पतंजलि क्यां समझाना चाहते है.
यह जो कुछ भी हमें अपने चारो और दिखाई दे रहा है वो प्रकृति है. पतंजलि योग
सूत्र कहता है कि प्रकृति और पुरुष दोनों भिन्न भिन्न तत्व है और दोनों ही अनादि
है. प्रकृति जड़ है और पुरुष चेतन है. जैसे ही इन दोनों का मिलन होता है तो प्रकृति
में हलचल पैदा हो जाती है और सृष्टी निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है.
योग भारतीय दर्शन का एक स्कूल है. भारतीय योग दर्शन. और भी कई स्कूल है भारतीय
दर्शन में और हर स्कूल को अपनी अपनी विशेषताए है. सबने अपनी अपनी बात कही है. परन्तु
पतंजलि ने एक तरह से एक प्रैक्टिकल एप्लीकेशन दी है.
प्रकृति दृश्य है और पुरुष दृष्टा है, देखने वाला है. इस सृष्टि में हर जगह
प्रकृति ही दिखाई देती है और जो इसे देख
रहा है वो नहीं दिखाई देता जबकि इस प्रकृति का सम्पूर्ण कार्य उस चेतना की वजह से
ही हो रहा है. दोनों प्रकृति और पुरुष इस प्रकार से मिल गए है कि ठीक से पहचानना
मुश्किल हो गया है. अब जो जीव है वो इन दोनो के संयोग का परिणाम है. हम सब जीव है,
मैं, आप हम सब. यह चेतन पुरुष ही जीव में आत्मा और सृष्टि में विश्वात्मा है.
प्रकृति जड़ है लेकिन जीव विश्वात्मा का अंश होने के कारण चेतन है. आत्मा जड़
प्रकृति से बिलकुल मेल नहीं खाती क्यूंकि वो प्रकृति ने आत्मा को नहीं बनाया. प्रकृति
त्रिगुणात्मक है. सत्व, रज और तम यह तीन प्रकृति के गुण है जबकि आत्मा गुणातीत है.
प्रकृति में पदार्थ है जबकि आत्मा इस प्रकृति के किसी भी पदार्थ का हिस्सा नहीं है.
लेकिन जीव ने मन के कारण अपने आपको इस प्रकृति से ही जोड़ लिया है. क्यूंकि
शरीर प्रकृति जनित है इसलिए जीव को लगता है कि प्रकृति ही उसका लक्ष्य है. प्रकृति
में उपलब्ध पदार्थ ही उसका लक्ष्य है. यानि कि जीव खुद को शरीर समझ बैठा है कि मैं
शरीर हूँ. जबकि समझा मन रहा है कि तुम शरीर हो और जो दिखाई दे रहा है वही सच है.
दुःख और सुख दोनों प्रकृति द्वारा पैदा किये गए है. दुखी और सुखी होने का कारण
हमारा खुद का जुडाव है प्रकृति से. बीच में जो मन है उसके कारण जुडाव है. क्यूंकि
हम खुद को केवल शरीर ही मान रहे है तो हर वस्तु से हम अपना वास्ता कर लेते है जबकि
हमारा वास्तविक स्वरुप अलग है. विज्ञानं के अनुसार भी एक जैसे गुणों वाले पदार्थो
का मिलन होता है विजातीय गुणों वाले पदार्थो का नहीं.
हम दुःख से बच सकते है पर इसके साथ हमें सुख को भी छोड़ना होगा. केवल दुःख को
छोड़ कर बात नहीं बन सकती. छोड़ना होगा तो दोनों को छोड़ना होगा. सुख को भी और दुःख को
भी. दोनों को बड़े ही आराम से छोड़ा भी जा सकता है. अगर हम अपने असली स्वरुप को जान
ले तो. इसके लिए जो बीच की कड़ी है, हमारा मन, उसे दुरुस्त करना होगा.
इसी का नाम ही योग है. सुख और दुःख को छोड़ना और पाने असली स्वरुप को जान कर
उससे जुड़ना. योग वास्तव में जुड़ने को ही कहते है.
तीन बाते है – कि
मैं खुद को शरीर समझ लूँ.
मैं खुद को मन समझ लूँ.
या फिर मैं खुद को आत्मा समझ लूँ.
अगर खुद मैं खुद को शरीर समझता हूँ तो क्या होगा
तो मैं एक तरह से शरीर के माध्यम से एक भोक्ता होउगा. शरीर को जो जो महसूस
होगा वो वो मुझे महसूस होगा. मुझे अपने अस्तित्व का डर लगेगा क्यूंकि यह बात तो
पक्की है कि शरीर ने मरना है. मैं सुख को भी भोगुगा, बिमारियों को भी भोगुगा, हर
उस भाव के साथ मेरा सम्बन्ध होगा जो शरीर से जुड़ा हुआ है और शरीर के कारण है. और
इस जुडाव से कभी भी नहीं निकल पाउगा. जन्म बीत जायेंगे परन्तु मैं शरीर ही रहूगा.
अब अगर मैं यह मानना शुरू कर दूँ कि मैं शरीर नहीं मन हूँ – तो क्यां होगा
मुझे मन के विकारो को भी भोगना पड़ेगा. मेरा मन ही decide करेगा कि यह सुख है
और यह दुःख है और मुझे वो मानना ही पड़ेगा. मैं मानुगा ही क्यूंकि मैं मन ही तो
होउगा. मन में उठने वाला हर विचार के तहत इधर उधर भागना मेरी मज़बूरी होगी. फिर मन
प्रकृति के तीन गुणों और अपने विकारो के साथ मुझे जैसा चाहेगा चलाएगा.
अब अगर मैं यह मान लूँ की मैं एक आत्मा हूँ – तो क्यां होगा
देखिये मन जो है वो शरीर से अलग है बिलकुल अलग. मन से हर वस्तु को समझा जा
सकता है पर मन कोई भी वस्तु नहीं है. इस तरह से आत्मा शरीर से तो अलग है ही परन्तु
मन से भी बिलकुल अलग है. जैसे मन दुनियां की किसी भी वस्तु से मेल नहीं खाता ठीक
वैसे आत्मा मन से भी मेल नहीं खाती. वो शक्ति जो शरीर मन और प्रकृति को चला रही
है. पर वो शक्ति न तो शरीर है, बा मन है, न प्रकृति है और उसे शब्दों में बयाँ
किया ही नहीं जा सकता. तो अब होगा क्यां मेरी यात्रा का टारगेट ही बदल जायेगा. केवल
अध्यात्मिक यात्रा का लक्ष्य ही नहीं बल्कि भौतिक जीवन यात्रा का लक्ष्य भी बदल
जायेगा. मैं क्यूँ उसके लिए कार्य करुगा जो मैं हूँ ही नहीं यानि शरीर के लिए.
इस तरह से पतंजलि निकाल कर लेकर जाना चाहते है. उनके पास निकलने का तरीका भी
है जिसे उन्होंने योग दर्शन का नाम दिया है. हर बात को उन्होंने समझा, हर बात को
उन्होंने परखा और यह भी देखा कि इस यात्रा में क्यां क्यां प्रोब्लेम्स आएगी और उनका
निदान क्या होगा. सब कुछ दिया महर्षि पतंजलि ने.
पतंजलि योग केवल योग आसन नहीं है. केवल प्राणायाम नहीं है. वास्तव में जो
दीखता है वो है नहीं और जो है वो दिखता नहीं है. वही पतंजलि दिखाना चाहते है; जो
है पर दीखता नहीं है.
मुझे आगे आपसे पतंजलि योग सूत्र पर बात करनी है
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