Saturday, 17 March 2018

ऐसा करने से आपकी मृत्यु कभी एक्सीडेंट से नहीं होगी


इच्छा मृत्यु 



श्वेताश्वतर उपनिषद में एक श्लोक आता है –

लघुत्वमारोग्यमलोलुपत्वं वर्णप्रसादं स्वरसौष्ठवं च।
गन्धः शुभो मूत्रपुरीषमल्पं योगप्रवृत्तिं प्रथमां वदन्ति।। 2.1.13।।

जिसका हिंदी में आशय है कि –
ध्यानयोगका साधन करते करते जब पृथ्वी, जल,  तेज, वायु और आकाश -- इन पाँच महाभूतोंका उत्थान हो जाता है? अर्थात् जब साधकका इन पाँचों महाभूतोंपर अधिकार हो जाता है और इन पाँचों महाभूतोंसे सम्बन्ध रखनेवाली योगविषयक पाँचों सिद्धियाँ प्रकट हो जाती हैं? उस समय योगाग्निमय शरीरको प्राप्त कर लेनेवाले उस योगी के शरीरमें न तो रोग होता है? न बुढ़ापा आता है और न उसकी मृत्यु ही होती है। अभिप्राय यह कि उसकी इच्छाके बिना उसका शरीर नष्ट नहीं हो सकता.

बड़ी कमाल की बात इसमें कही गयी है कि इच्छा मृत्यु, रोग मुक्ति, बुढ़ापा न आना, हमेशा जवान रहना, पांच सिद्धियाँ, पांच महाभूतो पर अधिकार. सब की  सब बाते कमाल की है.

मानव जाति चाहे कही की भी हो, किसी भी समय की हो – पर रोगों पर विजय पाने के लिए और मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के लिए हमेशा लालायित रही है और रहेगी भी. हिन्दुस्तान की धरती पर ऐसे बहुत से संत हुए जिन्होंने अपनी मौत से पहले ही बता दिया कि वो फलां तारीख़ को फलां समय इस दुनिया को छोड़ देंगे.

आपने हिरण्यकशिपु का नाम तो सुना होगा, पुराणों में उनकी कथा आती है. हिरण्यकशिपु एक असुर था जिसकी कथा पुराणों में आती है. उसका वध नृसिंह अवतारी विष्णु द्वारा किया गया. यह हिरण्यकरण वन नामक नामक स्थान का राजा था जोकि वर्तमान में भारत देश के राजस्थान राज्य में स्थित है जिसे हिण्डौन के नाम से जाना जाता है.

हिरण्यकशिपु ने कठिन तपस्या द्वारा ब्रह्मा को प्रसन्न करके यह वरदान प्राप्त कर लिया कि न वह किसी मनुष्य द्वारा मारा जा सकेगा न पशु द्वारा, न दिन में मारा जा सकेगा न रात में, न घर के अंदर न बाहर, न किसी अस्त्र के प्रहार से और न किसी शस्त्र के प्रहार से उसक प्राणों को कोई डर रहेगा।

आप यह देख रहे है कि यहाँ पर वही बात आ रही है जो वेदांत में आती है कि अगर पांच महाभूतों को सिद्ध कर लिया तो इनमे से किसी के भी कारण से आपकी मृत्यु नहीं हो पायेगी. अगर आपने पृथ्वी तत्व पर विजय प्राप्त कर ली तो आपकी मृत्यु कभी भी एक्सीडेंट से नहीं होगी. यह बात बिलकुल सच है.  
पांच महाभूत है क्यां - पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश यह पांच महा भूत है. जिन्हें है पांच तत्व भी कहते है.

पांच सिद्धियाँ – सब कुछ पांच तत्वों से बना है और अगर यह पांचो के पांचो तत्वों पर यदि किसी का अधिकार हो जाता है तो वो दुनियां की किसी भी वस्तु को किसी भी वस्तु में बदल सकता है. ऐसे बहुत से योगी हुए है जिन्होंने ऐसा किया है. एक बार नहीं कई बार ऐसा किया है. साईं बाबा ने पानी से दिए बनाये है. बहुत सारे संतो ने पानी को घी में बदल दिया.

लेकिन मेरा उदेश्य चमत्कारों कि चर्चा करना बिलकुल नहीं है क्यूंकि चमत्कार केवल देखने के लिए होते है उनसे किसी का क्यां भला हो सकता  है. मेरा उदेश्य यह है कि आप निरोग रह कर अपनी जीवन यात्रा कर सके. ध्यान निरोगी करता है यह बात अन्य भारतीय ग्रंथो में भी आई है.

ध्यान आपको आपके अवचेतन मन में बसे संस्कारों तक पंहुचा देता है जिनकी वजह से आप बीमार होते है. जब इस तरीके से आप उन संस्कारो को समाप्त कर देते है तो वो बीमारी जिस से व्यक्ति जूझ रहा होता है वो भी गायब हो जाती है. बुढ़ापा भी एक बीमारी ही है. ऐसा ध्यान ने बहुत बार किया है बहुत बार.

मृत्यु अटल है,  आनी ही है. हिरण्यकशिपु हो या रावण या कोई भी मृत्यु तो आयी है. फिर संतो की बात करे जिन्हें ईच्छा मृत्यु प्राप्त थी. उन्होंने भी अपनी मर्ज़ी से मृत्यु को स्वीकार किया. वास्तव में  मृत्यु नाम की कोई चीज है भी नहीं. समाप्त किसी भी वस्तु को नहीं किया जा सकता फिर उर्जा को तो बिलकुल भी नहीं.

अब बात आती है कि करे क्यां? ध्यान में उतरना होगा तभी रोग मुक्ति होगी तभी मृत्यु से भी मुक्ति होगी. “मृत्यु से भी मुक्ति’’ -  का मतलब है कि मृत्यु को जान लेना. क्यूंकि अगर मृत्यु को जान लिया तो मृत्यु कि बात ही समाप्त हो जाएगी. मरना है यह टॉपिक भी नहीं रहेगा तो फिर डर कैसा.

ध्यान जितना अध्यात्म के लिए जरुरी है उतना आपके जीवन के लिए भी जरुरी है. रोज़मर्रा जिंदगी से हो नकारात्मक उर्जा उठती है उसे बैलेंस करने के लिए ध्यान कि ही आवश्यकता है.    
 



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