Thursday, 22 February 2018

कुण्डलिनी शक्ति



भारतीय योग पद्धति के अनुसार मनुष्य शरीर में 7 चक्र होते है और इन चक्रों के वैज्ञानिक प्रूफ भी उपलब्ध है. यह चक्र इस प्रकार से है, मूलाधार, स्वाधिस्थान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्त्रार चक्र. पर मेरा आज का विषय कुण्डलिनी शक्ति है और कुण्डलिनी जागरण है. मूलाधार चक्र में सांप कि तरह कुण्डल के रूप में एक शक्ति, एक उर्जा हमारे अन्दर विधमान होती है, जोकि हर मनुष्य में सुप्त अवस्था में होती है. यह उर्जा जब एक्टिव होती है तो इसे हम कहते है कुंडलिनी जागरण.

इसको जागृत करने के कई तरीके है, शक्तिपात है, कई तरीके के योग है, यूँ समझ लीजिये कि जितने भी योग के प्रकार है चाहे वो किसी भी धर्म से सम्बन्ध रखते हो उनका लक्ष्य एक ही है और वो है इस कुंडलिनी शक्ति को जागृत करना. क्यूंकि एक बार किसी भी तरीके से यदि यह शक्ति जागृत हो जाये तो फिर आगे कि यात्रा अपने आप ही चलती है.

मूलाधार चक्र में इसका स्थान है. जब यह यहाँ इस जगह में जागृत हो रही होती है तो मूलाधार चक्र के Area में कम्पन्न होने शुरू हो जाते है और कई बार शरीर में झटके भी महसूस होते है. अगर शक्तिपात में या योग करते करते आपको ऐसा महसूस हो तो समझ ले कि कुंडलिनी जागरण हो रहा है.

तीन प्रकार की नाड़ियाँ हमारे शरीर में है जिनमे हर वक़्त प्राण उर्जा प्रवाहित हो रही होती है. यह तीन नाड़ियाँ है – इड़ा, पिंगला और सुष्मना नाड़ी. आमतौर पर प्राण और मन इड़ा और पिंगला में विचरन  करता रहता है और यह दोनों नाड़ियाँ हमें पूर्णरूप से इस संसार में बनाये रखती है. पर यह कुंडलिनी शक्ति सुष्मना मार्ग में चलती गई क्यूंकि यह मार्ग आमतौर पर बंद ही होता है इसलिए कुण्डलिनी शक्ति सुप्त ही होती है हर व्यक्क्ति में. जितने भी योग है वो इसी मार्ग को खोलने का ही कार्य करते है. जैसे जैसे यह मार्ग खुलता है तो यह शक्ति जो कुण्डल मारे हुए है सीधी होनी शुरू हो जाती है और फिर यात्रा आपका मन एक अलग तरह की यात्रा पर चलने लगता है.

शरीर में जगह जगह पर कम्पन्न होते है. झटके भी लगते है. जब ऐसा होने लगे तो समझ ले कि कुंडलिनी जागरण कि प्रक्रिया शुरू हो गयी है. ऐसा होने पर आपके विचार भी बदलने लगता है. शुरू शुरू में मन डराता भी बहुत है. इसलिए कहा जाता है कि कुंडलिनी शक्ति पर यदि काम करना हो तो योग्य व्यक्ति की देखरेख में ही करे.

एक बार यह शक्ति जागृत हो जाये तो एक अलग तरह कि समझ आपमें विकसित हो जाती है. अब यह जागृत हुई समझ ही आपको आगे का रास्ता बताती है. आगे क्या करना है आपको खुद ही समझ आने लगता है. यह इस शक्ति कि सबसे बड़ी खासियत है. यानि जब योग विज्ञानं कि अपने आप से ही समझ आने लगे तो समझ ले कि कुंडलिनी शक्ति जागृत होने लगी है.

आपके प्रयासों से ऐसा भी हो सकता है कि Partial रूप से जागरण हो और फिर वो धीरे धीरे पूर्णरूप के जागरण में प्रवर्तित हो जाये. इसलिए जब इस तरह के लक्षण आये तो समझ ले अब सीरियस होकर प्रयास करना है. क्यूंकि अब डर भी सताने लगेगा साथ में. शुरू के लक्षणों में अक्सर साधक इस रास्ते को डर के कारण छोड़ देते है. इसलिए इसे एक अच्छे गुरु के सानिध्य में ही करना चाहिए.

प्राण को इडा पिंगला में न प्रवाहित करके सुष्मना में प्रवाहित होना होता है जब कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है. कुंडलिनी शक्ति इसे इसलिए कहा जाता है क्यूंकि यह सांप की तरह कुण्डल लिए हुए मूलाधार क्षेत्र में विराजमान होती है. जब सुष्मना मार्ग थोडा सा भी खुलता है तो उतनी मात्रा में यह शक्ति उस मार्ग से प्रवाहित होने लगती है.

अब जग कुण्डलिनी जागरण होगा तो बहुत सारी खूबियाँ आपके अन्दर अपने आप ही चली आएगी. जैसे कि चक्र भेदन की क्षमता आप में अपने आप आ जाएगी. वो इसलिए आएगी क्यूंकि एक बार सुष्मना मार्ग खुल जाये और यह शक्ति चलनी शुरू हो जाये तो आगे का रास्ता इसे खुद तय करना आता है और इस शक्ति के कारण ही आपको पता चलना शुरू हो जाता है कि चक्र कैसे भेदन करने है. चक्र भेदन का मतलब है कि क्गाक्रो के मध्य से सुष्मना का रास्ता बनाना.



जब यह शक्ति जागृत होती है तो ऊपर की और बढती है. इसका रास्ता सुष्मना अलग अलग चक्रों के मध्य में से होकर जाता है. अपने मार्ग को यानि सुष्मना नाड़ी के मार्ग को खुद ही शुद्ध करती हुई यह शक्ति आगे बढती है. प्राणयाम करवाती हुई आपको खुदबखुद आगे की ओर ले कर चलती है.

जो प्राणायाम यह शक्ति करवाती है उस प्राणायाम से मन के विकार अपने आप ही समाप्त होने शुरू हो जाते है और तीनो नाड़ियों को शुद्ध यानि मल रहित कर देती है. जैसे जैसे इस शक्ति के द्वारा प्राण शुद्ध होता है वैसे वैसे मन स्थिर होता चला जाता है.

हर वक़्त अलग अलग अनुभव करवाती है यह शक्ति. क्यूंकि कभी यह द्रुत गति से चलती है और कभी बिलकुल ही धीरे धीरे.

अब जो शिव और शक्ति के बीच में जो सबसे बड़ी अड़चन है वो है काम. अब जैसे जैसे यह शक्ति शिव की ओर बढती है तो शिव की कृपा से यह काम भस्म हो जाता है. काम विजय से ही इस शक्ति का समागम सही व् से हो सकता है और जब ऐसा हो जाता है तो विभिन्न प्रकार कि कलाएं व्यक्तित्व में अपने आप ही आ जाती है.



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