Sunday, 5 May 2019

क्या कहते है आपके चक्र - सात चक्रों की कहानी




भारतीय दर्शन के अनुसार मनुष्य के भौतिक शरीर के अन्दर के प्राण शरीर होता है, जोकि प्राण उर्जा से बना होता है. यही प्राण उर्जा ही मनुष्य को जीवित बनाये रखती है. इसी उर्जा के अलग अलग पुंज है इस शरीर में जोकि अलग अलग फ्रीक्वेंसी पर कार्य कर रहे है. उर्जा के इन्ही पुंजो को हम योग की भाषा में चक्र कहते है.

इसमें दो बाते है एक तो प्राण शक्ति और दूसरी हमारी चेतना या हमारा अवेयरनेस. प्राण उर्जा के विभिन्न पुंजो से यही मतलब निकलता है कि जब हम एक चक्र से दुसरे चक्र तक यात्रा करते है तो हमारी चेतना का स्तर बढ़ जाता है. अब इसका क्या मतलब हुआ? इसका मतलब यह है कि आज हम जो जीवन जी रहे है और आज जो हमारी विचार धारा है, जो हमारी सोच है अच्छी है या बुरी है, यदि हमने अगला पड़ाव किसी तरह से पा लिया तो सब कुछ बदल जायेगा, हमारे विचार, हमारा व्यक्तित्व और हमारे लिए यह संसार भी. तो जब हम एक चक्र से दुसरे चक्र तक आगे बढ़ेगे तो प्राण शक्ति और चेतना या अवेयरनेस यह दोनों ही बढ़ जाएगी.

विज्ञानं कहता है कि मनुष्य अपने जीवन में अपने अपार Mind का या Brain का केवल कुछ Percent हिस्सा ही प्रयोग करता है या फिर कर पाता है और यदि किसी तरीके से वो अपने Mind के hidden हिस्से तक पहुच जाये तो Super Human बन सकता है इसमें कोई भी शक नहीं है. पर विज्ञानं यह बात इस सदी में कह रहा है और हमारे Spiritual साइंटिस्टों ने हमारे ऋषियों के यह बात तब ही कह दी थी जब उनके मनों में वेदों का उदय हुआ था.

चेतना बढ़ेगी तो समझ बढ़ेगी और समझ बढ़ेगी तो सब कुछ ही समझ आना शुरू हो जायेगा फिर वो चाहे अध्यातम हो या फिर विज्ञानं या फिर टेक्नोलॉजी कुछ भी हो.

योग कहता है कि जब मनुष्य मन मूलाधार चक्र पर यात्रा कर रहा होता है तो उसकी सारी अवेयरनेस स्वयं पर होती है और वो केवल और केवल खुद के लिए सोचता है यानि उसकी हर सोच का आधार वो खुद ही होता है. पर जैसे जैसे उसकी चेतना के स्तर बढ़ते है तो वो दुसरो के लिए सोचना शुरू कर देता है और यहाँ तक की एक समय ऐसा भी आता है उसे एक फूल तोड़ने पर भी कष्ट होता है उसे लगता है कि फूल को दर्द हुआ होगा, टहनी को दर्द हुआ होगा. इसके साथ साथ जितना उसका दर्द बढ़ता है उतनी उसकी उस प्रकृति को जानने की क्षमता भी बढती चली जाती है. इसलिए मूलाधार चक्र से आज्ञा चक्र की यह यात्रा कमाल की है, इतनी कमाल की है कि आपने इसकी कल्पना भी नहीं की होगी.

तीन नाड़ियाँ है इड़ा, पिंगला और सुष्म्ना इन नाड़ियों का जिक्र मैंने अपने कई विडियो में किया भी है. फिर भी मोटे तौर पर मैं बता देता हूँ मूलाधार चक्र से आज्ञा चक्र तक यह नाड़ियाँ बह रही है और इस passage में यह कई जगहों पर यह क्रॉस करती है और जहाँ यह क्रॉस करती है उस जगह की फ्रीक्वेंसी को हम एक चक्र कहते है. तो एक चक्र से दुसरे चक्र तक जाने से क्या बढ़ता है - एक तो प्राण उर्जा की फ्रीक्वेंसी और दूसरा चेतना या अवेयरनेस का स्तर. जो इडा नाडी है वो अवेयरनेस बढ़ा रही है और जो पिंगला नाडी है वो प्राण उर्जा बाधा रही है.

इसलिए ही इन दोनों नाड़ियो को बैलेंस किया जाता है कि सब कुछ ठीक से कार्य करता रहे. अगर प्राण उर्जा के इन पुंजो में कुछ प्रॉब्लम आती है तो वो बिमारियों के रूप में आपके सामने आ जाती है इस बात को आप समझ ले. इसका मतलब यह भी है कि प्राण उर्जा के बहाव को यदि ठीक कर लिया जाये तो बड़ी से बड़ी बीमारी से भी निज़ात पाया जा सकता है.

चक्रों को जागृत करने के तरीके कई है. मन को कण्ट्रोल करके भी और भारतीय पध्धति के अनुसार योग आसन से भी चक्रों को जागृत किया जा सकता है. अब चक्र को जागृत करने का क्या मतलब हो सकता है? इसका मतलब यह है की अपने आप को और ज्यादा समझना, अपने ही मन के छिपे हुए हिस्सों तक पहुचना, अपने अन्दर उन शक्तियों को उजागर कर लेना जो आपके अन्दर पहले से है ही. फिर एक दिन यह समझ लेना कि मैं अन्दर भी हूँ और बाहर भी हूँ, यह जल भी मैं हूँ, यह पर्वत भी मैं हूँ, यह हवा भी मैं हूँ, यह बदल भी मैं हूँ और यह आकाश भी मैं हूँ. कई बार साधक अपने जीवन में ध्यान के उपरांत कुछ समय के लिए इस जुडाव को महसूस भी करते होगे.

चक्र है यह हमने समझ लिया पर इन चक्रों के यंत्र भी है यंत्र यानि उस फ्रीक्वेंसी की तस्वीर. अब यह तस्वीर या यंत्र कहा से आ गया होगा, क्यूंकि आज के बायो-फीड बैक यंत्रो से किसी भी वस्तु या जीव के चारो ओर का औरा तो picture किया जा सकता है पर यंत्र नहीं. फिर यह चक्रों के यह यंत्र कहा से आ गए. योग में एक शब्द आता है प्रत्याहार और भारतीय भाषा विज्ञानं में एक शब्द आता है "पश्यन्ति". इन दोनों से हमें इन यंत्रो के होने का जवाब मिल जायेगा.

प्रत्याहार का मतलब है इन्द्रियातीत हो जाना और "पश्यन्ति" का मतलब है कि भाषा का वो रूप जहाँ मन भी चुप जो जाता है और जो कुछ भी घटित होता है वो अपने आप ही आता है, पर आता कहा से है "परा" से. इसी तरीके से ही यह यंत्र आये, इन यंत्रो को इनके अन्दर के रंगों को किसी ने युहीं नहीं बना दिया. यंत्र है, उस यंत्र की Shape है उसमे तरह तरह के रंग भी है, आकृति में भी आकृति है बहुत कुछ है, पर आया  "पश्यन्ति" से ही है. जो हमारे ऋषियों को तब दिखाई दिया था वो हमें अब भी दिख सकता है, और दिखता भी है थोड़ा रंगों में भेद हो सकता है. कही कुछ गया नहीं है, तब भी था, अब भी है, और आगे भी रहेगा.

Friday, 3 May 2019

सिद्धि के लिए 7 गुप्त मार्ग

सिद्धि के लिए 7  गुप्त मार्ग

Yoga My Life


यह मन भी बड़ी कमाल की चीज है. हमारे चारो ओर जो जगत दिखाई दे रहा है वो मन की ही उत्पत्ति है. स्वयं हमारे मन की ही उपज है. लेकिन इस बात को समझना इतना आसान नहीं है कि हमारे मन से ही सब कुछ बना हुआ है. क्यूंकि हमें लगता है कि मन तो खुद मैं ही हूँ और जो बाहर दिखाई दे रहा है वो मन कैसे हो सकता है. विषय बड़ा ही कठिन है. लेकिन है बड़ा ही रोमांचक.

हम सब का मन इस तरह के जगत को देखना चाहता है इसलिए हम सब के लिए इस तरह का जगत है. किन्ही और लोगो के लिए एक अन्य तरह का जगत भी हो सकता है. सब कुछ सोचने पर निर्भर है. जब तक मन में संकल्प विकल्प उठते है और दिखने वाले पदार्थी की और वासना है तब तक जगत का अनुभव होगा ही. और अगर किसी तरह कामनाओं का समापन करके जीवन यात्रा को यदि आत्मदर्शन की और मोड़ दिया जाये तो सारे के सारे अनुभव बदल जायेगे. लेकिन उसके लिए सबसे पहली डिमांड शुद्ध मन की है. मन अगर शुद्ध हो जाये तो मन में उठा हर संकल्प फलीभूत भी होने लगेगा.

सात तरीको से आगे बढ़ा जा सकता है

पहला गुप्त मार्ग 

सबसे पहले शाश्त्र और साधु की संगति
इस से होगा यह की बुद्धि शुद्ध और सूक्ष्म हो जाएगी. यह पहली भूमिका है.

दूसरा गुप्त मार्ग है - विचारणा

इसमें बुद्धि आत्मविचार करना सीख जाती है. बाहर की बाते बाहर ही रह जाती है. विचार अंदर से खुद-ब-खुद उठने लगते है. मन विचारशील हो जाता है.

तीसरा गुप्त रास्ता है - असंगभावना

जो हो दिख रहा है उसमे मन को बाहर निकलना है. किसी भी विषय के संग मन को नहीं रहने देना है.

चोथा गुप्त रास्ता है - विलापनी

इसमें योगी अपनी सारी की सारी वासनाएं विलीन कर देता है. उसके चित में कोई कामना नहीं रहती.

पांचवा गुप्त रास्ता है - आनन्दरूपा

इसमें योगी का चित अति शुद्ध हो जाता है और वो आनन्द में निमग्न रहता है. जगत का भान नहीं रहता. अगर रहता है तो केवल आनन्द रहता है.

छटा गुप्त रास्ता - स्वसवेंदनरूपा 

इस अवस्था में योगी संसार में रहते हुए भी संसार में रहता हुआ प्रतीत नहीं होता. उसको केवल आत्मा का ही भान रहता है. मन विलीन हो चूका होता है. वो साधक हमेशा आत्मा के आनन्द में होता है. यह स्थिति बिलकुल ही अलग है. इस अवस्था को मुक्ति भी कहते है.

सातवाँ गुप्त रास्ता - परिप्रोढ़ा अवस्था

यह परम निर्वाण की स्थिति है. जिसका अनुभव शरीर के साथ नहीं किया जा सकता अथार्त जीवित रहते हुए नहीं किआ जा सकता. इसको विदेह मुक्ति भी कहते है.
यह एक यात्रा है जो हमारी शारीरिक यात्रा से बिलकुल अलग है. लेकिन हमारा झुकाव हमेशा से ही शारीरिक यात्रा ही रहा है हमने मन की सारी की साडी शक्तियों को भी इस शरीर पर ही लगा रखा है.

Thursday, 2 May 2019

क्या आज भी कोई अजेय बन सकता है?


जब आपको कोई हरा नहीं सकेगा?



क्या कोई व्यक्ति के रूप में अजेय बन सकता है इस धरती पर. और अगर बन सकता है तो कैसे? यहाँ अजेय का मतलब है कि किसी भी हथियार से उसे जीता नहीं जा सके. यानि किसी भी तरह उसे जीता ही नहीं जा सके. आज हर देश तरह तरह के हथियार बना कर अपने आप को सुरक्षित करने में लगा रहता है. जो हथियार नहीं बना सकते वो उन्हें दुसरे देशो से खरीद कर खुद को सुरक्षित समझते है. आज हर देश और हर व्यति बारूद के ढेर पर बैठा है और के एकर प्रकार से कोई भी सुरक्षित नहीं है. और अजेय तो कोई है ही नहीं.

लेकिन जो मैं बताना चाह रहा हूँ वो हथियारों से अजेय होने की बात नहीं है. हा अजेय होने के लिए बेशक हथियारों की तो जरुरत पड़ती ही होगी. लेकिन मैं अजेय होने के एक ऐसे तरीके की बात कर रहा हूँ जो हिन्दू शाश्त्रो में देवता और असुर प्रयोग करते थे. ऐसा नहीं है कि उनकी मृत्यु नहीं हुई. मृत्यु हुई; क्यूंकि मृत्यु अटल है. मृत्यु भी एक घटना है जिसको होना ही है परन्तु मृत्य अंत नहीं है इसलिए मृत्यु से डरने को आवश्यकता नहीं है.

तो मैं बात कर रहा था कि वो कौन से सीक्रेट थे जिनकी मदद से देवताओं और असुरों ने कुछ ऐसे लोग पैदा किये थे जो अजेय थे.

भारतीय शाश्त्रो में देवताओं और असुरों की कहानियों में जीवन के पीछे की सच्चाइयों को छोटी छोटी कहानियों के माध्यम से समझाया गया है. हालाकि इनमे बहुत सारी कहानियां सिंबॉलिक है और आम जन को समझाने के लिए कही गयी है.

देवता देवलोक में रहते थे और असुर पाताललोक में रहा करते थे. इन दोनों के बीच युद्ध चलते रहते थे और जैसे आज तरह तरह के हथियार डेवेलोप किये जा रहे है उस समय भी तरह तरह के प्रयोग मानव पर होते थे यानि मानव और उसके पीछे चल रही शक्ति को समझा जाता था और उसके अनुसार मानव देह में ही शक्तियां पैदा की जाती थी. हथियारों का भी प्रयोग होता था परन्तु वो सेकेंडरी बात थी. प्राइमरी बात ऐसे मानव पैदा करने की होती थी जिन्हें जीता ही नहीं जा सकता था.

यह बात पराशक्ति से सम्बंधित है. क्यूंकि हम केवल खुद को मनुष्य शरीर ही समझते है हम भूल जाते है कि इस शरीर के साथ साथ हमारा एक मन भी है. फिर हम यह भी भूल जाते है इस शरीर के पीछे एक और शक्ति भी है जिसे हम आत्मा कहते है. हम अगले जन्म को सवारने में तो लगे रहते है परन्तु जीवन के पीछे चल रही साइंस को भूल जाते है. देवता और असुर शरीर के साथ साथ मन और आत्मा की शक्तियों का प्रयोग करके बड़े बड़े किया युद्ध करते थे.

ऐसा ही एक युद्ध चल्र रहा था देवताओं के राजा इंद्र और असुरों के राजा शम्बर. शम्बर पराशक्ति का बहुत बड़ा जानकर था. उसने पराशक्ति के विज्ञानं को समझा और अपनी शक्ति से 3 दैत्यों को उत्पन्न किया. हम जब पैदा होते है तो शरीर तो हमारा होता ही है साथ में मन रूपी सॉफ्टवेयर भी होता है जिसमे हमारे जीने के ढंग, हमारे काम करने के ढंग, हमारे समझने के ढंग, हमारे बात करने के ढंग; सब कुछ भरा होता है.

पराशक्ति से अधिक बलवान न कोई हुआ है और न ही कोई हो सकता था. असुरों के राजा शम्बर इस बात को समझता था कि हम सब उस पराशक्ति का ही एक अंश है और इस तरह से हम सब के सब शक्तिशाली है चाहे कोई देवता हो वो भी शक्तिशाली है और चाहे कोई असुर हो वो भी उतना जी शक्तिशाली है. परन्तु फिर भी हम में से कोई भी उस शक्ति जितना शक्तिशाली नहीं है. जब हम है ही उस शक्ति का अंश तो फिर हम उतने शक्तिशाली क्यूँ नहीं है जितनी वो शक्ति है. ऐसी क्या बात है जो हमें उस असीम शक्ति की शक्तियों से अलग करती है.

सोचते सोचते असुर राजा एक सही निष्कर्ष पर पहुच ही गया कि हमारा अहम् हमें उस शक्ति की शक्तियों से अलग करता है. अपने अहम् के कारण ही हम खुद को उस शक्ति से अलग समझ कर जीने लगते है तो उसी समय हम पराशक्ति से जुदा हो जाते है. तो अगर किसी तकनीक से जो असुर मैंने पैदा किये है उनमे से अहम् निकल दिया जाये तो वो अपने आप ही पराशक्ति की शक्तियों से जुड़े रहेगे और उन्हें कोई नहीं हरा पायेगा. और राजा शम्बर ऐसा करने के लिए सक्षम हो गया. और एक तकनीक की मदद से जो उसने असुर देवताओं से लड़ने के लिए अपने बल से पैदा किये थे उनके मन से वो अहम की भावना निकलने में कामयाब हो गया.
3 दैत्य जिनमे नाम थे दम, व्याल और कट. इन दिनों में अहम् भाव नहीं था और न ही किसी प्रकार की कामना, वासना इनके मनों में प्रकट होती थी. बस जिस कार्य के लिए उनकी उत्पति हुई थी केवल उन्ही कार्य कर करने के लिए उनकी निष्काम प्रवृति थी. जो वो कार्य करेगे उस से क्या लाभ या हानि होगी इस तरह की बाते उनके मनों में लेशमात्र भी नहीं थी.
इन तीनो को जब देवताओं से लड़ने के लिए भेजा गया तो देवताओं के खेमे के कोहराम मच गया. इनके सामने युद्ध में कोई भी नहीं टिक पा रहा था चाहे कोई कितना भी सूरमाँ  ही क्यों न हो.

अब देवता मैदान छोड़ कर भागने लगे. जब देवता भागते थे तो सीधे ब्रह्मा जी के पास जाते थे अपनी समस्या को लेकर. इस बार भी उन्होंने ऐसा ही किया. देवताओं में ब्रह्मा जी को अपनी समस्या के बारे में अवगत कराया तो ब्रह्मा जी ने ध्यान के जाकर विचार किया तो उन्हें सब बात समझ में आई. उन्होंने बताया कि जो 3 दैत्य आप लोगो से युद्ध करके आप लोगो हरा रहे है उनके अंदर अहंभाव नहीं है और इसलिए वो पराशक्ति की शक्ति के साथ ही युद्ध कर रहे है इसलिए उन्हें तब तक नहीं हराया जा सकता जब तक वो अहम रहित है. वो निष्कामता से युद्ध कर रहे है और उन्हें निष्काम भाव के साथ युद्ध करने के लिए ही पैदा किया गया है.  आप लोगो के पास अगर कोई विकल्प है तो वो यह है कि आप उनमे किसी तरह से अहम भाव पैदा कर दे तो आप बड़ी ही आसानी से उन्हें हरा पायेगे. क्यूंकि अहम् भाव पैदा होते ही उनमे कामना पैदा होगी और कामना पैदा होते ही मृत्यु भाव अपने आप ही पैदा हो जायेगा.

देवताओं में इस तरह से हालात पैदा किये कि उन तीन असुरों में अहम् भाव पैदा हो जाये परन्तु वो ऐसा नहीं कर सके. क्यूंकि उन तीन दैत्यों को बनाया ही इस तरह से गया था कि किसी भी तरीके से उनमे अहम् पैदा किया ही नहीं जा सकता था. देवता अपने कार्य में सफल नहीं हो पा रहे थे तब उन्होंने भगवान् विष्णु की मदद से उन तीन दत्यों को समाप्त किया और उन तीन दैत्य को भगवान विष्णु ने अपने धाम में जगह दी.

हमारा विषय था कि क्या अजेय बना जा सकता है. उसका जवाब मैंने आपको दे दिया कि अजेय भी बना जा सकता है. उसके लिए हमें अपने अहम को हटाना होगा. जैसे हम अहम् को हटायेगे तो उसी समय डर गायब हो जायेगा. दुनियां का सबसे बड़ा डर मृत्यु का डर है जो अहम् के गायब होते ही पलक झपटे गायब हो जायेगा. फिर व्यक्ति पराशक्ति से अपने आप ही जुड़ जायेगा और उसे इस दुनियां की कोई भी ताक़त हरा नहीं पायेगी.

एक अमूल्य शक्ति जो आपके अंदर है




मैं एक ऐसी शक्ति की बात कर रहा हूँ जो आप सबके अंदर है. लेकिन हम उस शक्ति को या तो समझ नहीं पाते है या फिर उसका प्रयोग करना नहीं सीख पाते है. जबकि यह शक्ति हम सब के अंदर है और हम सब इसका प्रयोग कर सकते है. जीवन में आगे बढ़ने के लिए अगर कोई शक्ति हमारे काम आती है तो वो है एकाग्रता.

हम में से अधिकांश के साथ एक प्रॉब्लम है कि जब हम कोई भी काम कर रहे होते है तो हमारा मन कही ओर होता है और हमारी बॉडी कही ओर. इसलिए हम जीवन में तरक्की नहीं कर पाते और अपनी इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाते. वैसे तो इच्छाओ को संजोना और उन्हें पालना योग में अवैध है. परन्तु जो हमारे संस्कार हमारे चित में पड़े है उन संस्कारो को तो हमें या तो निरस्त करना होगा या फिर स्वयं में ज्ञान पैदा करके जलना होगा.

मैं एकाग्रता नाम की शक्ति की बात कर रहा हूँ जो हम सबको मिली हुई है. परन्तु अनभिज्ञता के कारण न तो इस शक्ति को समझ पाते है और न ही इसका प्रयोग कर पाते है.

चीन में 80 साल का एक बुद्धा व्यक्ति पुराने ज़माने में अपने सेनापति के लिए उनकी तलवार बनाने का काम करता था. उसने सेनापति की तलवार बनाते हुए कभी भी रत्ती भर भी गलती नहीं की थी. वो इतनी बेहतरीन तलवार बनाता था कि जो उस बुद्धे व्यक्ति की तलवार को देख भर लेता है वो उसकी करागरी से हैरान हो जाता था. उसकी बनायीं हुई तलवारे युद्ध में भी कमाल का काम करती थी.

सेनापति खुद जो उसकी करागरी से हैरान था उसने एक दिन उस बुद्धे व्यक्ति से एक बात पूछी कि तुम जो तलवारे बनाते हो वैसी मैंने अपने पुरे जीवन में कभी भी देखी नहीं है. मैं एक बात जानना चाहता हूँ क्या यह तलवार बनाने की कला तुमने किसी से सीखी है या यह कोई खास तरीका है तलवार बनाने का.

उस बूढ़े व्यक्ति ने जवाब दिया कि न तो यह कला है और न ही कोई खास तरीका. आज से 20 साल पहले जब हमने तलवार बनाना सीखना शुरू किया था तो एक ही बात सीखी थी कि अपना काम पूरी एकाग्रता से करना है. मैं जब काम कर रहा होता हूँ तो मेरे हाथ, मेरे पैर मेरे शरीर का हर अंग मेरे काम पर ही होता है. बस यही एक तकनीक है जिसका मैं प्रयोग करता हूँ.

बात बड़े कमाल की है कि अपने टारगेट के लिए मन का पूर्णतया प्रयोग करना. जब तक मन पर कण्ट्रोल नहीं होगा तब तक शरीर  का सही प्रयोग नहीं हो पायेगा. एकाग्रता का मतलब ही यही है कि पूर्णता “Wholeness” से काम करना सब कुछ एक ही दिशा में हो. दिशा व्ही जो आपके जीवन का लक्ष्य हो.

जीवन के हर लम्हे में संतुलन की आवश्यकता है. न तो Over-activeness और न ही Under-activeness चलेगी. संतुलन का मतलब अपने आप को हर उस काम में झोंक देना जो आप कर रहे है. तब मज़ा आने लगेगा. हर काम में मज़ा आने लगेगा.

एक बात और कि जब मन एकाग्र होता है तो उसी समय रिलैक्स भी हो जाता है. यह बड़ी ही खास बात है. एकाग्रता भी और समता भी. काम भी होगा और थकावट भी नहीं होगी. यही खास बात थी उनमे जिन्होंने दुनियां को बदला कि वो कभी थकते नहीं थे. वो अपने काम से कभी भी नहीं थकते थे बल्कि उन्हें आराम भी अपने काम में ही मिलता था. वो अपने काम के बिना थक जाते थे. उन्हें आराम के लिए काम चाहिए होता था.

हमारी स्थिति उलट है हमें काम के लिए आराम चाहिए होता है. पर उन्हें आराम के लिए काम चाहिए होता था. सोचिये कि वो लोग जो एकाग्रता के साथ काम करते थे कितने खुश नसीब होते होंगे. हम थक जाते है मन से. थोडा सा काम करते ही थक जाते है, बोर हो जाते है. आराम के लिए पता नहीं क्या क्या करते है. परन्तु वो लोग आराम के लिए काम करते थे.

इसके लिए हमें अध्यात्मिक तौर पर उन्नत होना होगा. हमें रोजाना कुछ समय अपने मन को भी देना होगा. जीवन को देखने के अपने ढंग को सूक्ष्म करना होगा. एकाग्रता का कुछ न कुछ अंश हम सबके पास होता ही है. यह एक तरह से सर्च लाइट की तरह है. गहन अँधेरे में सर्च लाइट जहाँ जहाँ पड़ती है वो जगह बिलकुल साफ़ दिखाई देने लगती है. सर्च लाइट जितनी पावरफुल होगी उतना ही दृश्य जीवन्त दिखाएगी.

ऐसे ही हमारी कंसंट्रेशन पॉवर है. जैसे जैसे हम इस क्षेत्र में उन्नत होते चले जायेगे जीवन की सूक्ष्म से सूक्ष्म बाते भी हमें समझ आने लगेगी. जब कोई भी विषय या वस्तु सूक्ष्मता से समझ में आती है तभी हम उस विषय या वस्तु को एन्जॉय कर पाते है. ऐसे ही हमारी बुद्धि हो जाएगी. जो जो पहले समझ नहीं आता था वो समझ आने लगेगा. यह केवल होगा एकाग्रता को बढ़ाने से. हमें इसके लिए अपने मन को शुद्ध करना होगा.

नियमित रूप से थोड़ा थोड़ा ध्यान करने से बात बनने लगती है. एकाग्रता आने लगती है. एकाग्रता जैसे आती है बहुत कुछ दे कर जाती है. सबसे पहले मानसिक आराम और फिर शक्तिशाली मन. फिर आगे का काम हमारा शक्तिशाली मन करता है.

Tuesday, 22 January 2019

यह प्राणायाम दे सकता है आपको लम्बी उम्र


यह प्राणायाम दे सकता है आपको लम्बी उम्र  




अगर आप लम्बी उम्र चाहते है तो यह प्राणयाम जरुर कीजिए. लम्बा ओर स्वस्थ जीवन

बात शुरू करुगा हमारे पास के देश चीन से. इस देश में एक व्यक्ति जो 150 साल से भी अधिक जिया था. उस से जब उसकी लम्बी उम्र के राज़ के बारे में पूछा गया तो उसने कुछ खास बातों का जिक्र किया जो इस प्रकार से है:-

हमेशा लम्बी सांस लेना   
जितना अधिक हो सके रीढ़ की हड्डी सीधी रखना  
अपने विचारो को शुद्ध रखना
हमेशा सादा खाना लेना
व्यसनों से दूर रहे



यहाँ मैं आपके साथ आज कुछ खास शेयर करना चाह रहा हूँ. एक ऐसा प्राणायाम जो बिलकुल ही सामान्य प्राणायाम है ओर जिसे यदि आप अपने जीवन में अपना लेंगे तो न केवल आपकी उम्र बढ़ जाएगी बल्कि आपकी सेहत भी अच्छी हो जाएगी.

प्राणयाम में दो क्रियाएं एक साथ होती है. एक तो साँस के साथ ऑक्सीजन शरीर में अधिक मात्रा में जाती है जोकि हमारे ब्लड को प्योर करती है और साथ में हमारे में लंग्स को दुरुस्त करता है. जोकि मेडिकली एक बहुत ही अच्छी बात है.

प्राणयाम का असली मतलब वास्तव में प्राण का शरीर में विस्तार करना है. प्राण वो उर्जा है जिसके कारण हम ओर आप जीवित है.

अब एक टेबल दिखता हूँ -

Animal
Respiration per minute
Life Span (Years)
Rabbit
38
8
Monkey
32
10
Dog
26
12
Horse
16
25
Human
13
120
Snake
8
1000
Tortoise
5
2000

आपने देखा कि जैसे जैसे Respiration Rate घट रहा है वैसे वैसे लाइफ स्पैन बढ़ रहा है. यहाँ तक कि कछुवें की उम्र 2000 वर्ष तक चली जाती है. मैं जो बता रहा हूँ वो इसलिए तर्कसंगत है.

एक ओर बात आपने बार बार सुनी होगी कि ईश्वर ने हमें निश्चित सांसे दी है. यह बात सच भी है कि एक व्यक्ति ने जितना भी जीवन जिया ओर उसमे जितनी भी सांसे ली उन सांसो की अगर हम गिनती करे तो हम कह सकते है ईश्वर ने उस व्यक्ति को इतनी सांसे दी थी. मान लीजिये कि एक व्यक्ति 60 साल तक जीवित रहा.

थोडा कैलकुलेशन करते है. हमारा रेस्पिरेशन रेट है एक मिनट में 13 सांसे.

1 घंटे = 13x60= 780 सांसे
24 घंटे (एक दिन) = 780x24= 18720 सांसे
365 दिन (एक वर्ष) = 365x18720 = 6832800 सांसे
60 वर्ष x 6832800 =  409968000 (चालीस करोड़ निनान्वे लाख अडसठ हज़ार) सांसे
तो यह सांसे उस व्यक्ति को मिली

अब मान लीजिये कि वो अगर व्यक्ति किसी तरीके से अपनी सांसो को गहरा कर ले यानि एक मिनट में 13 की बजाये कम सांसे ले. Suppose कि एक मिनट में वह अपने सांसे 8 तक ले आये. तो कैलकुलेट करते है कि वो अपनी कुल सांसे 409968000 में से कुल कितनी सांसे खर्च कर पाता है.

1 घंटे = 8x60= 480 सांसे
24 घंटे (एक दिन) = 480x24= 11520 सांसे
365 दिन (एक वर्ष) = 365x11520 = 4202800 सांसे
60 वर्ष x 4202800 =  252288000 (पचीस करोड़ बाईस लाख अठासी हज़ार) सांसे
  
कुल सांसे मिली थी = 409968000
खर्च की = 252288000
बाकि बची = 157680000

अभी 60 साल जीने के बाद भी उस व्यक्ति के पास बची 157680000 सांसे. अब देखते है अगर वो व्यक्ति बाकि बची सांसे अगर 10 सांसे प्रति मिनट की गति से भी लेता  है तो वो कितने साल ओर जी पाता है.

157680000 / 10 सांसे  = 15768000 मिनट
15768000 मिनट/60 = 262633 घंटे
262633 घंटे / 24 = 10943 दिन
10943 दिन / 365 = 30 Years

यानि अगर वो इस प्रकार जीवन जिए तो वही व्यक्ति 30 वर्ष ओर जी सकता है.

अब यह होगा कैसे. इसका उतर है कि हमें per minute सांसो की गति को कम करना होगा. यह हम करेगे एक बड़े ही साधारण प्राणायाम से.

किसी भी आरामदायक आसन में बैठ कर. सारा का सारा ध्यान अपनी साँस पर लगा देना ही. फिर साँस को धीरे धीरे गहराई से लेना शुरू करना है. पूरी साँस अन्दर भर लेनी है.

साँस को नासिका से ही अन्दर लेना है. इस प्रक्रिया में हिलना नहीं है. बिलकुल मूर्तिवत होकर साँस अन्दर खीचनी है. फिर कुछ क्षण के लिए रुकना है.

फिर धीरे धीरे साँस को बाहर छोड़ देना है. हिलना बिलकुल भी नहीं है ऐसा करने से मन तुरंत शांत हो जायेगा. और एक मिनट में साँस लेने की गति भी कम होनी शुरू हो जाएगी.  

यह बिलकुल आसान है. गहरी सांस.. जब भी समय मिले तो बस गहरी साँस.. ध्यान पूरा सांसो पर...हर वक़्त गहरी साँस....बस इतना ही ... ध्यान बार बार भागेगा...पर कोई बात नहीं....ध्यान को बार बार वापिस पकड़ कर लाना है ओर सांसो पर लगा देना है. 



 

Friday, 11 January 2019

क्या होता है पूर्णिमा की रात


पूर्णिमा पर ध्यान का रहस्य



मैं अक्सर  आपको पूर्णिमा पर ध्यान करने को कहता हूँ. आज हम इस बात को जानेगें कि इस रात किये गए ध्यान का क्या महत्व है. सबसे पहले हम समझेगे कि पूर्णिमा होती क्या है. पूर्णिमा वो रात होती है जिस रात आकाश में पूरा चाँद दिखता है. Full moon night. चाँद हमारे मन से सम्बंधित होता है.  पिंगला, इड़ा ओर सुषमना तीन नाड़ियाँ. इड़ा जो है वो चन्द्र नाड़ी होती है. मन जो हम वो चन्द्र से सम्बंधित होता है.

इसका मतलब यह हुआ कि अगर मन बहुत ज्यादा भटकता है तो चन्द्र को मज़बूत करना होगा ओर अगर चन्द्र को किसी तरह मज़बूत कर लिया जाये तो मन पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है. ध्यान से हम मन पर काबू पाने की कौशिश करते ही है ओर मन भी उतनी ही ताक़त से हमारे हमले का जवाब भी देता है. अक्सर ध्यान करते हुए हम मन से लड़ते रहते है. ओर फाइनली हम मन के कारण ही ध्यान से खड़े होते है क्यूंकि अगर मन न हो तो हम कभी भी ध्यान से खड़े ही नहीं हो.

हमारे मन में बहुत कुछ छिपा हुआ है. इस मन को अगर काबू कर लिया जाये तो बड़े से बड़ा कार्य चुटकियों में किया जा सकता है. जीवन का कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है. यह प्रकृति बड़ी ही रहस्यमयी है. बहुत सारे रहस्य छिपे हुए है इसमें जिनको आज तक विज्ञानं भी समझ नहीं पाया है. ऐसा ही एक रहस्य है पूर्णिमा की रात. जब रात को भी एक तरह से उजाला होता है. अँधेरा हमेशा बुरी शक्तियों को बुराई के लिए उकसाता है ओर उजाला हमेशा बुरी शक्तियों की बुराई को दबाता आया है.

पूर्णिमा की रात एकदम ठन्डे उजाले की रात होती है. इस रात मन में उठने वाली तरंगे अपने आप ही शांत हो जाती है ओर मन को हम आसानी से काबू कर ध्यान का आनंद ले सकते है. इस रात को ध्यान करने से मन के विकार समाप्त होने लगते है. मन में दबी हुई ईच्छा भी पूरी हो सकती है. यह रात ध्यान की रात ही होती है. सफ़ेद कपडे पहन का अगर सीधे चन्द्रमा की रौशनी में ध्यान किया जाये तो बहुत ही अच्छे रिजल्ट्स आते है. सीधे चांदनी में बैठना अगर पॉसिबल नहीं हो तो अपने ध्यान कक्ष में भी बैठ कर ध्यान किया जा सकता है.

थोडा ओर समझते है. चाँद ओर समुद्र का यानि जल का बहुत ही गहरा सम्बन्ध है. पूर्णिमा की रात चाँद इतना शक्तिशाली होता है कि वो समंदर के जल को अपनी ओर खीच कर ज्वारभाटा ला देता है. चाँद यानि मन ओर जल यानि भावनाएं. इसका मतलब इस रात भावनाए या फिर मन में उठने वाले विचार बहुत ही तेज़ी से उठ रहे होते है परन्तु चाँद भी शक्तिशाली होता है विचारो को कण्ट्रोल भी आसानी से किया जा सकता है.

दूसरी बात ध्यान में जो सबसे बड़ी रुकावट होती है वो होती है ध्यान में नींद आना. यह सबसे बड़ी समस्या है. ओर कभी कभी हम यह समझ ही नहीं पाता कि यह नीद थी या ध्यान था. पूर्णिमा की रात वैज्ञानिक तौर पर नींद आने के चांसेस कम होते है. इसलिए लम्बा ध्यान करना काफी इजी रहता है.

ओर एक खास बात कि अगर आप किसी मानसिक बीमारी से गुजर रहे है तो आपके लिए बहुत ही ज्यादा जरुरी है पूर्णिमा की रात ध्यान करना.

पूर्णिमा की रात को सारा का सारा वातावरण एक तरह की नयी उर्जा से भरा होता है ओर उस उर्जा को मन में भर कर हम कोई भी नया कार्य करेगे तो अवश्य ही पूरा होगा.