अपने सामाजिक
जीवन को छोड़ने के बाद, वो चार घटनाए देखने के बाद और बहुत कुछ समझने के बाद महात्मा
बुद्ध ने चार महान सत्यों को उजागर किया.
दुःख – दुःख है
- संसार में दुःख है.
समुदय - दुःख का
कारण भी है
निरोध – उस कारण
का निवारण भी है
मार्ग – निवारण
के लिय तरीका भी है
चार घटनाएँ – एक
दिन जब सिद्धार्थ सैर पर निकले तो उन्होंने देखा – एक बुढा व्यक्ति जो लाठी के
सहारे कापते हुए चल रहा था, फिर एक रोगी व्यक्ति को देखा, फिर उन्होंने एक अर्थी
को देखा और अंत में उन्होंने एक सन्यासी को देखा जो अपनी ही मस्ती में मग्न था.
बुद्ध अभी तक महलों में रहते आये थे उनके लिए यह तीनो घटनाए बिलकुल नयी थी, यह
उनके लिए एक बिलकुल ही नया अनुभव था. वो हैरान रह गए यह देख कर कि इंसान को इतना
दुःख भी मिल सकता है.
बड़े ही ध्यान से
इन सभी बातों पर जो उन्होंने देखी थी उन पर विचार किया तो संसार को छोड़ दिया.
उन्होंने देखा
कि संसार में दुःख है. उन्होंने इस बात पर काम किया कि दुःख है क्यूँ? यानि इस
दुःख का कारण क्यां है? और अगर इसका कोई कारण है तो क्यां उसका निवारण भी है?
उन्होंने पाया कि हा इस दुःख का निवारण भी है. निवारण का जो मार्ग उन्होंने दिया
वो महात्मा बुद्ध की प्रमुख शिक्षाओ में से एक है. बौद्ध प्रतीकों में प्रायः
अष्टांग मार्गों को धर्मचक्र के आठ ताड़ियों (spokes) द्वारा निरूपित किया जाता है.
बौद्ध धर्म के
अनुसार,
चौथे आर्य सत्य का अष्टांग मार्ग है - दुःख निरोध पाने का
रास्ता। गौतम बुद्ध कहते थे कि चार आर्य सत्य की सत्यता का निश्चय करने के लिए इस
मार्ग का अनुसरण करना चाहिए :
सम्यक दृष्टि :
चार Noble Truth में विश्वास करना
सम्यक संकल्प :
मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना
सम्यक वाक :
हानिकारक बातें और झूठ न बोलना
सम्यक कर्म : अपने
कर्मो पर नज़र बनाये रखना ताकि वो आप सही कर्म ही करे
सम्यक जीविका :
अपनी जीविका को शुद्ध रखना
सम्यक प्रयास :
प्रयास आपको खुद ही करना है कोई और नहीं आएगा
सम्यक स्मृति :
सम्यक समृति आएगी अपने आप ही आएगी
सम्यक समाधि :
निर्वाण पाना और स्वयं को मिटा देना.
क्यूंकि बहुत
जरुरी था यह बताना कि करना क्यां है. तभी यह अष्टांग मार्ग सामने आया. वो तरीका
बुद्ध ने दिया कि सबसे पहले दुःख को कैसे हटाया जाये. क्यूंकि समस्या यह थी कि हम
जिसे सुख समझ रहे है वही वास्तव में दुःख है. मन को भगा भगा कर और मन के साथ भाग
भाग कर सुख नहीं पैदा हो सकता. मन को रोक कर ही सुख पैदा हो सकता है और उसे सुख भी
नहीं कहेंगे बल्कि आनंद कहेंगे.
वेदांत भी तो
यही कहता है कि संसार की कोई भी वस्तु, व्यक्ति
या फिर रिश्ता आपको सुख दे ही नहीं सकता क्यूंकि किसी भी वस्तु विशेष का वास्तविक
वजूद तो है ही नहीं. अगर कोई वस्तु विशेष वास्तविक है ही नहीं तो उससे उत्पन्न सुख
वास्तविक कैसे हो सकता है. एक उदहारण वेदांत में बार बार दिया जाता है कि हम रस्सी
को सांप समझ रहे है. और जब हम रस्सी को सांप समझ रहे होते है एक साथ दो गलतियाँ कर
रहे होते है –
हम रस्सी को
सांप समझ रहे है. – रस्सी को सांप समझ कर डर रहे होते है.
हम रस्सी को
रस्सी नहीं समझ रहे है – यानि हमने रस्सी पर तो काम अभी शुरू ही नहीं किया.
यही बात बुद्ध
बताना चाहते थे.
हमने मन के द्वारा खुद को बहुत सारे बन्धनों में बंधा हुआ है. यही बंधन ही हमारे दुःख का कारण है. तभी महात्मा बुद्ध ने कारण पर काम करने की बात की. बुद्ध ने समझ लिया था कि यदि मैं किसी को कारण तक ले जाता हूँ तो उसे निवारण तक आसानी से ले जाया जा सकेगा.
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