Saturday, 23 December 2017

मौन क्यां है ?

मौन कहाँ है?




मैंने बहुत सारा लिटरेचर पढ़ा है पर एक पुस्तक जिसका नाम अलकेमिस्ट है उस किताब ने मुझे बहुत प्रभावित किया. इस बुक को ब्राज़ीलियाई लेखक पाउलो कोहिलों ने लिखा है. इस किताब में कई जगह एक मूक भाषा का जिक्र आया है. और जब जब उस मूक भाषा का जिक्र आया तो मेरे जेहन में एक रोमांच सा छोड़ गया कि किस तरीके से हम एक बिन बोली भाषा यानि मौन से जुड़े हुए है.
अध्यात्मिक यात्रा का रास्ता भी बड़ा  उम्दा होता है कई बार छोटी बात भी बहुत कुछ कह जाती है.  जैसे अलकेमिस्ट में जब जब लेखक उस अनकही भाषा की बात करता है तो पता चलता है कि मैं संसार की हर वस्तु  से जुड़ा  हुआ हूँ और हर वस्तु  से बात भी कर सकता हूँ. बस एक बार मौन सीख लिया तो. कहते है कि भाषा ही कम्युनिकेशन का तरीका है पर यदि हम उस मूक भाषा को समझना शुरू कर देंगे तो यकीन मानिये की फिर चाहे दुनिया का कोई भी व्यक्ति हो हम उस व्यक्ति को बिना बोलो ही समझ लेंगे.
हम पांच इन्द्रियों के माध्यम से इस संसार की हर वस्तु से रूबरू होते है. भारत में और विश्व में अलग अलग तरह के फिलोसोफी के स्कूल है. जो हमें बताते है कि किस तरह से किस तरह से हम इन्द्रियों के माध्यम से हमें अपने अनुभवों और अनुमानों से सीखते है. पर भारतीय दर्शन सीखने का एक बिलकुल अलग तरीका बताता है. जोकि इन्द्रियातीत है यानि हमें बिना किसी इन्द्रिय की मदद से भी सीख सकते है. कमाल है न कि कुछ भी न करो और सीख जाओ, कुछ भी न करो मतलब न पढो, न कोई टीचर हो और न को क्लास और न ही कोई शिष्य फिर भी शिक्षा पूरी हो जाये. हमारे वेद ऐसे ही आये है किसी न किसी ऋषि के जेहन में, कब आये? जब किस एक तकनीक से उनका मन इस मूक भाषा से जुड़ गया, तो बिना, क्लास, बिना किताब, बिना कुछ मैकेनिकल किये ज्ञान उभारना शुरू हो गया मानस पटल पर, मेंटल स्क्रीन.
शरू में जब मेरे सामने मौन की बात आई तो मुझे लगा कि इसमें क्या मुश्किल है बस बोलना बंद कर दो तो हो गया मौन. पर जब मैंने इस तरह से बोलना बंद करके मौन होने की कौशिश की तो मेरे मन ने अन्दर से इतना शोर मचाया की सहन करना मुश्किल हो गया. फिर पता नहीं कब मुझे पता चला कि मौन भी एक प्रकार से घटित होता है जैसे ध्यान घटित होता है और जब मौन घटित होता है तो वो तब तक रहता है जब तक उसे रहना हो. जब मौन रहता है तो मैं चाह कर भी बोल नहीं सकता. जब जब मेरे अन्दर मौन घटित हुआ तो शब्द उठने ही बंद हो गए थे बोलने का तो सवाल ही पैदा हो सकता था.

मौन जब भी आता तो गहरी साइलेंस लेकर आता, उसे ले आने के लिए मन को चुप करना होता जोकि काफी challenging था. पर ध्यान से यह मुमकिन था. मौन जब तक रहता तो आनंद बना रहता और जब मौन चला  भी जाता तब भी काफी देर तक आनंद बना रहता और मौन एक लम्बी चुप्पी भी दे कर जाता. वो लम्बी चुप्पी कुछ भी एक नए तरीके से समझने में मदद करती थी. एक और खास बात भी थी की मौन के वक़्त और मौन के बाद चुप्पी के वक़्त जब कभी भी कोई भाव उठता था तो कभी भी दुःख का भाव नहीं होता था. और उसके बाद मन में भी अच्छे विचार उठने लगते थे और वो मन जो मौन के against होता था वो मन मौन घटित होने के बाद नई उमंगो से भरा होता था. और ख़ुशी आनंद से भरपूर रहता था. 



ध्यान अपने आप ही मौन लेकर आता है. नियमित रूप से ध्यान करना और कभी कभी लम्बा ध्यान करना मौन लेकर आता है. मौन आपकी और मेरी मर्ज़ी से नहीं आयेगा, उसे जब आना होगा तो आयेगा ही और जब मौन आएगा तो आपको भी पता चल जायेगा कि वो आ गया है. तब जब मन के गहरे सागर से न शब्द उठेगे और न ही विचार तो समझ आ जाएगी की मौन हो गया. 

           
 

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