तीन रहस्यमयी अवस्थाएं – जिनसे हम रोज़ गुजरते है
जीवन बहुत से रहस्यों से भरा पड़ा है असल में तो
हमारा होना ही अपने आप में एक अद्भुत घटना है और रहस्मयी भी है. कभी कभी यह प्रश्न
कि कौन हूँ मैं और क्यूँ हूँ मैं अपने आप ही जेहन में चला आता है खासतौर पर उस समय
जब हम जीवन के किसी दुखद भाग से गुजर रहे होते है. थोड़ी देर के लिए या शायद कुछ
क्षण के लिए हम इस प्रश्न पर गौर करते है और फिर भूल जाते है. और खो जाते है अपने
ही बनाये हुए संसार में.
समझ नहीं आ पाता कि मेरा जो वजूद है; वो है क्यां. मैं हूँ, एक शरीर में हूँ; कुछ देख रहा हूँ, कुछ सुन रहा हूँ, कुछ Smell कर
पा रहा हूँ, कुछ स्वाद ले पा रहा हूँ और कुछ महसूस कर पा रहा हूँ.
फिर मैं स्वप्न में होता हूँ तो फिर वैसा ही
संसार रचा हुआ होता है कि जैसे एक दम रियल हो. स्वप्न में भी मैं सब कुछ महसूस कर
रहा होता हूँ जैसा कि waking state में होता है. लेकिन यह समझ नहीं आता की वो सच
है या फिर यह.
फिर एक तीसरी अवस्था भी आती है. जिसे सुषुप्ति
अवस्था कहते है. जिसके बारे में बस इतना मालूम पड़ता है कि वो है और कुछ भी नहीं. इसमें
न तो स्वप्न होते है और न ही जाग्रति. बस जागने पर पता चलता है कि आज काफी अच्छी
नींद आई. सुषुप्ति कब होती है – जिस समय महसूस करने वाला किसी वस्तु के विषय में
कुछ नहीं जानता. न कुछ जानना होता है न कोई वस्तु और सबसे मज़े की बात कि जानने
वाला भी गम हो जाता है. जागृति में, स्वपन में वस्तुएं थी, व्यक्ति थे, स्थान थे, अच्छा
बुरा था, मन था, इन सबसे सबंध भी थे. पर इस अवस्था में कुछ भी नहीं होता कुछ भी
नहीं.
यह बड़ी ही विचित्र अवस्था है. शरीरी का शरीर से
कोई भी सबंध नहीं रहता और इस समय वो मन के भी सारे के सारे शोकों को पार कर लेता
है. कुछ भी तो नहीं होता. वही जो महात्मा बुद्ध ने कहा था जब उनसे पूछा गया कि
परमात्मा क्यां है. बड़ी सहजता से उत्तर उन्होंने दिया था कि – Nothingness – कुछ
भी नहीं – कुछ भी नहीं है परमात्मा. वेदांत भी यही कहता है. गुरु नानकदेव जी ने भी
यही कहा. बस शब्द बदल गए. कहने का तरीका बदल गया.
तो फिर से अपनी बात पर आता हूँ -- सुषुप्ति
अवस्था – यह अवस्था संसार के दुखों से रहित है. न संसार, न हमारा होना आखिर है
क्यां ये. कुछ कुछ माया यानि इग्नोरेंस कि बात समझ आ रही है. अवस्था बदल जाये तो कुछ
नहीं है और बहुत कुछ है भी. कमाल ही है.
विज्ञानं कहता है कि Dreamless state में यदि
हम न जाये तो पूरा सोने के बाद भी ऐसा नहीं लगता कि हम सोये थे. सारी रिचार्जिंग
इसी state में होती है.
इन तीन अवस्थाओं से हम हर रोज़ गुजर रहे है. daily.
और यह तय नहीं किया जा सकता कि सच क्या है. हम एक शरीर में है - मानव शरीर में. एक
यंत्र है जिसमे आँख देख रही है एक दृश्य को और इस दृश्य को एक महसूस करने वाला भी
है जो देख रहा है आँख के द्वारा. दृश्य जो है वो आँख के द्वारा देखा जा रहा है. अब
यदि आँख को हटा दिया जाये तो दृश्य का क्या होगा. क्यां वो दृश्य वैसा ही होगा
जैसा कि आँख से दिख रहा है. एक ही दृश्य को जानवर अलग तरीके से Perceive कर रहे है
और हम अलग तरीके से. उनको जो दिखाई दे रहा है वो हमें नहीं और हमें जो दिखाई दे
रहा है वो उन्हें नहीं. यही माया है, Ignorance
है. देखने वाला आज़ाद नहीं है. लिमिटेड है आँखों के द्वारा, कानो के द्वारा, नाक के
द्वारा, जिहा के द्वारा और अपनी स्किन के द्वारा. लेकिन यह सब के सब यंत्र है और
जो इनके द्वारा ज्ञान पैदा हो रहा है वो तब तक महत्वपूर्ण है जब तक की देखने वाला
इन यंत्रो से देख रहा है या महसूस कर रहा है. इसलिए इस ज्ञान को वेदांत इग्नोरेंस
कहता है. क्यूंकि इस ज्ञान कि सच्चाई केवल मानव रूपी यंत्र के लिए है बस और कुछ
नहीं.
अपरोक्षानुभूति एक अतिमहत्वपूर्ण रचना है
शंकराचार्य की और बहुत ही अद्भुत पुस्तक है. इस पुस्तक में इन तीनो अवस्थाओ का
जिक्र आया है. अपरोक्षानुभूति के अनुसार Ignorance और Thoughts मिल कर सब कुछ रच
रहे है. Ignorance का मतलब है अज्ञान और Thoughts का मतलब है विचार, हमारे खुद के
विचार.
अब सब कुछ यात्रिक है और सब यंत्रो और वस्तुओं
के Parameters भी है पर देखने वाला जो है वो यात्रिक नहीं है उसके पैरामीटर भी नहीं
है. यह जो देखने वाला है वो जागृत अवस्था में भी है, स्वप्न अवस्था में भी है और सुषुप्ति
अवस्था में भी है. मैं अपने चारो और के संसार को देख रहा हूँ, महसूस कर रहा हूँ, और
फिर स्वप्न में फिर एक नई दुनियां को महसूस भी करता हूँ और देखता भी हूँ, सुषुप्ति
घटित होने के बाद उसका भी साक्षी रहता हूँ.
तीनों की तीनों अवस्थाए real नहीं है. एक जाती
है तो दूसरी आती है. जागृति से स्वप्न, स्वप्न से सुषुप्ति में एक बात कॉमन रहती है – देखने वाला. जो अवस्थाओं
के बदलने पर नहीं बदलता. क्यूंकि मैं ही जागृत अवस्था में इस संसार को देखता हूँ, मैं
ही स्वप्न अवस्था में स्वप्न देख रहा होता हूँ और मैं ही सुषुप्ति अवस्था को अनुभव
कर रहा होता हूँ. लेकिन यह तीनों की तीनों अवस्थाएं शरीर से होकर गुजरती है. तीनो
का एक्सपीरियंस मैं शरीर में होकर ही करता हूँ.
एक और अवस्था का जिक्र वेदांत में आता है जिसे चतुर्थी
का नाम दिया गया है, चतुर्थी यानि चोथी अवस्था जिसे तुरिया अवस्था भी कहा गया है. जो
Pure Self की अवस्था है. जब मैं तीनों अवस्थाओ को शरीर से देखना छोड़ अपनी वास्तविक
अवस्था में आ जाता हूँ तो उसे तुरिया अवस्था कहते है. बात समझने की है नाम कोई भी
हो सकता है अपने अपने धर्म के अनुसार.
तो इन तीन अवस्थाओं से हम रोज़ गुजर रहे है, हर
रोज़
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