भारतीय दर्शन के अनुसार मनुष्य के
भौतिक शरीर के अन्दर के प्राण शरीर होता है, जोकि प्राण उर्जा से बना होता है. यही
प्राण उर्जा ही मनुष्य को जीवित बनाये रखती है. इसी उर्जा के अलग अलग पुंज है इस
शरीर में जोकि अलग अलग फ्रीक्वेंसी पर कार्य कर रहे है. उर्जा के इन्ही पुंजो को
हम योग की भाषा में चक्र कहते है.
इसमें दो बाते है एक तो प्राण शक्ति
और दूसरी हमारी चेतना या हमारा अवेयरनेस. प्राण उर्जा के विभिन्न पुंजो से यही
मतलब निकलता है कि जब हम एक चक्र से दुसरे चक्र तक यात्रा करते है तो हमारी चेतना
का स्तर बढ़ जाता है. अब इसका क्या मतलब हुआ? इसका मतलब यह है कि आज हम जो जीवन जी
रहे है और आज जो हमारी विचार धारा है, जो हमारी सोच है अच्छी है या बुरी है, यदि
हमने अगला पड़ाव किसी तरह से पा लिया तो सब कुछ बदल जायेगा, हमारे विचार, हमारा
व्यक्तित्व और हमारे लिए यह संसार भी. तो जब हम एक चक्र से दुसरे चक्र तक आगे
बढ़ेगे तो प्राण शक्ति और चेतना या अवेयरनेस यह दोनों ही बढ़ जाएगी.
विज्ञानं कहता है कि मनुष्य अपने जीवन
में अपने अपार Mind का या Brain का केवल कुछ Percent हिस्सा ही प्रयोग करता है या
फिर कर पाता है और यदि किसी तरीके से वो अपने Mind के hidden हिस्से तक पहुच जाये
तो Super Human बन सकता है इसमें कोई भी शक नहीं है. पर विज्ञानं यह बात इस सदी
में कह रहा है और हमारे Spiritual साइंटिस्टों ने हमारे ऋषियों के यह बात तब ही कह
दी थी जब उनके मनों में वेदों का उदय हुआ था.
चेतना बढ़ेगी तो समझ बढ़ेगी और समझ
बढ़ेगी तो सब कुछ ही समझ आना शुरू हो जायेगा फिर वो चाहे अध्यातम हो या फिर
विज्ञानं या फिर टेक्नोलॉजी कुछ भी हो.
योग कहता है कि जब मनुष्य मन मूलाधार
चक्र पर यात्रा कर रहा होता है तो उसकी सारी अवेयरनेस स्वयं पर होती है और वो केवल
और केवल खुद के लिए सोचता है यानि उसकी हर सोच का आधार वो खुद ही होता है. पर जैसे
जैसे उसकी चेतना के स्तर बढ़ते है तो वो दुसरो के लिए सोचना शुरू कर देता है और
यहाँ तक की एक समय ऐसा भी आता है उसे एक फूल तोड़ने पर भी कष्ट होता है उसे लगता है
कि फूल को दर्द हुआ होगा, टहनी को दर्द हुआ होगा. इसके साथ साथ जितना उसका दर्द
बढ़ता है उतनी उसकी उस प्रकृति को जानने की क्षमता भी बढती चली जाती है. इसलिए
मूलाधार चक्र से आज्ञा चक्र की यह यात्रा कमाल की है, इतनी कमाल की है कि आपने
इसकी कल्पना भी नहीं की होगी.
तीन नाड़ियाँ है इड़ा, पिंगला और
सुष्म्ना इन नाड़ियों का जिक्र मैंने अपने कई विडियो में किया भी है. फिर भी मोटे
तौर पर मैं बता देता हूँ मूलाधार चक्र से आज्ञा चक्र तक यह नाड़ियाँ बह रही है और
इस passage में यह कई जगहों पर यह क्रॉस करती है और जहाँ यह क्रॉस करती है उस जगह
की फ्रीक्वेंसी को हम एक चक्र कहते है. तो एक चक्र से दुसरे चक्र तक जाने से क्या
बढ़ता है - एक तो प्राण उर्जा की फ्रीक्वेंसी और दूसरा चेतना या अवेयरनेस का स्तर.
जो इडा नाडी है वो अवेयरनेस बढ़ा रही है और जो पिंगला नाडी है वो प्राण उर्जा बाधा
रही है.
इसलिए ही इन दोनों नाड़ियो को बैलेंस किया जाता है कि सब कुछ ठीक से कार्य
करता रहे. अगर प्राण उर्जा के इन पुंजो में कुछ प्रॉब्लम आती है तो वो बिमारियों
के रूप में आपके सामने आ जाती है इस बात को आप समझ ले. इसका मतलब यह भी है कि
प्राण उर्जा के बहाव को यदि ठीक कर लिया जाये तो बड़ी से बड़ी बीमारी से भी निज़ात
पाया जा सकता है.
चक्रों को जागृत करने के तरीके कई है.
मन को कण्ट्रोल करके भी और भारतीय पध्धति के अनुसार योग आसन से भी चक्रों को जागृत
किया जा सकता है. अब चक्र को जागृत करने का क्या मतलब हो सकता है? इसका मतलब यह है
की अपने आप को और ज्यादा समझना, अपने ही मन के छिपे हुए हिस्सों तक पहुचना, अपने
अन्दर उन शक्तियों को उजागर कर लेना जो आपके अन्दर पहले से है ही. फिर एक दिन यह
समझ लेना कि मैं अन्दर भी हूँ और बाहर भी हूँ, यह जल भी मैं हूँ, यह पर्वत भी मैं
हूँ, यह हवा भी मैं हूँ, यह बदल भी मैं हूँ और यह आकाश भी मैं हूँ. कई बार साधक
अपने जीवन में ध्यान के उपरांत कुछ समय के लिए इस जुडाव को महसूस भी करते होगे.
चक्र है यह हमने समझ लिया पर इन
चक्रों के यंत्र भी है यंत्र यानि उस फ्रीक्वेंसी की तस्वीर. अब यह तस्वीर या
यंत्र कहा से आ गया होगा, क्यूंकि आज के बायो-फीड बैक यंत्रो से किसी भी वस्तु या
जीव के चारो ओर का औरा तो picture किया जा सकता है पर यंत्र नहीं. फिर यह चक्रों
के यह यंत्र कहा से आ गए. योग में एक शब्द आता है प्रत्याहार और भारतीय भाषा
विज्ञानं में एक शब्द आता है "पश्यन्ति". इन दोनों से हमें इन यंत्रो के
होने का जवाब मिल जायेगा.
प्रत्याहार का मतलब है इन्द्रियातीत
हो जाना और "पश्यन्ति" का मतलब है कि भाषा का वो रूप जहाँ मन भी चुप जो
जाता है और जो कुछ भी घटित होता है वो अपने आप ही आता है, पर आता कहा से है
"परा" से. इसी तरीके से ही यह यंत्र आये, इन यंत्रो को इनके अन्दर के
रंगों को किसी ने युहीं नहीं बना दिया. यंत्र है, उस यंत्र की Shape है उसमे तरह
तरह के रंग भी है, आकृति में भी आकृति है बहुत कुछ है, पर आया "पश्यन्ति" से ही है. जो हमारे ऋषियों
को तब दिखाई दिया था वो हमें अब भी दिख सकता है, और दिखता भी है थोड़ा रंगों में
भेद हो सकता है. कही कुछ गया नहीं है, तब भी था, अब भी है, और आगे भी रहेगा.