Sunday, 24 December 2017

आंसुओ से ईश्वर तक





आज का मेरा विषय बहुत ही कॉमन है जोकि हम सबसे सबंध रखता है. ऐसा शायद हम में से कोई भी नहीं होगा जो कोई जीवन में रोया न हो. 

आज मैं आपके आंसुओ से आपको ईश्वर तक लेकर जाऊगा. जिस तरीके से मैं कनेक्ट करूगा वैसे ही आप में से सब ने कभी न कभी जीवन में अवश्य महसूस किया होगा. 

मैं ये जो "मैं" शब्द बार बार प्रयोग करता हूँ अपने विडियो में; उसका मतलब केवल मेरा अहम यानि मैं नहीं होता, परन्तु वो चेतना होती है जो मुझ में है, आप सब में है और सच बताऊ तो यह चेतना शायद बढती ही जा रही है. मैं यानि आप, आप यानि मैं. 

तो फिर से अपनी बात पर आता हूँ.. आंसू ..

तो आंसू हम सबकी एक अति महतवपूर्ण है अभिव्यक्ति है. और इस से ज्यादा भी बहुत कुछ है जो मैं आज बताऊगा. 

हम सब में से ही शायद ही कोई ऐसा हो की जो जीवन में रोया न हो. क्यूंकि पैदा होते ही बच्चा अगर नहीं रोता तो उसके शरीर में दिक्कत आ जाती है. कुछ मेडिकल प्रॉब्लम होती है शायद. पर वो मेरा आज का विषय नहीं है. 

मेरा विषय आंसू

जब मैं पैदा हुआ होउगा तो रोया तो होउगा ही. मैं यानि आप, आप यानि मैं. 

फिर जब मैं बच्चा था, छोटा सा बच्चा जिसकी हर जरुरत उसकी माँ थी. मेरे आंसू ही मेरी भाषा थे. मेरी आँखों के आंसू माँ को एक दम पिघला कर रख देते थे. वो भी शायद रो देती होंगी. पर वो दुःख के आंसू तो होगे नहीं. नहीं ना, वो कनेक्टिविटी के आंसू थे जिसका आधार प्यार और आनंद भी था. मेरे आंसुओ में, जब मैं छोटा सा बच्चा था असहाय बच्चा, मुझे पता था कि येही माँ को बुलाने की अभिव्यक्ति है और माँ खीची चली आती थी . मेरे आंसू कहते थे कि माँ मैं परेशान हूँ फिर माँ के हाथ ही लग जाते होंगे तो ही चुप हो जाता होउगा. मुझे चुप होने में जो सकून मिलता होगा माँ को भी उतना या शायद उस से ज्यादा भी सकून मिलता होगा. 

अब जब जीवन के इस पड़ाव पर जो आंसू ओखो से कभी निकलते है तो आनंद के रूप में जगत माता से जो सहायता मिलती है उस से मुझे तो अच्छा लगता ही है शायद जगत माता को मुझ से भी अधिक अच्छा लगता होगा? क्यूंकि वही तो मेरी असली माँ है, ईश्वर, जगत जननी माता जिन्होंने मुझे पैदा किया. 

हम रोते ही तब है जब हम असहाय महसूस करते है. जब परिस्थितिया हमारे बस में नहीं रह जाती, जब हम किसी विशेष स्थिति में किसी के लिए कुछ भी नहीं कर सकते तो हम रोने लगते है. पर हम रोते ही क्यों है. क्यां मिलता है रोने से और क्या मिलता होगा. रोने के बाद मन शांत हो जाता है. पर क्यूँ ? 

शायद हमारे आंसू हमें उस विश्व जगत जननी माता से कनेक्ट कर देते होंगे जिन्हें हम ईश्वर कह सकते है. क्यूंकि इसीलिए ही हम रोते है - कि मूक भाषा में वो एक आतम समर्पण होता है कि हे इश्वर अब मुझ से और सहन नहीं होता.. और फिर आंसू ...फिर रोने के बाद काफी अच्छा लगने लगता है काफी सहज लगने लगता है. शायद उस से संपर्क हो जाता है....किस माध्यम से ...आंसूओं के माध्यम से .... जब बचपन में रोता था तो माँ आ जाती थी. मेरी लौकिक माँ .. बड़ा हुआ तो जब कभी किसी ने शायद दिल तोडा तब रोया,  तब भी माँ आई, ईश्वरीय माँ , जगत जननी माँ, क्यूंकि माध्यम मैंने अब भी वही अपनाया जो बचपन में अपनाया था, आंसू . 

मैं आपको बता रहा था कि इंसान तब रोता है जब कोई रास्ता नहीं बचता, मतलब कि सभी लौकिक रास्ते बंद हो जाते है. मन के पास कुछ जवाब नहीं होता और मन चुप हो जाता है. मन के चुप होते ही कोन्नेक्ट्विटी होती है, आनंद बहने लगता है. बहुत खुश होने के पीछे भी येही राज है. मन का चुप होना, वेदांत कहता है आनंद का बहना संभव ही तभी हो सकता है जब यदि मन चुप हो जाये तो.
आंसुओ के बाद सुख नहीं मिलता आनंद मिलता है. सुख इन्द्रियजनित होता है और आनंद इन्द्रियातीत होता है. रामकृष्ण परमहंस जी के बारे में तो आपने सुना ही होगा, स्वामी विवेकानंद के गुरु, माँ काली के भक्त, कहते है वे घंटो माँ काली के सामने रो रहे होते थे. पर वो रोना भी इन्द्रियातीत था. आनंद बहता होगा अपार आनंद.

मैं यह नहीं कह रहा हूँ की जीवन की हर छोटी छोटी समस्या के कारण हमें रोते ही रहना चाहिए. जिन आंसुओ की मैं बात कर रहा हूँ वो अपने आप ही आते है और जब आते है तब हम रोक भी नहीं पाते. 

अब मैं अध्यात्म पर आता हूँ. जब मैं डीप मैडिटेशन में चला जाता हूँ तो कभी कभी ऐसे कनेक्ट हो जाता हूँ कि आंसू ही आंसू, बस आंसू, आनंद के साथ बहते हुए आंसू बहुत ही आनंदित कर जाते है. उन आसुओं को मैं चाहते हुए भी नहीं रोक पाता हूँ और उन आसुओं का तो मैं इन्तजार भी करता हूँ. क्यूंकि जब वो आंसू बह रहे होते है तो उस ईश्वरीय जगत जननी माँ से जुडाव महसूस होता है. मुझे लगता है कोई है जो मेरा ख्याल रखता है, जो इस मन की पकड़ में नहीं आता पर आंसुओ की पकड़ में आ जाता है.  अब यदि सजग हो कर रोऊ तो उसका आभास कर लेता हूँ. लेकिन रोते हुए सजग रहना पड़ेगा. 

मैं किसी अच्छे  साधक को देख लेता हूँ तो भी मेरी आँखों में आंसू बहने लगते है. भगवान की किसी मूर्त को देखता हूँ तब भी रोने लगता हूँ. और शादी के वक़्त जब कोई लड़की अपने घर से विदा हो रही होती है तो मुझ से वो विदाई सहन नहीं होती, मैं रोने लगता हूँ, कनेक्ट होने लगता हूँ. राष्ट्र प्रेम, विश्व प्रेम की जब बात आती है तो आंसू दे जाती है, मैंने जब रामायण पढ़ी तो भगवान् राम के बनवास की बात जैसे जैसे नजदीक आ रही थी तो बैठे बैठे मेरा रोना बढ़ रहा था. कोनीक्टिविटी थी, किसी भी बड़े धार्मिक स्थल पर चाहे वो किसी भी  धर्म से सबंधित हो वहा अगर वो एनर्जी होगी तो मेरे आंसू आयेगें ही.  जैसे जैसे मेरी चेतना बढ़ रही है वैसे वैसे मेरे रोना भी बढ़ रहा है. दुसरे के दुःख में रोना. चेतना बढ़ने की वजह से समझ बढ़ने की वजह से,  दुसरो का दुख अपना दुःख लगता है और जब दुःख आता है तो माँ की याद आती है. ईश्वरीय माँ की याद, जगत जननी की याद,  जहा तक मेरी चेतना बढ़ी है उस चेतना के अन्दर कोई भी दुःख या ख़ुशी भी मुझे आंसू दे कर जाएगी ही. ध्यान से चेतना विस्तृत होती है, समझ बढती है, 

अब जब इस तरह से आंसू आते है तो उसी समय समझ आ जाता  है कि वो आ गया, वो कौन - माँ - जगत माता, माँ काली भी, मरियम भी, माँ गंगा भी, माँ जो हर रूप में है जगत जननी माँ . जो मुझे, आपको nourish कर रही है.
मैं यानि आप, आप यानि मैं.



 

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