Tuesday, 27 February 2018

मन – एक अति रहस्यमयी शक्ति


मन – एक अति रहस्यमयी शक्ति



रहस्य भी कई प्रकार के होते है कुछ सामान्य श्रेणी के होते है और कुछ बेहद खास. जीवन और हमारा होना अपने आप में एक बहुत खास  रहस्य है. पर आज मैं आपको कही ओर ही ले जाने के मूड में हूँ. रहस्यमयी मन के द्वारा, आपके, मेरे मन में उठते हुए विचारों की मदद से, इन विचारों का अवलोकन करते करते, इन्हें देखते देखते मुझे कुछ खास बाते जानने को मिली जो मैं आपके साथ भी शेयर करना चाहता हूँ. ताकि इन खास बातो को मैं आप सबके मनों से भी समझ सकूँ और हम और आगे बढ़ सके.

मैंने पिछले कुछ समय से मन पर काफी काम किया है. मैंने वेदांत कि नज़र से मन को जानने कि कौशिश की है. कुछ मॉडर्न साइकोलॉजी से समझा है, कुछ  फिलोसोफी से समझा है, खुद भी काफी एक्सपेरिमेंट्स किये है. तो मैंने जो समझा है वो मैं आपको बताना चाहता हूँ. खासतौर पर मन के बारे में.

बात शुरू करता हूँ वेदान्त से, उपनिषद से, क्यूंकि भारतीय अध्यात्मिक वैज्ञानिकों ने, हमारे ऋषियों ने इस पर बहुत काम किया है. क्यूंकि योग में हम सबसे पहले मन को ही साधते है.

एक विषय आता है मन पर जिसका मैंने पहले भी अपने विडियो में जिक्र किया है. वो है चितविक्षेप.

एक विडियो मैंने बनाने था जिसका विषय था तीन समस्याएँ, तीन समाधान और तीन तरीके. जिसमे तीन समस्याएँ थी

चितमल: (Impurity of Mind)
चितविक्षेप (Scattering of Mind)
अज्ञानता (Ignorance)

इनमे से पहली दो प्रोब्लेम्स पर मैं आपसे चर्चा करना चाहता हूँ. Impurity of Mind और Scattering of Mind पर. और मेरे लिए जो खास बात है  वो दूसरी वाली समस्या है यानि - चितविक्षेप (Scattering of Mind)
Impurity of Mind मन की वो अवस्था होती है जिसमे मन किसी भी बाहरी विचार को अपने अन्दर आने ही नहीं देता और जिसे हम कर्मयोग और त्राटक, प्राणयाम से ठीक करते है.

दूसरी समस्या, चितविक्षेप (Scattering of Mind) है. इसमें क्या होता है कि मन टिकता नहीं है, एक विषय से दुसरे विषय पर Scattering होती रहती है मन की. इसे drifting भी कहते है. यानि कि किसी भी सोच पर टिक ही नहीं पाना. चितविक्षेप से क्या होता है कि हम जिस विषय पर टिकना चाहते है उस विषय से बार बार फिसल जाते है. कही के कही भटक जाते है. यानि हम चले तो कही ओर से होते है और पहुच कही के कही जाते है. ऐसे ही हम चलते आ रहे होगे कही से और पता नहीं हमारा मन drift होता होता कहा से कहा पहुच भी गया होगा और आज जो हमारा जीवन है तब शायद यह हमारा लक्ष्य न भी हो जब हम चले हो. 

क्यूंकि मन drift हो हो कर भी हर समय अपना वजूद बनाये रखता है और हर समय हमें उस वक़्त चल रही Thoughts की favor में भी बनाये रखता है. यहाँ तक कि हमारी बुद्धि भी मन में उपलब्ध डाटाबेस के आधार पर ही सोचती है. आज जो हमारा लक्ष्य है वो कल नहीं था, जो कल था वो परसों नहीं रहा होगा इस तरीके से चलते चले तो हम mind की drifting की वजह से अपने होने का असली उदेश्य तो भूल ही चुके होंगे शायद. कोई तो वो विचार होगा जिसके कारण हमारा जन्म हुआ होगा या शरीर होने के इस सिस्टम में हम पड़े होंगे शायद. पर हमारे मन ने drift हो हो कर हमें कही का कही पंहुचा दिया होगा. एक विचित्र तरह की उदासी कही एक उदेश्यहीन जीवन की देन तो नहीं है? 

ऐसे ही सभ्यताएं की सभ्यताएं चली जा रही होगीं हमारे मन के द्वारा एक अंतहीन यात्रा पर. क्यूंकि मन की drifting का कोई भी फिक्स रूल या नियम तो होता नहीं है. जो drifting होती है वो मन कि कंडीशनिंग पर ही होती है. यानि drifting भी मन कि और कंडीशनिंग भी मन की. अपने लक्ष्य से जितना दूर व्यक्ति चला जाता है तो उदासी, नकरात्मक विचार उसे घेर लेते है. इसीलिए ही आज समाज में तनाव है, नकारात्मक विचार हर किसी के मन में घर बनाये हुए है. क्यूंकि खुद के लक्ष्य भूल चुके है हम drift होते होते. आज जो विचार हमारे लक्ष्य है उन विचारो से वो शायद हमारा कभी कोई वास्ता रहा ही न हो.    

अगर ऐसा है तो फिर करे क्यां? यह सबसे बड़ा प्रश्न हमारे सामने उभर कर सामने आता है. कैसे जाने अपनी यात्रा को,कैसे जाने उस विचार को जो हमारा होगा और जिससे हमारा अपना वास्ता होगा. जिसे अपनाने से हमें सकून मिलेगा. कैसे हम अनचाहे विचारों को हटा दे और उस विचार को पा ले जो हमारा अपना होगा.
उतर एक ही है चित की विपेक्षता हटानी होगी, यह मन जो बार बार भाग जाता है उसे रोकना होगा.      


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