Sunday, 31 December 2017

बहुत महत्वपूर्ण बातें



आज मैं आपसे अपने blog के थीम से हट के कुछ बात कर रहा हूँ. क्यूंकि मेरा मेरे Viewers मेरे Subscribers के साथ एक ऐसा रिश्ता बन गया है कि मैं उनकी यानि आप सब की भावनाओं के महसूस करने लगा हूँ. इसलिए मैंने यह लेख  लिखना जरुरी समझा और मैं आपसे रूबरू हो रहा हूँ. यह जो भी बाते है वो मैंने अनुभव की है और उन्हें समझा है.

सबसे पहली बात - मैं हर वक़्त खुश रहना चाहता था, मैं यानि आप और आप यानि मैं, पर मैं हमेशा खुश रह नहीं पाता था. बड़ी कौशिश करता मैं खुश रहने की, अच्छे कपडे पहनना, खुद का पूरा ख्याल रखना, अपने लिए अच्छी अच्छी वस्तुएं लेकर आना. पर इनमे से कुछ भी मुझे खुश नहीं कर पाता था. फिर मैंने एक बात सीखी; अपने अनुभव से ही सीखी और एक बात को Discover किया कि जीवन वही मुझे देता है जो मैं उसे देता हूँ. मुझे पता लगा कि यदि मैं अपने चेहरे पर मुस्कान चाहता हूँ तो मुझे दूसरों के चेहरों पर मुस्कान लानी होगी, यदि मैं ख़ुशी चाहता हूँ तो मुझे दूसरों के मनों में ख़ुशी  लानी होगी. इस बात का मैंने अपने जीवन में प्रयोग किया है और बदले में बहुत कुछ पाया है. आज मैं आपसे, अपने Viewers से, अपने Subscribers से दिल से रूबरू होता हूँ, आपकी बातों का जवाब देता हूँ आपसे फ़ोन पर बात करके आपकी समस्याओ को दूर करने की कौशिश करता हूँ तो यकीन मानिये की बदले में आप मुझे बहुत कुछ दे जाते है जिसका आप लोगो को शायद पता ही नहीं चल पाता. यह मेरा आपको गाइड करना और आपका मुझसे गाइडेंस लेना, केवल आपको ही तसल्ली नहीं देता मुझे भी देता है. जब जब आप खुश होते है यह यूनिवर्स मुझे भी उतनी ही ख़ुशी देता है जितने खुश आप हुए है.

तो यह एक नियम है कि यदि आप जीवन में ख़ुशी चाहते है तो आप बस दूसरों को खुश करना शुरू कर दीजिये. बस बाकि कार्य यह Universe अपने आप ही कर देगा.

आप यह तय कर ले कि इस हफ्ते में आपको 2 चेहरों पर ख़ुशी लेकर आनी है. बड़ा ही छोटा सा टारगेट है यह. पर बड़ी ही आसानी से पूरा किया जा सकता है और इसके बहुत ही अच्छे रिजल्ट्स आते है . जैसे की किसी भी बुजुर्ग व्यक्ति के साथ थोडा सा समय बिताना, किसी की सच्ची तारीफ करना, जैसे कि किसी पुराने दोस्त को अचानक मिलने चले जाना, किसी को उसकी खूबियों के बारे में बताना जो उसे न पता हो और बहुत कुछ है करने के लिए आप करना शुरू करेंगे तो अवसर अपने आप ही मिलने लगेगे.

दूसरी बात - मैं अब जो चाह रहा हूँ वो पा भी रहा हूँ. जी हाँ यह बिलकुल सच्ची बात है. आपने शायद इस बात पर कई पुस्तकें पढ़ी होगी, The Secret, जो चाहो सो पाओ, जीत आपकी, और भी बहुत कुछ. पर मैंने जो discover किया वो कुछ अलग ही है. मेरे अन्दर बहुत सारी इच्छाएं है कुछ मेरी अपनी है और कुछ मेरे मन की. मैंने पहले बहुत कौशिश कि मेरी यह सब इच्छाए पूरी हो, उन्हें पूरा करने के लिए बड़ी मेहनत भी की, जिससे कुछ शायद पूरी हुई भी होगी परन्तु जब मैंने ध्यान को अपने जीवन का अंग बनाया तो यकीन मानिये मेरी इच्छाए अपने आप ही पूरी होने लगी, अजीब इतेफ़ाक होता और मेरी कोई न कोई इच्छा पूरी हो जाती, वो इच्छाए भी पूरी होने लगी जो मैं शायद इच्छा करके भूल भी गया था.

दूसरा नियम यह हुआ कि जीवन में कुछ भी कीजिये ध्यान जरुर कीजिये.

तीसरी बात - मेरे जीवन में बहुत कुछ आया, बहुत सी वस्तुएं, बहुत सारे रिश्ते, बहुत सारे लोग, मुझे लगाव था उनसे, बहुत ही लगाव, लगाव एक ऐसी शक्तिशाली शक्ति है जो हमसे हमारा समय ले लेती है और बदले में पहले सांसारिक सुख देती है और इसका End हमेशा दुःख से ही होता है. धीरे धीरे समय रहते मैं इस बात को समझने लगा कि जीवन में हर वस्तु की एक समय सीमा है, हर रिश्ते की भी एक समय सीमा है, हर व्यक्ति विशेष की भी एक समय सीमा है. इसलिए यदि मैं किसी तरीके से उनसे लगाव को छोड़ दूँ तो मेरा समय भी मेरे पास रहेगा और दुखी और सुखी होने से भी बच जाऊगा. मैंने यह भी देखा की अध्यात्मिक धरातल पर बने रिश्तो में कुछ जान रहती है. मेरी इसी सोच ने ही मुझे अध्यात्म के मार्ग पर लेकर गयी. और मुझे पता चला की मुझे सुख की नहीं आनंद की खोज करनी थी.

तीसरा नियम यह हुआ कि - जीवन में कुछ भी शाश्वत नहीं है. इसलिए सुख की नहीं आनंद की खोज कीजिये. क्यूंकि सुख दुःख के बाद ही आता है.
     

   

Friday, 29 December 2017

विपश्यना


विपश्यना
खुद को खुद से अलग करने की विधि, विपश्यना. मेरे मन में उठने वाले सब विचार मेरे नहीं है. मन एक जगह है जहाँ विचार उत्पन्न हो रहे है, विचार ही विचार, तरह तरह के विचार, ये विचार, वो विचार, अच्छे विचार, बुरे विचार. पता नहीं इन उठते हुए विचारो को देखते देखते मैं खुद को मन समझ बैठा होउगा, सच में पता ही नहीं चला. पर वास्तव में मैं मन नहीं हूँ और न ही कभी मैं मन था. मैं यानि आप और आप यानि मैं.

हमने विचारो की रस्सियों से दुनियां की विभिन्न वस्तुओं को, लोगो को अपने साथ बांध रखा है. ऐसा करते करते हम खुद ही यूँ बंध गए है कि ये विषय वस्तुएं, यह लोग और उनसे रिश्ते, उनसे जुडाव ही एक मात्र सत्य नज़र आता है और इनके पीछे छिपी हुई सचाई झूठ. पर ये वस्तुएं, यह लोग, ये जुडाव, ये रिश्ते भी इन सबसे से बहुत ही जल्द हम ऊब जाते है. फिर लग जाते है नयी वस्तुएं जोड़ने, नए रिश्ते जोड़ने पर कोई भी चीज लम्बे समय तक नहीं चलती, चल ही नहीं सकती क्यूंकि प्रकृति के नियम चलने भी नहीं देते. कभी न ख़त्म होने वाला यह सिलसिला चल ही रहा है और चलता भी नहीं रहेगा. तब तक चलता रहेगा जब तक हम वस्तुओ और लोगे में और उनसे रिश्तों में सुख ढूँढना छोड़ नहीं देंगे.

इसके लिए ही मुझे अपने आप से अलग होना होगा, क्यूंकि मैं वो हूँ ही नहीं जिसके कारण मैं दुखी हूँ तो फिर क्यूँ मैं यह दुःख भोग रहा हूँ. मुझे अलग होना होगा उस हर चीज से जो शाश्वत नहीं है. विपश्यना से यह अलगाव आसानी से होना शुरू हो जाता है और खुद को खुद से अलग होने की यात्रा शुरू हो जाती है. साथ के खुद को खुद समझने की यात्रा भी शुरू हो जाती है.

विपश्यना में तीन प्रकार से कार्य किया जा सकता है.
  1. सांसो पर ध्यान
  2. विचारों पर ध्यान
  3. विचारों के शरीर पर प्रभाव पर ध्यान

और यह विधि हमें क्यां सिखाती है:-

  1. विपश्यना मन को कण्ट्रोल करना सिखाती है.
  2. विपश्यना मन को Pure करना सिखाती है.
  3. विपश्यना मन के पार जाना भी सिखाती है.

देखिये विपश्यना कोई धार्मिक पध्दति नहीं है, यह एक तकनीक है, हा गौतम बुद्धा ने इसका प्रयोग किया और इसे जगत में फैलाया भी.

मन को साधने में लिए सांसो पर ध्यान किया जाता है. इसमें सांसो का अवलोकन किया जाता है. सांसो पर ध्यान करते करते आती जाती हुए स्वांसो में कुछ ठहराव आने शुरू हो जाते है और जैसे जैसे यह ठहराव वैसे वैसे मन में भी ठहराव आने शुरू हो जाते है और हमें इन ठहरावों से ही हमें मन से बाहर जाने का रास्ता मिल जाता है. हम मन से बाहर निकल कर ही मन को आसानी से समझ सकते है मन के अन्दर रह कर कभी भी नहीं.

अब मन सधने लगा एकाग्रता बढ़ने लगी और एकग्रता लम्बे समय तक रहने भी लगी. पर इतने से बात बनेगी नहीं. क्यूंकि मन की एकाग्रता एक क्रिमनल में भी काफी अच्छी मात्रा में होती है. हमारे मनो में बहुत से विकार होते है. यह विकार वास्तव में बुरे विचारों के रूप में हमारे चित में दर्ज होते है जो समय समय पर आकर अपना प्रभाव हम पर छोड़ते रहते है.

अब अगला Step मन को शुद्ध करने का होता है, मन को Pure करने का होता है. उसके लिए हमने विचारो को उठते हुए देखना होता है कि कैसे विचार उठ रहे है, एक विचार उठता है और वो किसी दुसरे विचार को जन्म देता है या फिर हमारे अंदर से ही किस अन्य विचार को उठा के लेकर आता है. ऐसा करते करते हम कभी न कभी यह बात समझ जाते है कि कोई भी विचार मेरा नहीं है और न ही मैं कोई विचार हूँ मन मेरे सामने तरह तरह के विचार परोस रहा है और मैं उनमे से ही किसी विचार को चुन कर उसके पीछे भागता हूँ फिर धीरे धीरे वो विचार अपनी उर्जा खोने लगता है और मैं भी. इसी तरह से जिन्दगी भर और जन्म दर जन्म यह श्रंखला चलती रहती है. पर जैसे जैसे मैं विपश्यना का प्रयोग करते हुए सजग रहने लगता हूँ तो मुझे अच्छे बुरे विचार समझ आने शुरू हो जाते है कि दोनों ही विचार ही है कोई जरुरी नहीं है मैं अच्छे या बुरे किसी भी के पीछे भागूं. बस जब यह बात समझ आ जाती है तो मन Pure होना शुर हो जाता है.

विचारों का शरीर पर ध्यान का प्रभाव पर ध्यान

यह तीसरा चरण है जिसमे हम इस बात पर अवलोकन करते है कि अमुक विचार जब उठा उस विचार से जो दुसरे विचार भी उठे उन विचारो ने शरीर पर क्या प्रभाव डाले. शरीर में क्यां हलचल हुई और वो हलचल कितनी देर रही और फिर उस हलचल से शरीर पर क्या प्रभाव पड़े. गुस्सा आया, क्रोध आया पर यहाँ क्रोध के साथ जाकर क्रोधित नहीं होना होता है बस क्रोध को देखना होता है. तब यह बात समझ आने लगती है कि आपका क्रोध एक विचार है, उस क्रोध से क्रोधित कैसे होना है वो भी एक विचार है. अब खुद से खुद अलग होने की यात्रा काफी हद तक आगे निकल चुकी होगी. अब कनेक्टिविटी आनी शुरू हो जाएगी. हर चीज से अपनापन एक अलग तरह का अपनापन. खुद को विचारो और इन्द्रियों से देखना ख़त्म हो जायेगा. अब खुद को खुद से देखना शरू हो जायेगा.   


Wednesday, 27 December 2017

जब जिंदगी तोड़ के रख दे तो .....


आज का मेरा विषय थोडा सवेदनशील है क्यूंकि जब जिंदगी तोड़ कर रख देती है तो जीवन अभिशाप सा लगने लगता है. तब जीवन में कुछ भी अच्छा नहीं लगता. सब का सब बेमानी सा लगने लगता है. लेकिन जीवन में घटित होने वाली हर घटना के कुछ न कुछ मायने होते है फिर वो चाहे वो अच्छी घटना हो चाहे बुरी. अपने पिछले विडियो में मैंने बताया था कि किस तरह आंसू आपके बुरे वक़्त में आपका साथ देते हुए आपको ईश्वर से कनेक्ट कर देते है.

आज जो मैं आपसे जो कुछ साँझा करुगा वो मेरा व्यक्तिगत अनुभव और आध्यात्मिकता पर मेरे अपने शोध पर आधारित है. अपने इस चैनल में माध्यम से मैं आपको जब आप अपने जीवन में टूटने वाली अवस्था में महसूस कर रहे होंगे, उस स्थिति से लड़ना सिखाने की कौशिश करुगा और उस स्थिति से निकलने का उपाय बताउगा. उन लम्हों में क्यां-क्यां अनुभव होता है और इम्तहान रूपी उन टूटे हुए लम्हों से हम कैसे निजात पा सके उसके बारे में आपसे रूबरू होउगा. यह जरुरी नहीं कि मेरा यह विडियो आपके काम आये पर आपके द्वारा किसी और जरूरतमंद के काम तो आ ही सकता है.

क्यूंकि मैंने उन लम्हों को जीया है और आध्यात्मिकता के क्षेत्र में होने के बाद जब मैंने उन लम्हों पर अध्यात्मिक नियमों का प्रयोग किया मुझे बहुत ही अच्छे रिजल्ट्स मिले और मैंने उन लम्हों का सही तरीके से इस्तेमाल कर अपने आप को सजग और सहज रख कर उन लम्हों से भी फायदा उठाया. जिससे मैंने उस कठिन समय को पार तो किया ही और साथ में उससे अध्यात्मिक उत्थान भी लिया.

यकीन मानिये यह बड़ी ही विचित्र बात है जब कि जिंदगी तोड़ कर रख देती है, जब समय भी लम्बा सा लगने लगता है और तब जब हर चीज में बुराई ही नज़र आती है उन लम्हों से भी मैंने अध्यात्मिक उत्थान के लिए यूज़ किया , और उसी आर्ट को मैंने आपके साथ शेयर करना चाहता हूँ.
जिंदगी कई बार तोडती है. क्यूंकि जीवन का कार्य केवल जोड़ना नहीं है; तोडना भी है. जीवन किसी से जोड़ता भी हमें सिखाने के लिए है और तोड़ता भी हमें सिखाने के लिए है.

हम कब टुटा हुआ महसूस करते है - तब जब कोई अत्यंत करीबी जीवन के किसी मोड़ पर अचानक साथ छोड़ दे, वो जिसके बारे में कभी ऐसा सोचा ही न हो कि यह भी साथ छोड़ देगा, या फिर कोई बिलकुल अपना हमें इस दुनिया से छोड़ कर चला जाये. जब किसी बिलकुल अपने की मृत्यु हो जाती है - तो इंसान टूट कर रह जाता है और उस वक़्त दुनिया की कोई भी सलाह या काउंसलिंग काम नहीं करती तब हम सब के जेहन में एक ही उत्तर आता है कि इस झटके की भरपाई तो टाइम ही कर सकता है और कोई नहीं. यह बात सच भी है.

कहते है Time is a Great Healer, यह सच है, बिलकुल सच है. पर मैं उस वक़्त से निकाल कर आपको कही और ले जाने की बात कर रहा हूँ. चलिए हम थोडा देखते है उस वक़्त होता क्या है जब जिंदगी तोड़ कर रख देती है.

किसी से बात करने का मन नहीं करता

भूख लगनी कम या कुछ समय के लिए बंद भी हो जाती है. पर कमाल की ही बात है कि उस वक़्त में बिना खाने के भी इंसान जिन्दा रहता है.

डर लगने लगता है और कभी कभी यह डर पोषित हो हो कर बिमारियों के रूप में उभरने लगता है.
समय कब बीत गया पता ही नहीं चलता. सुबह से शाम कब हो गयी.

लेकिन मन क्या सोच रहा था यह भी समझ नहीं आ पाता

लम्बा खालीपन....

यानि मन रूक सा जाता है.

संसार में रुचि रह ही नहीं जाती. बेमानी सब कुछ बेमानी

कई बार तो आंसू भी नहीं होते खुद को सांत्वना देने के लिए.

ईश्वर न करे की कभी ऐसा हो किसी के साथ भी. फिर भी जीवन है कभी कुछ भी हो सकता है और हमें हर वक़्त जीवन में किसी ही चैलेंज के लिए तैयार तो रहना ही चाहिए और मैं तो यह भी मानता हूँ कि जीवन में कुछ भी अच्छा या बुरा होना हमें कुछ सिखाने के लिए ही होता है.

अब मैं असली बात पर आता हूँ कि किसी भी वजह से यदि ऐसा हो जाये तब.

मैंने आपको बता दूँ की यह जितनी भी कंडीशन मैंने बताई है यह ध्यान के द्वारा ईश्वरीय शक्तियों से जुड़ने का एकदम परफेक्ट समय है. इस कठिन समय में थोडा सा किया हुआ ध्यान भी काफी कुछ दे कर जायेगा. इतना कुछ दे कर जायेगा आप सोच भी नहीं सकते. ऐसा होता है, ऐसा ही होता है. उस वक़्त जब मन भागता ही नहीं है, समय रूकता सा प्रतीत होता है -  तो ध्यान से पहले आने वाली स्थिति - प्रत्याहार;  बड़ी आसानी से घटित हो जाएगी और प्रत्याहार से ध्यान घटित होगा और वो ध्यान;  दिनों दिनों में आपको उस स्थिति से निकाल कर बाहर कर देगा. 

पर ऐसा तब होगा यदि आप उस वक़्त थोडा सा सजग हुए तो और यदि आपने सब कुछ मन को ही सौंप दिया तो फिर वही होगा हो दूसरों के साथ होता है या होता रहा है या होता रहेगा.

और मैं आपको यह भी बता दूँ कि यह ही वो समय होता है जब आप बड़ी ही आसानी से ध्यान कर सकते है बस एक बार try करनी होगी. यानि मैं जो बता रहा हूँ यह शायद मुश्किल लग रहा हो पर यह मुश्किल है नहीं उस वक़्त मन को एक तरफ डायरेक्ट करना है बस.


 

Monday, 25 December 2017

क्यां हमारी आत्मा डूब रही है?






मैं अपनी बात वेदांत से शुरू करुगा जिसमे यह बताया गया है कि इंसान केवल शरीर नहीं है, उसमे एक मन भी है और एक आत्मा भी है. शरीर और मन तो हम सब अच्छी तरह से समझते है. पर आत्मा शरीर और मन के अनुभव से परे है. हम आत्मा को मॉडर्न भाषा में कांशसनेस भी कह सकते है. वेदांत के हिसाब से आत्मा का मन पर प्रभाव रहता है और मन का शरीर पर और शरीर का प्रभाव हमारे चारो ओर के वातावरण पर पड़ता है. 

आत्मा                मन                शरीर

अब यदि शरीर से हम कुछ भी गलत करते है तो उसका असर मन पर पड़ेगा और मन में तरह तरह के गलत विचार पैदा होंगे जो बिमारियों के रूप में हमारे शरीर पर प्रभाव डालेगे और हमारी आत्मा की यात्रा में भी रूकावट डालेगे. और यदि मन से हम कुछ गलत करते है यानि गलत विचारो को बार बार मन में लगे है तो उसका प्रभाव भी शरीर और आत्मा दोनों पर पड़ेगा. 

आमतौर पर हम मन को ही जिंदगी मान लेते है और मन में जो विचार पैदा हो रहे होते है उन्हें सच मान लेते है. जबकि मन तो है की विचारो से बना हुआ वहा तो विचार उठने ही है, अच्छे भी उठने है और बुरे भी. यह हम पर है की हम किस तरह के विचारो को अपनाते है. क्यूंकि इसका सीधा असर हमारी आत्मा पर पड़ता है. जब यह सब लम्बे समय तक चलता रहता है तो हमारी आत्मा की शक्ति जिससे हम सब कुछ कर रहे है वो सुस्त पड़ने लगती है और हमें अपना जीवन नीरस लगने लगता है और इस बीच तरह तरह की बिमारियों के भी हम शिकार हो जाते है. 

तो जब जीवन में नीरसता आने लगे और जीवन जीने में तरह तरह की रूकावटे आने लगे तो समझ लेना कि आत्मा पर विचारो से उठी हुई धूल जमने लगी है और वक़्त आ गया है कि आत्मा को फिर से Nourish किया जाये.

तो फिर करना क्या है?


  • सबसे पहले संगती अच्छे लोगो के साथ करे..

  • अच्छी किताबे पढनी शुरू करे..

  • अपने धर्मानुसार धार्मिक स्थल पर जाना शुरू करें

  • रोजाना कुछ समय अकेले बिताये...

  • प्रकृति के साथ ज्यादा से ज्यादा रूबरू हो...

  • ध्यान करे, रोजाना करे,,,

  • दुसरो को मदद करना शुरू कर दे. 






बस इतना करने से ही आत्मा से धूल उतरनी शुरू हो जाएगी. और जीवन में रोमांच आना शुरू हो जायेगा.

Sunday, 24 December 2017

आंसुओ से ईश्वर तक





आज का मेरा विषय बहुत ही कॉमन है जोकि हम सबसे सबंध रखता है. ऐसा शायद हम में से कोई भी नहीं होगा जो कोई जीवन में रोया न हो. 

आज मैं आपके आंसुओ से आपको ईश्वर तक लेकर जाऊगा. जिस तरीके से मैं कनेक्ट करूगा वैसे ही आप में से सब ने कभी न कभी जीवन में अवश्य महसूस किया होगा. 

मैं ये जो "मैं" शब्द बार बार प्रयोग करता हूँ अपने विडियो में; उसका मतलब केवल मेरा अहम यानि मैं नहीं होता, परन्तु वो चेतना होती है जो मुझ में है, आप सब में है और सच बताऊ तो यह चेतना शायद बढती ही जा रही है. मैं यानि आप, आप यानि मैं. 

तो फिर से अपनी बात पर आता हूँ.. आंसू ..

तो आंसू हम सबकी एक अति महतवपूर्ण है अभिव्यक्ति है. और इस से ज्यादा भी बहुत कुछ है जो मैं आज बताऊगा. 

हम सब में से ही शायद ही कोई ऐसा हो की जो जीवन में रोया न हो. क्यूंकि पैदा होते ही बच्चा अगर नहीं रोता तो उसके शरीर में दिक्कत आ जाती है. कुछ मेडिकल प्रॉब्लम होती है शायद. पर वो मेरा आज का विषय नहीं है. 

मेरा विषय आंसू

जब मैं पैदा हुआ होउगा तो रोया तो होउगा ही. मैं यानि आप, आप यानि मैं. 

फिर जब मैं बच्चा था, छोटा सा बच्चा जिसकी हर जरुरत उसकी माँ थी. मेरे आंसू ही मेरी भाषा थे. मेरी आँखों के आंसू माँ को एक दम पिघला कर रख देते थे. वो भी शायद रो देती होंगी. पर वो दुःख के आंसू तो होगे नहीं. नहीं ना, वो कनेक्टिविटी के आंसू थे जिसका आधार प्यार और आनंद भी था. मेरे आंसुओ में, जब मैं छोटा सा बच्चा था असहाय बच्चा, मुझे पता था कि येही माँ को बुलाने की अभिव्यक्ति है और माँ खीची चली आती थी . मेरे आंसू कहते थे कि माँ मैं परेशान हूँ फिर माँ के हाथ ही लग जाते होंगे तो ही चुप हो जाता होउगा. मुझे चुप होने में जो सकून मिलता होगा माँ को भी उतना या शायद उस से ज्यादा भी सकून मिलता होगा. 

अब जब जीवन के इस पड़ाव पर जो आंसू ओखो से कभी निकलते है तो आनंद के रूप में जगत माता से जो सहायता मिलती है उस से मुझे तो अच्छा लगता ही है शायद जगत माता को मुझ से भी अधिक अच्छा लगता होगा? क्यूंकि वही तो मेरी असली माँ है, ईश्वर, जगत जननी माता जिन्होंने मुझे पैदा किया. 

हम रोते ही तब है जब हम असहाय महसूस करते है. जब परिस्थितिया हमारे बस में नहीं रह जाती, जब हम किसी विशेष स्थिति में किसी के लिए कुछ भी नहीं कर सकते तो हम रोने लगते है. पर हम रोते ही क्यों है. क्यां मिलता है रोने से और क्या मिलता होगा. रोने के बाद मन शांत हो जाता है. पर क्यूँ ? 

शायद हमारे आंसू हमें उस विश्व जगत जननी माता से कनेक्ट कर देते होंगे जिन्हें हम ईश्वर कह सकते है. क्यूंकि इसीलिए ही हम रोते है - कि मूक भाषा में वो एक आतम समर्पण होता है कि हे इश्वर अब मुझ से और सहन नहीं होता.. और फिर आंसू ...फिर रोने के बाद काफी अच्छा लगने लगता है काफी सहज लगने लगता है. शायद उस से संपर्क हो जाता है....किस माध्यम से ...आंसूओं के माध्यम से .... जब बचपन में रोता था तो माँ आ जाती थी. मेरी लौकिक माँ .. बड़ा हुआ तो जब कभी किसी ने शायद दिल तोडा तब रोया,  तब भी माँ आई, ईश्वरीय माँ , जगत जननी माँ, क्यूंकि माध्यम मैंने अब भी वही अपनाया जो बचपन में अपनाया था, आंसू . 

मैं आपको बता रहा था कि इंसान तब रोता है जब कोई रास्ता नहीं बचता, मतलब कि सभी लौकिक रास्ते बंद हो जाते है. मन के पास कुछ जवाब नहीं होता और मन चुप हो जाता है. मन के चुप होते ही कोन्नेक्ट्विटी होती है, आनंद बहने लगता है. बहुत खुश होने के पीछे भी येही राज है. मन का चुप होना, वेदांत कहता है आनंद का बहना संभव ही तभी हो सकता है जब यदि मन चुप हो जाये तो.
आंसुओ के बाद सुख नहीं मिलता आनंद मिलता है. सुख इन्द्रियजनित होता है और आनंद इन्द्रियातीत होता है. रामकृष्ण परमहंस जी के बारे में तो आपने सुना ही होगा, स्वामी विवेकानंद के गुरु, माँ काली के भक्त, कहते है वे घंटो माँ काली के सामने रो रहे होते थे. पर वो रोना भी इन्द्रियातीत था. आनंद बहता होगा अपार आनंद.

मैं यह नहीं कह रहा हूँ की जीवन की हर छोटी छोटी समस्या के कारण हमें रोते ही रहना चाहिए. जिन आंसुओ की मैं बात कर रहा हूँ वो अपने आप ही आते है और जब आते है तब हम रोक भी नहीं पाते. 

अब मैं अध्यात्म पर आता हूँ. जब मैं डीप मैडिटेशन में चला जाता हूँ तो कभी कभी ऐसे कनेक्ट हो जाता हूँ कि आंसू ही आंसू, बस आंसू, आनंद के साथ बहते हुए आंसू बहुत ही आनंदित कर जाते है. उन आसुओं को मैं चाहते हुए भी नहीं रोक पाता हूँ और उन आसुओं का तो मैं इन्तजार भी करता हूँ. क्यूंकि जब वो आंसू बह रहे होते है तो उस ईश्वरीय जगत जननी माँ से जुडाव महसूस होता है. मुझे लगता है कोई है जो मेरा ख्याल रखता है, जो इस मन की पकड़ में नहीं आता पर आंसुओ की पकड़ में आ जाता है.  अब यदि सजग हो कर रोऊ तो उसका आभास कर लेता हूँ. लेकिन रोते हुए सजग रहना पड़ेगा. 

मैं किसी अच्छे  साधक को देख लेता हूँ तो भी मेरी आँखों में आंसू बहने लगते है. भगवान की किसी मूर्त को देखता हूँ तब भी रोने लगता हूँ. और शादी के वक़्त जब कोई लड़की अपने घर से विदा हो रही होती है तो मुझ से वो विदाई सहन नहीं होती, मैं रोने लगता हूँ, कनेक्ट होने लगता हूँ. राष्ट्र प्रेम, विश्व प्रेम की जब बात आती है तो आंसू दे जाती है, मैंने जब रामायण पढ़ी तो भगवान् राम के बनवास की बात जैसे जैसे नजदीक आ रही थी तो बैठे बैठे मेरा रोना बढ़ रहा था. कोनीक्टिविटी थी, किसी भी बड़े धार्मिक स्थल पर चाहे वो किसी भी  धर्म से सबंधित हो वहा अगर वो एनर्जी होगी तो मेरे आंसू आयेगें ही.  जैसे जैसे मेरी चेतना बढ़ रही है वैसे वैसे मेरे रोना भी बढ़ रहा है. दुसरे के दुःख में रोना. चेतना बढ़ने की वजह से समझ बढ़ने की वजह से,  दुसरो का दुख अपना दुःख लगता है और जब दुःख आता है तो माँ की याद आती है. ईश्वरीय माँ की याद, जगत जननी की याद,  जहा तक मेरी चेतना बढ़ी है उस चेतना के अन्दर कोई भी दुःख या ख़ुशी भी मुझे आंसू दे कर जाएगी ही. ध्यान से चेतना विस्तृत होती है, समझ बढती है, 

अब जब इस तरह से आंसू आते है तो उसी समय समझ आ जाता  है कि वो आ गया, वो कौन - माँ - जगत माता, माँ काली भी, मरियम भी, माँ गंगा भी, माँ जो हर रूप में है जगत जननी माँ . जो मुझे, आपको nourish कर रही है.
मैं यानि आप, आप यानि मैं.