Saturday, 21 April 2018

कही आप गलत तरीके से तो ध्यान नहीं कर रहे.


कही आप गलत तरीके से तो ध्यान नहीं कर रहे.

नाडी तत्व विवेचन

कही आप गलत तरीके से तो ध्यान नहीं कर रहे. अगर ऐसा हुआ तो ध्यान से फायदे की बजाये घाटा भी हो सकता है. और कितने भी साल लगे रहे ध्यान में रिजल्ट्स नहीं मिलेंगे.

शाश्त्रो में 72000 से भी ज्यादा नाड़ियां बताई गयी है. इन नाड़ियों में मुख्य तीन नाड़ियां होती है. पिंगला इड़ा और सुष्म्ना. पांच तत्व है पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश.

जब व्यक्ति का जन्म होता है तो वो अपनी पहली साँस किसी न किसी नाड़ी  में लेता है वो इड़ा, पिंगला और सुष्म्ना में से कोई भी हो सकती है और नाड़ी के साथ एक तत्व भी मौजूद रहता है. वो पांचो तत्वों में से कोई भी एक हो सकता है.

हर वक़्त वातावरण में भी इन सूक्ष्म तत्वों की मोजुदगी रहती है और प्रकृति में भी यह तीन नाड़ी विद्यमान रहती है. तो साइंस ऑफ़ एस्ट्रोलॉजी के हिसाब से हर व्यक्ति के जन्म के समय की गणना की जा सकती है कि कोई व्यक्ति जब पैदा हुआ और इस दुनियां में उसने जो पहली साँस ली वो कौनसी नोस्त्रिल से ली और किस तत्व में ली.

यह कमाल का विज्ञानं है. और यह एक ऐसा विज्ञानं है जो हमें हमारे बारे में हर चीज  बताता है. हम जीवन में कौनसा कार्य करेंगे और कौनसा कार्य करना हमारे लिए सही रहेगा. अध्यात्मिक यात्रा में सफल रहेगे या नहीं. जीवन में सफल रहेंगे या नहीं. यह सब कुछ.

उसके बाद इस गणना में व्यक्ति के व्यक्तित्व में तत्व विवेचन की जाती है कि कौनसा तत्व बढ़ा हुआ है और कौनसा घटा हुआ. जिस के आधार पर हम यह तय करते है कि हमें कौनसा ध्यान करना चाहिए. किस चक्र पर काम करना चाहिए और किस पर नहीं. हर बात यह नाड़ी तत्व विवेचन हमें बताता है.

कई बार क्या होता है कि हम ध्यान करते है और सब कुछ उल्टा होना शुरू हो जाता है. क्रोध बढ़ जाता है, डर बढ़ जाता है, काम बनने की बजाये बिगड़ने लगते है. उसका मतलब यह होता है हम जो ध्यान की विधि अपनाये हुए है वो ध्यान की विधि हमारे लिए नहीं है.

जैसे की मान लीजिये कि किसी व्यक्ति का अग्नि तत्व जन्म से ही अधिक है  वो यदि मणिपुर चक्र पर ध्यान करता है तो उसमे शांति आने की बजाये क्रोध बढ़ने लगेगा पेट सम्बन्धी रोग रहने लगेगे.
या फिर पृथ्वी तत्व बढ़ा हुआ है और वो मूलाधार पर ज्यादा ध्यान करता है तो जोड़ो के दर्द सम्बंधित रोग होने लगेगे. ध्यान के शांति आने की बजाये सांसारिक सुख अपनी ओर खिचेगे.

या फिर जल तत्व ज्यादा बढ़ा हुआ या फिर घटा हुआ है तो काम, मोह बढ़ जायेगा या फिर बहुत घट जायेगा और किसी भी काम में मन नहीं लगेगा. ऐसे में व्यक्ति बहुत सारे  काम बदलेगा. और किसी भी काम में सक्सेस नहीं होगा.

वायु तत्व अगर बढ़ जाता है या घट जाता है तो ध्यान के विघ्न डालेगा और बनते हुए काम को उड़ा डालेगा. कुछ भी समझ नहीं आने देगा. मन हमेशा भ्रमित रहेगा.

इस तरह से तत्वों का और नाड़ी का अगर सही तालमेल होगा तो आप आगे बढ़ पायेगे भौतिक दृष्टि से भी और सांसारिक दृष्टि से भी.

इसके लिए नाडी तत्व विवेचन करवाना पड़ता है. नाडी तत्व विवेचन Yoga My Life के द्वारा वेदान्त के ज्ञान से Discover किया हुआ एक प्रोसेस है, तरीका है. यह इतने सटीक रिजल्ट्स देता है कि रिजल्ट्स मिलने की सम्भावना 90% से ज्यादा रहती है.

इसलिए अगर आप सही तरीके से अध्यात्म में बढना चाहते है तो यह एक तरीके का Diagnostic Test है इस जरुर से करवाना चाहिए ताकि आप सही ध्यान करके सही दिशा में आगे बढ़ सके.

Acharya Harish

     

Tuesday, 17 April 2018

पतंजलि क्यां समझाना चाहते है?


पतंजलि क्यां समझाना चाहते है.


यह जो कुछ भी हमें अपने चारो और दिखाई दे रहा है वो प्रकृति है. पतंजलि योग सूत्र कहता है कि प्रकृति और पुरुष दोनों भिन्न भिन्न तत्व है और दोनों ही अनादि है. प्रकृति जड़ है और पुरुष चेतन है. जैसे ही इन दोनों का मिलन होता है तो प्रकृति में हलचल पैदा हो जाती है और सृष्टी निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है.

योग भारतीय दर्शन का एक स्कूल है. भारतीय योग दर्शन. और भी कई स्कूल है भारतीय दर्शन में और हर स्कूल को अपनी अपनी विशेषताए है. सबने अपनी अपनी बात कही है. परन्तु पतंजलि ने एक तरह से एक प्रैक्टिकल एप्लीकेशन दी है.

प्रकृति दृश्य है और पुरुष दृष्टा है, देखने वाला है. इस सृष्टि में हर जगह प्रकृति ही दिखाई  देती है और जो इसे देख रहा है वो नहीं दिखाई देता जबकि इस प्रकृति का सम्पूर्ण कार्य उस चेतना की वजह से ही हो रहा है. दोनों प्रकृति और पुरुष इस प्रकार से मिल गए है कि ठीक से पहचानना मुश्किल हो गया है. अब जो जीव है वो इन दोनो के संयोग का परिणाम है. हम सब जीव है, मैं, आप हम सब. यह चेतन पुरुष ही जीव में आत्मा और सृष्टि में विश्वात्मा है.

प्रकृति जड़ है लेकिन जीव विश्वात्मा का अंश होने के कारण चेतन है. आत्मा जड़ प्रकृति से बिलकुल मेल नहीं खाती क्यूंकि वो प्रकृति ने आत्मा को नहीं बनाया. प्रकृति त्रिगुणात्मक है. सत्व, रज और तम यह तीन प्रकृति के गुण है जबकि आत्मा गुणातीत है. प्रकृति में पदार्थ है जबकि आत्मा इस प्रकृति के किसी भी पदार्थ का हिस्सा नहीं है.

लेकिन जीव ने मन के कारण अपने आपको इस प्रकृति से ही जोड़ लिया है. क्यूंकि शरीर प्रकृति जनित है इसलिए जीव को लगता है कि प्रकृति ही उसका लक्ष्य है. प्रकृति में उपलब्ध पदार्थ ही उसका लक्ष्य है. यानि कि जीव खुद को शरीर समझ बैठा है कि मैं शरीर हूँ. जबकि समझा मन रहा है कि तुम शरीर हो और जो दिखाई दे रहा है वही सच है.

दुःख और सुख दोनों प्रकृति द्वारा पैदा किये गए है. दुखी और सुखी होने का कारण हमारा खुद का जुडाव है प्रकृति से. बीच में जो मन है उसके कारण जुडाव है. क्यूंकि हम खुद को केवल शरीर ही मान रहे है तो हर वस्तु से हम अपना वास्ता कर लेते है जबकि हमारा वास्तविक स्वरुप अलग है. विज्ञानं के अनुसार भी एक जैसे गुणों वाले पदार्थो का मिलन होता है विजातीय गुणों वाले पदार्थो का नहीं.

हम दुःख से बच सकते है पर इसके साथ हमें सुख को भी छोड़ना होगा. केवल दुःख को छोड़ कर बात नहीं बन सकती. छोड़ना होगा तो दोनों को छोड़ना होगा. सुख को भी और दुःख को भी. दोनों को बड़े ही आराम से छोड़ा भी जा सकता है. अगर हम अपने असली स्वरुप को जान ले तो. इसके लिए जो बीच की कड़ी है, हमारा मन, उसे दुरुस्त करना होगा.

इसी का नाम ही योग है. सुख और दुःख को छोड़ना और पाने असली स्वरुप को जान कर उससे जुड़ना. योग वास्तव में जुड़ने को ही कहते है. 

तीन बाते है – कि
मैं खुद को शरीर समझ लूँ.
मैं खुद को मन समझ लूँ.
या फिर मैं खुद को आत्मा समझ लूँ.

अगर खुद मैं खुद को शरीर समझता हूँ तो क्या होगा

तो मैं एक तरह से शरीर के माध्यम से एक भोक्ता होउगा. शरीर को जो जो महसूस होगा वो वो मुझे महसूस होगा. मुझे अपने अस्तित्व का डर लगेगा क्यूंकि यह बात तो पक्की है कि शरीर ने मरना है. मैं सुख को भी भोगुगा, बिमारियों को भी भोगुगा, हर उस भाव के साथ मेरा सम्बन्ध होगा जो शरीर से जुड़ा हुआ है और शरीर के कारण है. और इस जुडाव से कभी भी नहीं निकल पाउगा. जन्म बीत जायेंगे परन्तु मैं शरीर ही रहूगा.

अब अगर मैं यह मानना शुरू कर दूँ कि मैं शरीर नहीं मन हूँ – तो क्यां होगा

मुझे मन के विकारो को भी भोगना पड़ेगा. मेरा मन ही decide करेगा कि यह सुख है और यह दुःख है और मुझे वो मानना ही पड़ेगा. मैं मानुगा ही क्यूंकि मैं मन ही तो होउगा. मन में उठने वाला हर विचार के तहत इधर उधर भागना मेरी मज़बूरी होगी. फिर मन प्रकृति के तीन गुणों और अपने विकारो के साथ मुझे जैसा चाहेगा चलाएगा.

अब अगर मैं यह मान लूँ की मैं एक आत्मा हूँ – तो क्यां होगा

देखिये मन जो है वो शरीर से अलग है बिलकुल अलग. मन से हर वस्तु को समझा जा सकता है पर मन कोई भी वस्तु नहीं है. इस तरह से आत्मा शरीर से तो अलग है ही परन्तु मन से भी बिलकुल अलग है. जैसे मन दुनियां की किसी भी वस्तु से मेल नहीं खाता ठीक वैसे आत्मा मन से भी मेल नहीं खाती. वो शक्ति जो शरीर मन और प्रकृति को चला रही है. पर वो शक्ति न तो शरीर है, बा मन है, न प्रकृति है और उसे शब्दों में बयाँ किया ही नहीं जा सकता. तो अब होगा क्यां मेरी यात्रा का टारगेट ही बदल जायेगा. केवल अध्यात्मिक यात्रा का लक्ष्य ही नहीं बल्कि भौतिक जीवन यात्रा का लक्ष्य भी बदल जायेगा. मैं क्यूँ उसके लिए कार्य करुगा जो मैं हूँ ही नहीं यानि शरीर के लिए.

इस तरह से पतंजलि निकाल कर लेकर जाना चाहते है. उनके पास निकलने का तरीका भी है जिसे उन्होंने योग दर्शन का नाम दिया है. हर बात को उन्होंने समझा, हर बात को उन्होंने परखा और यह भी देखा कि इस यात्रा में क्यां क्यां प्रोब्लेम्स आएगी और उनका निदान क्या होगा. सब कुछ दिया महर्षि पतंजलि ने.

पतंजलि योग केवल योग आसन नहीं है. केवल प्राणायाम नहीं है. वास्तव में जो दीखता है वो है नहीं और जो है वो दिखता नहीं है. वही पतंजलि दिखाना चाहते है; जो है पर दीखता नहीं है.

मुझे आगे आपसे पतंजलि योग सूत्र पर बात करनी है

चक्रों में छिपी है रहस्यमयी शक्तियां




जैसा कि आप सब जानते है कि इन्सान में यानि Human Instrument में मोटे तौर पर 7 चक्र होते है.

मूलाधार
स्वधिस्थान
मणिपुर
अनाहत
विशुद्धि
आज्ञा
सहस्त्रार

मैं आपको विशेषतौर पर 6 चक्रों के बारे में ही बताउगा और उनसे जुडी हुई रहस्यमयी बातें भी बताउगा. हर चक्र की अपनी एक विशेषता है, अपने गुण है. जब चक्र में सही उर्जा होती है तो उस से सबंधित सभी गुण व्यक्तित्व में उभर कर सामने आते है और यदि चक्र की उर्जा में कमी आ जाये तो उस से सम्बंधित रोग इत्यादि भी शरीर और मन में उभर कर सामने आते है.

किसी भी व्यक्ति में कोई विशेष गुण है; मैं उन गुणों की बात कर रहा हूँ जो जन्मजात होते है. कोई भी विशेष गुण सबंधित चक्र के कारण ही होता है. जैसे कि कोई बहुत ही अच्छा आर्टिस्ट है, पेंटर है, गायक है, कुक है, डांसर है, अभिनेता है, अभिनेत्री है. कोई भी ऐसी कला जिससे जनमानस को मंत्रमुग्ध किया जा सकता हो वो अनाहत चक्र के सही उर्जावान होने पर आती है.

अब हर किसी में तो जन्मजात गुण होते नहीं है और यदि आप अपने जीवन में ऐसी कोई विलक्षण प्रतिभा चाहते है तो अनाहत चक्र को एक्टिवेट करके वो प्रतिभा हांसिल कर सकते है. मन बहुत सारी इच्छाओं से भरा हुआ है, हर किसी के मन में कुछ कर दिखाने की ईच्छा छिपी रहती है परन्तु व्यक्तित्व में वो प्रतिभा उपलब्ध न होने के कारण हम अपनी ईच्छाओं को मन में ही मार देते है.

परन्तु मैं जो बता रहा हूँ वो बिलकुल अलग तरीका है. रहस्यमयी है, विलक्षण है और व्यवाहरिक भी है. आपका मन है कि इस दुनियां में आप कुछ करके जाये तो; दो चक्रों पर ध्यान कीजिये – मणिपुर चक्र और अनाहत चक्र. यक़ीनन आप अपना मुकाम हांसिल कर लेंगे. आप हैरान होंगे कि अपने आप ही आपके अन्दर क्रिएटिव विचारो का सृजन होने लगेगा और आपको लगेगा कि आप कुछ भी कर सकते है और यह सब आपको अपने अंदर से अपने आप ही महसूस होगा.

ऐसे ही यदि आप ज्ञानवान होना चाहते है वो भी इस तरह से कि आपको अपने आप ही हर बात का पता चल जाये. All Knowing ability तो आप फिर दो चक्रों पर ध्यान कीजिये – मणिपुर और विशुद्धि चक्र. विशुद्धि चक्र एक्टिव होने से ज्ञान अपने आप ही मन में उभरने लगता है. जब ऐसा होगा तो आप हैरान होंगे कि जो आपके मन में उभर रहा है वही ज्ञान की किताबो में लिखा हुआ है. वेदों में, उपनिषदों में, गीता में, विज्ञानं में.

ऐसे ही यदि आप अनोखे अनुभव चाहते है तो और शरीर से अलग कुछ अनोखा अनुभव चाहते है तो आप आज्ञा चक्र पर ध्यान कीजिये. आपको नित नए अनुभव होंगे. कभी आनंद का अनुभव, कभी अनोखी खुशबु का अनुभव, खुशबु इतनी अनोखी कि ऐसी खुशबु आपने कभी अनुभव की ही नहीं होगी और इसे केवल और केवल आप ही अबुभाव कर रहे होंगे. आपके साथ यदि हज़ार व्यक्ति भी है तो भी आप अकेले उस खुशबु का आनंद उठा रहे होंगे.

बहुत सारी रहस्यमयी शक्तियां भी आपके पास अपने आप चल कर आ जाती है. ऐसी शक्तियां जिनके बारे में आपने कभी सोचा ही नहीं होगा. जैसे की कोई आपके पास आता है तो आपको उसकी भावनाओ के पता चल जायेगा. कही नेगेटिव उर्जा होगी तो उसका तुरंत पता चल जायेगा. कही पॉजिटिव उर्जा होगी तो उसका भी अपने आप ही पता चल जायेगा. बहुत सारी घटनाओं का पहले से ही आभास हो जायेगा.

आज सफलता हर किसी की जरुरत है. आज धन, पैसा हर किसी की जरुरत है. पर कई बार हालात ऐसे हो जाते है कि कुछ समझ में आता नहीं है. ऐसे में अध्यातम आपका मित्र बन कर आपके साथ खड़ा होता है. कुछ खास बात है अध्यात्म में जो आपको मुश्किल हालातो से निकलने में मदद कर सकती है. अगर इस तरह के हालात जीवन में आ जाये तो मणिपुर चक्र पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान करना चाहिए.


संध्या साधना बदल सकती है आपकी किस्मत


संध्या साधना बदल सकती है आपकी किस्मत


हिन्दू धर्म में संध्यावंदन का विशेष महत्व है जिसका वर्णन हमारे पुराणों में, हमारे वदो में किया गया है. खासतौर पर शिवस्वरोदय नामक शाश्त्र में जिस शाश्त्र की मदद से मैं आपको संध्या साधना का खास मतलब बताने वाला हूँ.

संध्यावंदन में दिन में तीन बार पाठ किया जाता है। एक सूर्योदय के दौरान (जब रात्रि से दिन निकलता है), अगला दोपहर के दौरान (जब आरोही सूर्य से अवरोही सूर्य में संक्रमण होता है) और सूर्यास्त के दौरान (जब दिन के बाद रात आती है).

प्रातःकाल सध्या को प्रातःसंध्या या प्रभात और दोपहर की वंदना को मध्याह्निक सध्यां और सायंकाल में सायंसंध्या. तो इस तरह दिन में तीन बार संध्या की जाती है.

अब बात यह है कि संध्या में ऐसी क्या खास बात है कि इस समय की गयी साधना सबसे ज्यादा फलित होती है. और  इस वक़्त की गयी प्रार्थना आपकी किस्मत बदल सकती है.

मैंने आपको शिवस्वरोदय शाश्त्र के बारे में बताया है जिसका सम्बन्ध हर पल चलने वाले और बदलने वाले स्वर से है. भारतीय दर्शन क अनुसार हमारे शरीर में कोई 72000 नाड़ियां है और उन 72000 में से तीन नाड़ियां सबसे इम्पोर्टेन्ट है और उन तीन में से सबसे इम्पोर्टेन्ट जो है वो है सुष्मना नाड़ी.

ऐसे ही हमारा मानव शरीर पांच तत्वों से मिल कर बना है. यह है पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश. अध्यात्मिक दृष्टि से जो सबसे ज्यादा इम्पोर्टेन्ट है वो है आकाश तत्व. और नाड़ी और तत्वों का जो सबसे अनूठा संगम है वो है सुष्मना नाड़ी हो और आकाश तत्व हो.

अब मज़े की बात यह है कि जब संध्या का समय होता है तो सबसे ज्यादा Chances होते है सुष्मना नाड़ी के साथ आकाश तत्व होने के. Automatically ऐसा होता है संध्या के समय. और यह वो कॉम्बिनेशन है जब हम ईश्वर के बहुत करीब पहुच जाते है. परन्तु ऐसा कुछ पलो के लिए ही होता है. यदि हम इन पलो को पकड़ना सीख ले या सजग होकर उन पलों  में कोई भी ईच्छा करे तो वो ईच्छा अवश्य पूरी होती है.

परन्तु उसके लिए सजग रहना होगा, यह पल आते है, हर रोज़ आते है और किसी भी संध्या में आ सकते है, सुबह, दोपहर या शाम कभी भी. आपको सजग रहना होगा उन पलों  के लिए.

ऐसा कहा जाता है कि यह एस पल होते है जिस समय हम ईश्वर के बेहद नजदीक पहुच जाते है और इस वक़्त कुछ भी माँगा जाये वो मिलता है. भौतिक हो या अध्यात्मिक कुछ भी अगर मांगेगे वो मिलेगा ही.

अब बात यह है कि हर वक़्त तो हम सजग होते नहीं है क्यूंकि हमारा मन होने नहीं देता है. परन्तु क काम हम कर सकते है वो यह की हम तीनो समय संध्या करे. यह वो समय है जब रात सुबह में बदल रही होती है और जब दोपहर को सूर्य दिशा बदल रहा होता है और जब दिन रात मी बदल रही होती है.

इन तीन संध्या कालो में प्रार्थना करने का नियम बना लीजिये. और जो आप अपने जीवन से चाहते है भौतिक हो या अध्यात्मिक वो संध्याकाळ की प्रार्थना में कहिये तो आप अपनी किस्मत बदल सकते है.

Wednesday, 4 April 2018

एक शक्तिशाली गुप्त साधना



एक शक्तिशाली गुप्त साधना

100% रिजल्ट देने वाली

मन्त्र कई प्रकार के होते है. सात्विक मन्त्र, राजस मन्त्र, तामसिक मन्त्र, शाबर मन्त्र, बीज मन्त्र और भी बहुत से. मंत्रो को जपने की भी बहुत सी विधियां भी दी हुई है हमारे शाश्त्रो में. पर मै आज आपको कुछ खास बात बताने जा रहा हूँ मन्त्र जपने के बारे में और मन्त्र शक्ति के बारे में.

यह जो विधि मैं आपको बता रहा हूँ यह अति गोपनीय विधि है. परन्तु इस विधि को अगर केवल गोपनीय ही बना कर रखा तो यह विधि शाश्त्रो में दब कर ही दम तोड़ देगी इसलिए बहुत सोच विचार कर मैं इस विधि को मैं आपको सिखाने जा रहा हूँ.

मैंने वास्तव में इस विधि को मॉडर्न साइकोलॉजी और पतंजलि योग सूत्र के सिद्धांत पर विकसित किया है. इस विधि पर पहले मैंने खुद एक्सपेरिमेंट किया है और फिर आपको बताने जा रहा हूँ.

सबसे पहले मैं आपको इस विधि को लेकर कुछ खास हिदायते देना चाहता हूँ ताकि अगर कोई समस्या आये तो उस स्थिति में क्या करना है.

सबसे पहली बात कि इस विधि से मन तो एकदम काबू में जायेगा. परन्तु उस वक़्त कुछ बाते हो सकती है.

एक दम शांति अनुभव हो सकती है.
दूसरा मन के रुकने से एकदम डर पैदा हो सकता है.
तीसरा एकदम उर्जा पैदा हो सकती है.
चोथा शरीर में वाइब्रेशन किसी भी जगह पर पैदा हो सकते है.
पांचवा शरीर में झटके भी लग सकते है.

बस अगर उर्जा ज्यादा पैदा हो या झटके ज्यादा लगे तो उसी वक़्त प्रैक्टिस को रोक देना है. डर लगेगा भी तो थोड़े समय बाद अपने आप ही ख़त्म हो जायेगा.

परन्तु मेरी बताई हुई विधि से आप यदि प्रैक्टिस करते है तो यह बात पक्की है कि रिजल्ट्स मिलेगे ही.
आप चाहे किसी भी धर्म से सबंधित हो और किसी भी मन्त्र पर जप आप करना चाहते हो यह विधि सभी मंत्रो पर काम करेगी.

अब असली बात पर आता हूँ कि करना क्यां है?

कोई भी मन्त्र जो आप जपना चाहते है. उदहारण के तौर पर मैं गायत्री मन्त्र लेता हूँ.

ॐ भूर्भुव स्वः।
तत् सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

अब आप गायत्री मन्त्र जपना शुरू कीजिये. आपको एक साथ डबल मन्त्र जप करना है. जैसे आपने शुरू किया कि ॐ भूर्भुव स्वः अभी मन्त्र पूरा हुआ नहीं है उससे पहले साथ में ही एक और मन्त्र शुरू कर देना है यही फिर से ॐ भूर्भुव स्वः...

यानि मन में एक नहीं दो मन्त्र एक साथ चल रहे है पर टाइमिंग थोड़ी अलग है दोनों मंत्रो की. एक ख़त्म नहीं होता है की दूसरा शुरू हो जाता है या यूँ कह सकते है कि एक मन्त्र के शुरू होने के तुरंत बाद दूसरा शुरू हो जाता है.

अगर आप सही तरीके से ऐसा कर पाए तो एक दम रिजल्ट आएगा. एकदम तुरंत. बस विधि को सही तरीके से समझना है कि मन में एक साथ दो मन्त्र चलने चाहिए. शांति, आनंद, उर्जा, वाइब्रेशन, सब कुछ होगा. हो सकता है कि डर भी लगे. पर रुकना नहीं है. हाँ उर्जा ज्यादा महसूस होने लगे तो एकदम रोक देना है और बस एक ही मन्त्र पर आ जाना है.

आप किसी भी मन्त्र पर इस विधि का प्रयोग कर सकते है. कोई भी मन्त्र, किसी भी धर्म से ही. मैंने गायत्री मन्त्र का केवल उदहारण दिया है. आप एक ओंकार सतनाम. ॐ मणिपद्मे हुम्, आप अल्लाह या अन्य कोई इस्लामिक मन्त्र जप सकते है. आपके गुरु का दिया हुआ मन्त्र जप सकते है.