Friday, 29 December 2017

विपश्यना


विपश्यना
खुद को खुद से अलग करने की विधि, विपश्यना. मेरे मन में उठने वाले सब विचार मेरे नहीं है. मन एक जगह है जहाँ विचार उत्पन्न हो रहे है, विचार ही विचार, तरह तरह के विचार, ये विचार, वो विचार, अच्छे विचार, बुरे विचार. पता नहीं इन उठते हुए विचारो को देखते देखते मैं खुद को मन समझ बैठा होउगा, सच में पता ही नहीं चला. पर वास्तव में मैं मन नहीं हूँ और न ही कभी मैं मन था. मैं यानि आप और आप यानि मैं.

हमने विचारो की रस्सियों से दुनियां की विभिन्न वस्तुओं को, लोगो को अपने साथ बांध रखा है. ऐसा करते करते हम खुद ही यूँ बंध गए है कि ये विषय वस्तुएं, यह लोग और उनसे रिश्ते, उनसे जुडाव ही एक मात्र सत्य नज़र आता है और इनके पीछे छिपी हुई सचाई झूठ. पर ये वस्तुएं, यह लोग, ये जुडाव, ये रिश्ते भी इन सबसे से बहुत ही जल्द हम ऊब जाते है. फिर लग जाते है नयी वस्तुएं जोड़ने, नए रिश्ते जोड़ने पर कोई भी चीज लम्बे समय तक नहीं चलती, चल ही नहीं सकती क्यूंकि प्रकृति के नियम चलने भी नहीं देते. कभी न ख़त्म होने वाला यह सिलसिला चल ही रहा है और चलता भी नहीं रहेगा. तब तक चलता रहेगा जब तक हम वस्तुओ और लोगे में और उनसे रिश्तों में सुख ढूँढना छोड़ नहीं देंगे.

इसके लिए ही मुझे अपने आप से अलग होना होगा, क्यूंकि मैं वो हूँ ही नहीं जिसके कारण मैं दुखी हूँ तो फिर क्यूँ मैं यह दुःख भोग रहा हूँ. मुझे अलग होना होगा उस हर चीज से जो शाश्वत नहीं है. विपश्यना से यह अलगाव आसानी से होना शुरू हो जाता है और खुद को खुद से अलग होने की यात्रा शुरू हो जाती है. साथ के खुद को खुद समझने की यात्रा भी शुरू हो जाती है.

विपश्यना में तीन प्रकार से कार्य किया जा सकता है.
  1. सांसो पर ध्यान
  2. विचारों पर ध्यान
  3. विचारों के शरीर पर प्रभाव पर ध्यान

और यह विधि हमें क्यां सिखाती है:-

  1. विपश्यना मन को कण्ट्रोल करना सिखाती है.
  2. विपश्यना मन को Pure करना सिखाती है.
  3. विपश्यना मन के पार जाना भी सिखाती है.

देखिये विपश्यना कोई धार्मिक पध्दति नहीं है, यह एक तकनीक है, हा गौतम बुद्धा ने इसका प्रयोग किया और इसे जगत में फैलाया भी.

मन को साधने में लिए सांसो पर ध्यान किया जाता है. इसमें सांसो का अवलोकन किया जाता है. सांसो पर ध्यान करते करते आती जाती हुए स्वांसो में कुछ ठहराव आने शुरू हो जाते है और जैसे जैसे यह ठहराव वैसे वैसे मन में भी ठहराव आने शुरू हो जाते है और हमें इन ठहरावों से ही हमें मन से बाहर जाने का रास्ता मिल जाता है. हम मन से बाहर निकल कर ही मन को आसानी से समझ सकते है मन के अन्दर रह कर कभी भी नहीं.

अब मन सधने लगा एकाग्रता बढ़ने लगी और एकग्रता लम्बे समय तक रहने भी लगी. पर इतने से बात बनेगी नहीं. क्यूंकि मन की एकाग्रता एक क्रिमनल में भी काफी अच्छी मात्रा में होती है. हमारे मनो में बहुत से विकार होते है. यह विकार वास्तव में बुरे विचारों के रूप में हमारे चित में दर्ज होते है जो समय समय पर आकर अपना प्रभाव हम पर छोड़ते रहते है.

अब अगला Step मन को शुद्ध करने का होता है, मन को Pure करने का होता है. उसके लिए हमने विचारो को उठते हुए देखना होता है कि कैसे विचार उठ रहे है, एक विचार उठता है और वो किसी दुसरे विचार को जन्म देता है या फिर हमारे अंदर से ही किस अन्य विचार को उठा के लेकर आता है. ऐसा करते करते हम कभी न कभी यह बात समझ जाते है कि कोई भी विचार मेरा नहीं है और न ही मैं कोई विचार हूँ मन मेरे सामने तरह तरह के विचार परोस रहा है और मैं उनमे से ही किसी विचार को चुन कर उसके पीछे भागता हूँ फिर धीरे धीरे वो विचार अपनी उर्जा खोने लगता है और मैं भी. इसी तरह से जिन्दगी भर और जन्म दर जन्म यह श्रंखला चलती रहती है. पर जैसे जैसे मैं विपश्यना का प्रयोग करते हुए सजग रहने लगता हूँ तो मुझे अच्छे बुरे विचार समझ आने शुरू हो जाते है कि दोनों ही विचार ही है कोई जरुरी नहीं है मैं अच्छे या बुरे किसी भी के पीछे भागूं. बस जब यह बात समझ आ जाती है तो मन Pure होना शुर हो जाता है.

विचारों का शरीर पर ध्यान का प्रभाव पर ध्यान

यह तीसरा चरण है जिसमे हम इस बात पर अवलोकन करते है कि अमुक विचार जब उठा उस विचार से जो दुसरे विचार भी उठे उन विचारो ने शरीर पर क्या प्रभाव डाले. शरीर में क्यां हलचल हुई और वो हलचल कितनी देर रही और फिर उस हलचल से शरीर पर क्या प्रभाव पड़े. गुस्सा आया, क्रोध आया पर यहाँ क्रोध के साथ जाकर क्रोधित नहीं होना होता है बस क्रोध को देखना होता है. तब यह बात समझ आने लगती है कि आपका क्रोध एक विचार है, उस क्रोध से क्रोधित कैसे होना है वो भी एक विचार है. अब खुद से खुद अलग होने की यात्रा काफी हद तक आगे निकल चुकी होगी. अब कनेक्टिविटी आनी शुरू हो जाएगी. हर चीज से अपनापन एक अलग तरह का अपनापन. खुद को विचारो और इन्द्रियों से देखना ख़त्म हो जायेगा. अब खुद को खुद से देखना शरू हो जायेगा.   


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