Saturday, 23 December 2017

क्यां हम सच में प्रार्थना करते है ?



Prayers
Prayer


हम में से सभी अपने धर्मानुसार किसी न किसी धार्मिक स्थान पर या फिर सिद्ध स्थान पर जाते रहते है, वो सिद्ध स्थान कोई बड़ा मंदिर हो सकता है, कोई बड़ी मस्जिद हो सकती है, कोई बड़ी चर्च हो सकती है या किसी पीर की मजार भी हो सकती है. हम अक्सर जाते है ऐसी जगहों पर, अपने मन की इच्छानुसार कुछ न कुछ मांगने. उसके लिए हम Prayer करते है. यही मेरा आज का विषय है कि जब हम Prayers कर रहे होते है तो क्या हम वास्तव में Prayers कर रहे होते है.

मैं खुद के मन से ही बात शुरू करता हूँ. मेरे मन को अपनी मर्ज़ी से चलना होता था वो कभी कभार ही मेरी मर्ज़ी से चलता था आमतौर पर वो अपनी मर्ज़ी से ही चलता था. हा वो मेरी बात को सुनता जरुर था पर उसे चलता अपनी मर्ज़ी से ही था. मुझे लगता था कि शायद ऐसा ही होता होगा. पर मन ही अपनी चलाये यह कोई सिद्धांत नहीं था. कभी कभी मुझे परेशानी होती थी इस बात पर कि मन मेरी हर बात को कही से कही जोड़ उड़ा कर ले जाता था. मुझे अक्सर मेरे उद्देश्य से भटका देता था. मन का यूँ हर बात को कही का कही ले जाना मुझे कही न कही गड़बड़ तो लगता था ही. 

मैं कभी ठीक से अपनी Prayers भी नहीं कह पाता था, अभी प्रार्थना शुरू ही करता था कि मन बीच में कही का कही उड़ा ले जाता था. ऐसे में मेरी प्रार्थना कैसे भगवान् तक पहुच सकती थी. बड़ी मुश्किल से शायद की कोई मंत्र या श्लोक या ऐसा ही कुछ भी और मन के बिना भटकाए पूरा होता था. ऐसा लगता था की मेरा मन कभी नहीं चाहता था कि मैं प्रार्थना करूँ. पर ऐसा वो क्यों करता था समझ नहीं आता था; शायद अपना वर्चस्य बनाये रखने के लिए. 

एक छोटी सी Prayer ठीक से पूरी करने के लिए उसे कई बार दोहराना पड़ता था कि वो Prayer ठीक से पूरी हो जाये. क्यूँकी मन बीच में कई बार भटका देता था. ऐसे में कैसे Prayers भगवान् या देवताओं तक पहुच पाती होगी बड़ा ही चिंता का विषय था. 

इसलिए किसी भी Prayer को कहने से पहले मन को दुरस्त करना होता था, उसे साइलेंस करना होता था. उसका तरीका ध्यान था. ध्यान से मन चुप होना शुरू हो गया था. 5 मिनट के ध्यान के बाद भी कोई भी Prayer अच्छे से कही जा सकती थी. अब लगता था की Prayer कर रहा हूँ. बिना ध्यान के Prayer कहने में वो दम नहीं था जो ध्यान के बाद कहने में आता था. लगता था कि भगवान् से रूबरू हो रहा हूँ. शुरू में शब्दों पर ज्यादा जोर  रहता था. ऐसा लगता था कि कोई खास मन्त्र हो जोकि बहुत ज्यादा प्रभावशाली हो. उस कहे तो भगवान् जल्दी जल्दी इच्छा पूरी कर दे पर फिर पता चला कि मन्त्र नहीं अच्छी प्रार्थना की और उसके साथ अच्छे भाव की जरुरत है. 

Tolstoy Story Three Hemits
Three Hermits


आपने एक विश्व विख्यात किताब का नाम सुना होगा "Autobiography of a Yogi" मेरा विडियो भी है इस किताब पर. इस किताब के चैप्टर न. 30 में एक कहानी आती है जिसका का शीर्षक है "चमत्कारों के नियम" जिसमे तीन लोगो के बारे में बताया गया है जो एक ही प्रार्थना करते थे जो उनकी खुद की बनायीं हुई थी बड़ी साधरण प्रार्थना थी कि हे ईश्वर - हम तीन है, तू तीन है - हम पर दया कर. आसपास के लोग ने जब उनके बारे में सुना तो उन्हें बड़ा ही अजीब लगा कि यह क्या अजीब प्रार्थना करते है, और फिर कुछ लोग इकठ्ठे हो कर वहा के पादरी के पास गए और उन्हें बाते की वहा दूर पहाड़ी पर कुछ लोग रहते है जो प्रार्थना तो करते परन्तु गलत प्रार्थना करते है. वहा की चर्च के फ़ादर इस नाव ले कर उस पहाड़ी पर पहुचते है और देखते है की वहा तीन लोग है और वो तीन लोग भी उनके पास आते है. 

पादरी पूछते है कि आप लोग किसी तरह की प्रार्थना करते है बताएँगे जरा. वो तीन वैरागी कहते है क्यूँ नहीं फ़ादर हम जरुर बताएँगे. वो बताते है की है कहते है कि -  हे ईश्वर - हम तीन है, तू तीन है - हम पर दया कर.

पादरी कहते है कि यह तो कोई प्रार्थना हुई ही नहीं. यह बिलकुल सही नहीं है. तो वो तीन वैरागी बोले कि अच्छा है फादर सही प्रार्थना आप हमें सिखा दीजिये और हम उसे जरुर करेंगे. 

तो चर्च के फादर उन तीन वैरागियों को पूरा दिन अपने प्रार्थनाएं सिखलाते रहते है और शाम को वापिस लोटते हुए कह कर जाते है की अब तुम्हे इस तरह से प्रार्थना करनी है.और वो तीन वैरागी कहते है कि ठीक है फादर अब आप ने जो भी सिखाता अब से व्ही करेंगे. 

फादर अभी वापिस नाव में आधे रस्ते ही पहुचे थे कि क्यां देखते है कि तीन प्रकाश के पुंज बड़ी तेज़ी से पानी पर भागते हुए आ रहे है और जैसे वो प्रकाश के पुंज पास पहुचते है तो पता चलता है कि यह वही तीन बैरागी है - वो आते ही पूछते है कि फादर-फादर आप जो प्रार्थनाएं हमें सिखा कर आये थे वो हम भूल गए है कृपया एक बार फिर से हमें सिखा दीजिये. 

पादरी उनकी पानी पर चलने की उपलब्धि को देख कर हैरान थे उन्हें अचानक ही समझ आ गया था की प्रार्थना में शब्दों की नहीं भाव की ज्यादा जरुरत होती है. प्रार्थना के शब्द कोई भी हो पर अपने होने चाहिए. 

वो उन तीन वैरागियों को बोले कि आप जो प्रार्थना कर रहे थे उसी प्रार्थना को ही कीजिये और जैसे कर रहे थे वैसे ही कीजिये. जो आप कर रहे है वही सच्ची प्रार्थना है.



प्रार्थना के लिए अपने ही शब्द चाहिए थे, भाव चाहिए थे और मन की चुप्पी चाहिए थी. ऐसे नहीं है कि अन्य मन्त्र बेकार है पर सबसे मुख्य बात मन की चुप्पी है. पर अब्ब ध्यान और प्रार्थना में सबंध समझ आ गया था और उसका प्रयोग करना भी.

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