जितना भी कार्य किया वो मन पर किया. यानि इस विश्व धरा को जो कुछ भी दिया वो मन पर हमारा रिसर्च वर्क था और आज भी हम योग के रूप में वो सब दे रहे है.

ऐसी ही एक विधि है तत्व शुद्धि. कमाल के रिजल्ट्स आते है इसके. पांच तत्वों से हमारा शरीर बना है. पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश. दो तरह की यात्रा हम जीवन में कर सकते है. एक  बाहर की ओर जो हम कर ही रहे है या जो पश्चिम ने हमें सिखाई और दूसरी अंदर की ओर जो हमारी अपनी सम्पदा है हमारा अपना रिसर्च वर्क है.

बाहर की यात्रा करते करते जो यह पांच तत्व है इनमें अशुद्धि आने शुरू हो जाती है. पांच तत्वों की अशुद्धियाँ हमारे भौतिक जीवन में तो रुकावट बनती ही है. साथ में हमारे अध्यात्मिक यात्रा में विध्न पैदा करती है और हमारे मन को खासतौर पर दूषित करती है.

तत्व शुद्धि साधना में हम सबसे पहले यह समझते है कि हमारे शरीर के कौन से भाग में कौनसा तत्व स्थित है. फिर हम एक एक तत्व पर ध्यान करते है यानि कि शरीर में पांच भागो पर ध्यान करते है. सारा का सारा प्रोसेस योग निद्रा में माध्यम से किया जाता है.

फिर हम तत्वों को बदलना शुरू करते है. पृथ्वी को जल में, जल को अग्नि में, अग्नि को वायु में और वायु को आकाश में. इस प्रकार से हम खुद को एक तरह से विलीन कर देते है. फिर हम पहुचते है अपने अहम तक और फिर खुद से ही जुड़ जाते है.

बहुत ही अलग तरह का अनुभव हो रहा होता है उस वक़्त जब न हम शरीर होते है और न ही मन, न ही बुद्धि और न कुछ और ही. यह एक ऐसा अनुभव होता है जो यदि एक बार घटित हो जाये तो जीवन को देखने का नज़रियाँ ही बदल जाता है.

फिर हम खुद से खुद को बनाना शुरू करते है. हम एक तरह से “कुछ नहीं” से स्वयं का सृजन करते है. फिर अहम् से बुद्धि, बुद्धि से मन, मन से पांच तत्व – आकाश तत्व से सभी तत्वों का सृजन करते है.

जब यह साधना समाप्त होती है तो शरीर इतना हल्का महसूस हो रहा होता है कि जैसे weight है ही नहीं. बहुत देर तक आनंद छाया रहता है. क्यूंकि सब कुछ शुद्ध हो चूका होता है. शरीर, सारे तत्व, मन, बुद्धि, चित और हमारी आत्मा.

मैंने पहले भी बताया है कि इसके रिजल्ट्स बड़े ही शानदार होते है. कई बार तो बीमारियाँ छूमन्तर हो जाती है. हर व्यक्ति को कुछ न कुछ मिलता ही है इस साधना से. इसे ग्रुप में ही किया जाता है.

मैं देश में अलग अलग जगहों पर जा जा कर इस तरह की साधनाए करवाता रहता हूँ और मुझे बहुत ही आनंद मिलता है जब किसी साधक या साधिका को इसके रिजल्ट्स मिलते है. 

Saturday, 21 April 2018

कही आप गलत तरीके से तो ध्यान नहीं कर रहे.


कही आप गलत तरीके से तो ध्यान नहीं कर रहे.

नाडी तत्व विवेचन

कही आप गलत तरीके से तो ध्यान नहीं कर रहे. अगर ऐसा हुआ तो ध्यान से फायदे की बजाये घाटा भी हो सकता है. और कितने भी साल लगे रहे ध्यान में रिजल्ट्स नहीं मिलेंगे.

शाश्त्रो में 72000 से भी ज्यादा नाड़ियां बताई गयी है. इन नाड़ियों में मुख्य तीन नाड़ियां होती है. पिंगला इड़ा और सुष्म्ना. पांच तत्व है पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश.

जब व्यक्ति का जन्म होता है तो वो अपनी पहली साँस किसी न किसी नाड़ी  में लेता है वो इड़ा, पिंगला और सुष्म्ना में से कोई भी हो सकती है और नाड़ी के साथ एक तत्व भी मौजूद रहता है. वो पांचो तत्वों में से कोई भी एक हो सकता है.

हर वक़्त वातावरण में भी इन सूक्ष्म तत्वों की मोजुदगी रहती है और प्रकृति में भी यह तीन नाड़ी विद्यमान रहती है. तो साइंस ऑफ़ एस्ट्रोलॉजी के हिसाब से हर व्यक्ति के जन्म के समय की गणना की जा सकती है कि कोई व्यक्ति जब पैदा हुआ और इस दुनियां में उसने जो पहली साँस ली वो कौनसी नोस्त्रिल से ली और किस तत्व में ली.

यह कमाल का विज्ञानं है. और यह एक ऐसा विज्ञानं है जो हमें हमारे बारे में हर चीज  बताता है. हम जीवन में कौनसा कार्य करेंगे और कौनसा कार्य करना हमारे लिए सही रहेगा. अध्यात्मिक यात्रा में सफल रहेगे या नहीं. जीवन में सफल रहेंगे या नहीं. यह सब कुछ.

उसके बाद इस गणना में व्यक्ति के व्यक्तित्व में तत्व विवेचन की जाती है कि कौनसा तत्व बढ़ा हुआ है और कौनसा घटा हुआ. जिस के आधार पर हम यह तय करते है कि हमें कौनसा ध्यान करना चाहिए. किस चक्र पर काम करना चाहिए और किस पर नहीं. हर बात यह नाड़ी तत्व विवेचन हमें बताता है.

कई बार क्या होता है कि हम ध्यान करते है और सब कुछ उल्टा होना शुरू हो जाता है. क्रोध बढ़ जाता है, डर बढ़ जाता है, काम बनने की बजाये बिगड़ने लगते है. उसका मतलब यह होता है हम जो ध्यान की विधि अपनाये हुए है वो ध्यान की विधि हमारे लिए नहीं है.

जैसे की मान लीजिये कि किसी व्यक्ति का अग्नि तत्व जन्म से ही अधिक है  वो यदि मणिपुर चक्र पर ध्यान करता है तो उसमे शांति आने की बजाये क्रोध बढ़ने लगेगा पेट सम्बन्धी रोग रहने लगेगे.
या फिर पृथ्वी तत्व बढ़ा हुआ है और वो मूलाधार पर ज्यादा ध्यान करता है तो जोड़ो के दर्द सम्बंधित रोग होने लगेगे. ध्यान के शांति आने की बजाये सांसारिक सुख अपनी ओर खिचेगे.

या फिर जल तत्व ज्यादा बढ़ा हुआ या फिर घटा हुआ है तो काम, मोह बढ़ जायेगा या फिर बहुत घट जायेगा और किसी भी काम में मन नहीं लगेगा. ऐसे में व्यक्ति बहुत सारे  काम बदलेगा. और किसी भी काम में सक्सेस नहीं होगा.

वायु तत्व अगर बढ़ जाता है या घट जाता है तो ध्यान के विघ्न डालेगा और बनते हुए काम को उड़ा डालेगा. कुछ भी समझ नहीं आने देगा. मन हमेशा भ्रमित रहेगा.

इस तरह से तत्वों का और नाड़ी का अगर सही तालमेल होगा तो आप आगे बढ़ पायेगे भौतिक दृष्टि से भी और सांसारिक दृष्टि से भी.

इसके लिए नाडी तत्व विवेचन करवाना पड़ता है. नाडी तत्व विवेचन Yoga My Life के द्वारा वेदान्त के ज्ञान से Discover किया हुआ एक प्रोसेस है, तरीका है. यह इतने सटीक रिजल्ट्स देता है कि रिजल्ट्स मिलने की सम्भावना 90% से ज्यादा रहती है.

इसलिए अगर आप सही तरीके से अध्यात्म में बढना चाहते है तो यह एक तरीके का Diagnostic Test है इस जरुर से करवाना चाहिए ताकि आप सही ध्यान करके सही दिशा में आगे बढ़ सके.

Acharya Harish