Monday, 5 March 2018

आत्मा – एक रहस्य



विज्ञानं बहुत तरक्की कर चुका है और कर भी रहा है. पर बहुत सारे अनसुलझे रहस्य अब भी वैसे के वैसे हमारे सामने खड़े है जैसे वो सदा से हमारे सामने रहे है. जिनका जवाब हमारे पास नहीं है. मन जिसे हम Mind भी कहते है उसको हम महसूस तो कर सकते है पर वो किस चीज का बना है यह आज तक न तो विज्ञानं बता पाया है, न दर्शन शाश्त्र, न धर्म और न ही अध्यात्मिक विज्ञानं. मन है, अवश्य है, हम सब का है पर वो असल में किस Material से बना है यह बात पता नहीं है.

वेदांत मन को Subtle Material से बना हुआ मानता है. पर वो सटल material क्या है इसके बारे में अधिक जानकारी नहीं देता. मतलब की हमारा mind जो है वो एक material है. और यही बात आज एक material साइंटिस्ट ने भी कही है – उन्होंने कहा है mind के बारे मी सोचने के लिए हमें किसी नए ऐसे material के बारे में सोचना होगा जो बिलकुल ही अलग हो, यानि एक ऐसा तत्व जिसके बारे में आजतक सोचा ही न गया हो.

मैं कौन हूँ? यह संसार क्यां है? यह संसार क्यूँ है? कुछ यह Fundamental Questions है जिनपर वेदांत विचार करने को कहता है. वेदांत यह भी कहता है कि बिना विचार किये हम आगे बढ़ ही नहीं सकते. यही विचार ही वो व्हीकल है जिसपर बैठ कर हम इस क्षेत्र में आगे बढ़ सकते है.

मैं कौन हूँ, इस से पहले मैं इस बारे में बताना चाहता हूँ कि मैं हूँ – मैं अपने बारे में कहू तो मैंने इस प्रश्न पर बहुत ही विचार किया कि मैं हूँ – मैं तू हूँ ही जैसे कि आप है ही – पर मैं इस दुनियां की किस वस्तु से मेल खाता हूँ – हम ऐसे ही तो समझते है वस्तुओं को तुलना करके – यह वस्तु कपडे से बनी हुई है, यह लोहे से बनी हुई है – यह सोने से बनी हुई है – ब्ला, ब्ला, ब्ला. पर वस्तुओं को मैं इस तरह के मिलान से समझ सकता है. पर अभी तक मुझे इस दुनियां में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं मिली जिसे मैं यह कह सकू कि हाँ यह मुझ से मिलती जुलती है – मैं इस वस्तु कि तरह ही हूँ. ऐसा नहीं हुआ आज तक नहीं हुआ. मैं हूँ यह मैं समझ सकता हूँ.

फिर बात आती है कि मैं एक शरीर ही तो हूँ – पर यह बात भी तर्क से ही ख़त्म हो जाती है. शरीर मेरा Real Nature नहीं है. जब मैं जागृत होता हूँ तो इस शरीर में माध्यम से इस संसार को तोलता हूँ. फिर स्वप्न अवस्था में यह शरीर सोया होता है पर मैं फिर भी स्वप्न में अपने शरीर को और अन्य लोगो को, वस्तुओं को सब कुछ करते देखता हूँ जबकि मेरा शरीर सोया होता है – तो फिर जो स्वप्न में होता है वो कैसे Create हो जाता है उसे कौन Create करता है – क्यां मैं?

फिर एक और भी अवस्था आती है जिसे आम भाषा में हम गहरी नींद कि अवस्था कहते है Dreamless स्टेट. जब ड्रीम्स भी नहीं आते. बस इस अवस्था का अहसास होता है कि मैं आज गहरी नींद में सोया. क्यूंकि तब ड्रीम्स भी नहीं होते और जाग्रति भी नहीं होती तो क्या होता है उसका कुछ भी पता ही नहीं चल पाता.

हम सभी इन तीन अवस्थाओं से हम हर रोज़ गुजरते है. अब इस बात को कैसे माने कि इन तीनो अवस्थाओं मे से किस एक अवस्था को हम सच माने कि क्या जागृत अवस्था सच है? फिर स्वप्न में जो होता है वो क्या है? और फिर Dreamless State में जो होता है वो क्या है?

फिर मैं अपनी तुलना करना शुरू करू तो मैं न तो अपनी जागृत अवस्था से मेल खाता हूँ, न ही स्वप्न अवस्था से और नहीं ही Dreamless अवस्था से. इन तीनो अवस्थाओं को मैं एन्जॉय कर रहा हूँ पर इन तीनो में से मैं कोई भी नहीं हूँ?

फिर मैं क्या हूँ? शरीर नहीं, कोई भी एलिमेंट नहीं, मन भी नहीं, बुद्धि भी नहीं, फिर क्यां? मैं सच में इन चीजो से मेल नहीं खाता आप भी नहीं खाते मेल. पर मैं जो हूँ वो मैं हूँ – गीता ने, वेदांत ने एक अलग कांसेप्ट दे दिया – आत्मा. मैं जो हूँ – एक आत्मा हूँ. अब मैं यह नहीं कहुगा कि मैं जो हूँ - वो मैं हूँ. मैं जो हूँ – एक आत्मा हूँ.

आत्मा एक ऐसी शक्ति जिसे इस दुनियां कि किसी भी वस्तु से match नहीं किया जा सकता है. आप खुद को match कर ही नहीं सकते किसी भी वस्स्तु से. वो Distinct है बिलकुल Distinct. न उसे जलाया जा सकता है, न सुखाया जा सकता है, न गलाया जा सकता है, न उसे काटा जा सकता है, न वो टूट सकती है.

और रहस्य की बात कि मैं इस मन से उसके बारे में सोच भी नहीं सकता. पर कब तक सोच नहीं सकता जब तक मैं Self Realized नहीं हूँ. पर मैं फिर भी जान सकता हूँ उसके बारे में. पर एक प्रॉब्लम है – एक और रहस्यमय प्रॉब्लम - वो यह की जब मैं उसके बारे में जनूगा तो मैं वही हो जाउगा. फिर मैं किस के बारे में जनुगा. तब तो जानने वाला और जनाने वाला दोनों एक ही हो जायेगे.

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